मेरी सांसों में तेरी महक बाकी है.

पीनाज मसानी. अस्सी के दशक में यह नाम बहुत चमका था. उन दिनों गजल की दुनियाँ में यह नाम काफी जाना पहचाना था. दूरदर्शन पर पीनाज मसानी के गजलों ने धूम मचा दी थी. हालांकि पीनाज मसानी ने संगीत की दीक्षा प्रसिद्ध गजल गायिका मधुरानी से ली थी, पर उनके कैरियर को चमकाने वाले थे -संगीतकार जयदेव. सन् 1978 में संगीत के एक प्रतिस्पर्धा में पीनाज मसानी नम्बर वन चुनी गईं. उस प्रतिस्पर्धा के जज थे संगीतकार जयदेव. जयदेव ने पीनाज की आवाज की जादूगरी से प्रभावित हो उनसे कुछ फिल्मों में पार्श्व गायिकी करवाई थी.
अस्सी का दशक गजलों के लिए जाना जाता है. उन दिनों जगजीत सिंह, भूपेन्दर सिंह, पंकज उदास, अनूप जलोटा,राजकुमार रिजवी और तलत अजीज आदि भारतीय गजल गायकों का दौर था. यदि इस दशक को गजल का स्वर्णिम काल कहा जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. गजल गायकों में गोल्डेन व प्लेटिनम डिस्क की होड़ मची थी. इस होड़ में पीनाज मसानी भी शामिल हो गईं. पीनाज को भी प्लेटिनम डिस्क मिला.
नब्बे के दशक तक गजल का जल्वा उतार पर पहुंच गया. पीनाज मसानी ने भी गजलों से तोबा कर ली. आजकल वे स्टेज पर लटके झटके वाले फिल्मी गीत गाकर अपना वजूद बनाए हुए हैं. उनके गजल गायिकी के स्वर्णिम दिनों को याद कर भारत सरकार ने सन् 2009 में उन्हें पद्म श्री से नवाजा था. पीनाज मसानी फिर से गजल गायिकी के उस दौर के लौट आने के प्रति आशान्वित हैं. उनका कहना है कि दुनियां गोल है. हमें घूम फिर कर उसी जगह पहुंचना है, जहां से चले थे.
कभी पीनाज मसानी ने यह बयान देकर सनसनी फैला दी थी कि फिल्म उमरांव जान का संगीत ख्याम ने नहीं मधुरानी ने दिया था. पीनाज इंगलिश मीडियम से पढ़ी हैं. हिन्दी बोलने पर कभी उनकी शिक्षकाएं उन्हे डांटा करती थीं . आज वही शिक्षकाएं उनके हिन्दी गजलों की मुरीद बनी हुईं हैं. मेरी दिली तमन्ना है कि गजलों का वह दौर वापस आए और पीनाज मसानी गजल गायिकी के सर्वोच्च सिंहासन पर बैठें. अन्त में पीनाज के गजलों में से एक बेशकीमती गजल का यह शेर आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूं -
दिल के आइनों में यादों की चमक बाकी है.
मेरी सांसों में अभी भी तेरी महक बाकी है.
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