खाक हो जाएंगे तुमको खबर होने तक.
पूर्वांचल और बिहार में प्रसिद्ध लौंडा नाच का उद्भव कब और कैसे हुआ ? इसका कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं है. नाच की विधा अक्सर राजा महाराजाओं के मनोरंजन से हीं जुड़ी होती थी. उनके पास नर्तकियां होती थीं, जिन्हें राज नर्तकी कहा जाता था. ऐसी हीं एक नर्तकी थी -आम्रपाली . एक प्रसिद्ध राजनर्तकी ,जो बाद में बौद्ध भिक्षुणी बनीं . पौराणिक कथाओं में भी मेनका, रम्भा ,उर्वसी आदि राज नर्तकियों का उल्लेख मिलता है, जो ऋषि महर्षियों के तप भंग करने के काम आती थीं. मुगल काल में तवायफें होती थीं, जिन्हें चाहने वाले राजा, महाराजा, जमींदार व अन्य धनाढ्य वर्ग के लोग थे . बच गया मध्यम और निम्न वर्ग ,जिनके पास मनोरंजन का कोई साधन नहीं था. इन लोगों के लिए लौंडा नाच बना, जिसमें पुरूष हीं औरत बन नाच के द्वारा इस वर्ग का मनोरंजन करना शुरू कर दिया. लौंडा नाच का क्रेज नब्बे के दशक तक खूब चला. लोग लाठी व टार्च लेकर दूर दूर तक चले जाते थे. रात भर नाच देखते थे. घर आकर दिन भर लम्बी तान सोते थे. ऐसे लोग नचदेखवा के नाम से प्रसिद्ध हुए. कई घरों में बड़े बुजुर्ग नाच देखने को सही नहीं मानते थे. वे जवानों पर नाच देखने पर प्रतिब