चल मेरी गदनी मिंजरा दे मेले ..

हिमाचल प्रदेश के रावी नदी के किनारे स्थित चम्बा एक प्रमुख नगर है. समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 996 मीटर है. विख्यात कला पारखी और डच विद्वान डा. बोगला ने इस नगर की खूबसूरती से प्रभावित हो इसे Wonder (अचम्भा) कहा है. यहां की चम्बा रूमाल, चम्बा चप्पल, चम्बा चुख (मिर्च का अचार) जग प्रसिद्ध है. यहां की प्राकृतिक सुन्दरता से प्रभावित हो देश विदेश के सैलानी आते हैं और यहां की यादें अपने कैमरों में कैद कर ले जाते हैं.
राजा मारू भरमौर का शासक था. जब साहिल वर्मन (असली नाम शैल वर्मन) ने सत्ता सम्भाली तो उसकी पुत्री चम्पावती को भरमौर के इलाके से बेहतर एक और जगह लगी. उसने अपने पिता से उस जगह पर राज्य की राजधानी बनाने का अनुरोध किया. साहिल वर्मन अपनी बेटी चम्पावती की हर बात मानता था. उसने वहां राजधानी बनाने की सहर्ष अनुमति दे दी. वह जगह ब्राह्मणों के कब्जे में थी. महाराज साहिल वर्मन ने उन ब्राह्मणों को मनमाफिक कीमत देकर वह जगह खरीद ली. भरमौर से राजधानी उस जगह स्थानान्तिरत हुई. राजकुमारी चम्पावती के नाम पर उस जगह का नाम चम्बा रखा गया.
चम्बा के शासक सूर्यवंशीय क्षत्रिय थे. इनके सम्बन्ध अयोध्या के सूर्यवंशीय क्षत्रिय राजाओं से उजागर हुआ है .ऐसा खुदाई से मिले शिलालेखों से पता चला है. आदित्य वर्मन पहला शासक था, जिसने नाम के साथ वर्मन टाइटिल लगाया है. उसके बाद से बहुत से वर्मन शासक हुए- बल वर्मन, दिवाकर वर्मन, मेरू वर्मन, साहिल (शैल) वर्मन आदि. वर्मन से पहले ये सूर्य वंशीय राजा स्तंभ टाइटिल लगाते थे. यथा -जय स्तंभ, जल स्तंभ, महा स्तंभ आदि.
सूर्यवंशीय राजाओं की तरह हीं चम्बा के मिंजर मेले का इतिहास भी काफी प्रचीन है. साहिल वर्मन जब युद्ध में विजयी हो लौटे तो किसानों ने मक्की के मिंजर से उनका स्वागत किया था. तब से उसी माह में चम्बा में मेला लगता है, जो नई फसल के स्वागत में आयोजित किया जाता है. सावन के दुसरे रविवार को मक्की का मिंजर नगर के प्रतिष्ठित लोगों को राजा भेंट करता था. राजशाही के जाने के बाद अब यही काम नगरपालिका करती है. मेले के समापन के तीसरे रविवार को चण्डी महल से लक्ष्मी नारायण, रघुवीर और अन्य देवी देवताओं की पालकियां निकलती है,जो चौगान से रावी नदी के तट तक पहुंचती है.
इस शोभा यात्रा में बकायदा राजकीय झण्डे लगे होते हैं. बैण्ड बाजे का भी इंतजाम होता है. रावी नदी के तट पर नारियल और मिंजर पानी में प्रवाहित किया जाता है. यह मेला हिन्दू मुस्लिम एकता का भी प्रतीक है. यहां का मुस्लिम मिर्जा परिवार भगवान लक्ष्मी नारायण और भगवान रघुनाथ को रेशमी धागों से लिपटा मिंजर अर्पित करता है. इस मेले को देखने के लिए देश विदेश से बहुत लोग आते हैं. यहां के लोक गीतों में भी मिंजर मेला का जिक्र आता है. गद्दी जनजाति का पुरूष अपनी पत्नी से मिंजर मेले में चलने के लिए मनुहार करता है. वह कहता है कि धीरे धीरे चलेंगे .उसे कोई तकलीफ नहीं  होगी .
चल मेरी गदनी मिंजरा दे मेले,
सौगी सौगी जांवा
                    -
Er S D Ojha
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