ये भी जीना हुआ किसी के लिए.

जानवरों के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाना चाहिए, इसके लिए यथोचित अवेयरनेस लाने की जरूरत है. कई बार घने जंगलों में लोगों का साबका हिंसक जानवरों से हो जाता है. जो लोग धैर्य का परिचय देते हैं वे बच जाते हैं. विड़ाल प्रजाति के जानवर जैसे बाघ, शेर, चीता, गुलदार आदि की निगाहों में निगाहें न मिलाएं. आप कनखियों से देखते हुए सतर्क रहें. हो सकता है कि आपके द्वारा इग्नोर किए जाने से वह वहां से चला जाय. यदि वह आप पर आक्रमण करने का उपक्रम करे तो आप दोनों हाथ ऊपर उठा अपना आकार ज्यादा से ज्यादा बढ़ाएं. साथ हीं मुंह से तेज आवाज निकालें. विड़ाल प्रजाति के लिए तैयार यह नुस्खा मैंने कुत्तों पर भी आजमाया. वह भी एक बार नहीं दो बार. पहली बार मसूरी और दूसरी बार चंडीगढ़ में. ऐसा करने से कुत्तों ने भौंकना बन्द कर दुम हिलाना शुरू कर दिया. मैंने विड़ाल प्रजाति के जानवरों को भी इस नुस्खे के आजमाइस के दौरान डिसकवरी चैनल पर विल्कुल पानी पानी होते हुए देखा है. ऐसा क्यों होता है?  शायद उनको लगता होगा कि शेर को सवा शेर मिल गया है ।
यदि बाघ या कोई विड़ाली जानवर हमला कर दे तो विल्कुल सरेंडर न करें. आप जी जान से भिड़ जाएं. कोशिश करें उसकी आंख या मुंह में हाथ घुसाने की. मुंह में हाथ घुस जाने पर उसकी जीभ पकड़ने की कोशिश करें. आंख में उंगली घुसने या जीभ के पकड़े जाने पर वह विदक जाएगा और भाग खड़ा होगा. उत्तराखण्ड में कई लोगों ने अपनी जान इसी तरह बचाई है. पहाड़ों में गुलदार या बाघ यदि ढलान पर मिल जाए और आपकी पोजीशन ऊपरी इलाके में हो तो पत्थर लुढकाना शुरू कर दीजिए. ये जानवर पत्थर से डरते हैं. मिर्थी कैंम्प के आफिसर मेस के इलाके से इसी विधा से जवानों ने बाघिन और उसके शावकों को भगाया था. बाघिन और शावकों को भागते हुए देखना बड़ा हीं रोमांचकारी था.
गांवों में आए दिन हाथियों के हमले होते हैं. देशी शराब की महक इन हाथियों को बेताब कर देती है. देशी शराब पीने के बाद या शराब न मिलने पर ये हाथियां हिंसक हो जाती हैं. फसलों को उजाड़ना, मानव बस्तियों को रौंदना इनके लिए आम होता है. इंसान भी इस तांडव के लपेटे में आ जाते हैं. ऐसे में इंसानों को किसी गड्ढे में छुपना चाहिए. हाथी गड्ढों में उतरने से डरते हैं. भागते समय ढलान की तरफ जाना चाहिए. हाथी भारी भरकम शरीर लिए ढलान पर तेजी से नहीं दौड़ पाता. आसाम/अरूणांचल की पोस्टिंग के दौरान हमने अपने किमिन स्थित वाहिनी हेडक्वार्टर में हाथियों का तांडव देखा है. शोर, ड्रम व कनस्तर पीटने से ये भाग जाते हैं. आए दिन हमारे हास्पिटल में हाथियों के आक्रमण से घायल सिविलियन इलाज के लिए आते रहते थे.
मातली, उत्तर काशी की मेरी पोस्टिंग के दौरान नैटवार में फील्ड इंजीनियरिंग का रिफरेशर कोर्स चलाया जा रहा था.हम टेन्टों में रह रहे थे. रात को भालू महाशय आ कर किचेन का सारा सामान तहस नहस कर जाते. एक दिन एक टूरिष्ट बंगाली परिवार दिन में वहां से गुजरा . उनके साथ गाइड भी था. बंगाली परिवार के मुखिया से मैंने बंगला में बात की. बेचारे द्रवित हो गये. बैठे. चाय पी. उन्होंने आप बीती सुनाई. एक दिन पहले हीं उन पर भालू ने आक्रमण किया था. भला हो गाइड का, जिसकी सूझ बूझ से वह बंगाली परिवार बच सका. गाइड ने सबको हाथ में पत्थर लेकर भालू को मारने के लिए कहा. अचानक पत्थरों की बारिश से भालू घबरा गया और भाग खड़ा हुआ . बंगाली परिवार बच गया . बातों बातों में गाइड ने मुझे भालू से बचने के लिए एक और कारगर उपाय बताया .उसका कहना था कि भालू द्वारा पीछा किए जाने पर ढलान की तरफ भागना चाहिए. ढलान पर दौड़ते समय भालू के बाल उसकी आंखों पे आ जाते हैं. आंख ढक जाने से भालू अपने शिकार को देख नहीं पाता. शिकार तब तक  दूर निकल जाता है.
इंसानों पर ये जानवर बहुत मजबूरी में आक्रमण करते हैं. विड़ाल प्रजाति के जानवरों के जब दांत किसी कारणवश टूट जाते हैं या उनके पांव जख्मी हो जाते हैं तो वे नरभक्षी बन जाते हैं . जंगलों की अंधाधुंध कटाई एक सबसे अहम कारण है इन जानवरों के हिंसक होने का.हाथी और भालू भी अपना भोजन खत्म होते देखकर बस्तियों में आ तांडव करने लगे हैं.  हम उनके घरों में घुसपैठ करते हैं तो वे अपनी हैसियत किरायेदार की पाते हैं. घर वाला बरगद के नीचे और बरगद वाला घर में आ जाय तो क्लेश तो बढेगा हीं. जानवर जंगल में भोजन की कमी को देखते हुए बस्ती की ओर रुख करने लगे हैं. इंसान अपनी बस्तियाँ बसाने के लिए जंगल की तरफ बढ़ने  लगे हैं .सड़कें, रेलवे लाइन इन जंगलों से गुजरती हैं और आए दिन जंगली जानवर इन वाहनों एंव ट्रेनों के चपेट में आ अपनी जान गंवा बैठते  हैं. क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम स्वयं के साथ साथ इन जानवरों का भी ख्याल रखें । इंसान का जीना तभी सार्थक होगा जब वह इन जानवरों के काम आए.
चांद चमका है चांदनी के लिए.
ये भी जीना हुआ किसी के लिए.
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