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नवंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ईरान के शाह के बादशाहत का अन्त.

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ईरान के शाह मोहम्मद रजा पहलवी ईरान छोड़ने से पहले अपने विश्वास पात्र शाहपुर वख्तियार को प्रधान मंत्री बना चुके थे. ईरान में उनके खिलाफ हो रहे फसाद को देखते हुए उन्हें जल्द से जल्द ईरान छोड़ देना चाहिए था , पर उनके ईरान छोड़ने में एक पेंच फंसा हुआ था . बैंक में उनके हीरे जवाहरात पड़े थे, जिसे वे अपने साथ ले जाना चाहते थे . ये जवाहरात जमीन में 20 मीटर गहरे सेल्फ में रखे हुए थे. उन दिनों बैंकों की हड़ताल चल रही थी. शाह ने अपने सैनिकों को भेजकर बैंक पर दबाव बनाना चाहा, पर जिन्हें सेल्फ खोलने का पता था, वे इधर उधर छिप गये. कई दिनों का प्रयास का परिणाम सिफर रहा. शाह ने जवाहरात के लिए जो अतिरिक्त अभेद्य सुरक्षा कवच तैयार करवाया था, वह उनके हीं खिलाफ गई. अन्ततोगत्वा शाह को बिना जवाहरात लिए हीं जाना पड़ा.यह खजाना आज भी मौजूद है, जिसके लिए 500 अरब डालर का बीमा करवाया गया था. 16 जनवरी सन् 1979 को मोहम्मद रजा पहलवी ने आखिरी बार ईरान से अपनी पत्नी के साथ उड़ान भरी. वे खुद विमान उडा़ रहे थे. वे पहले जार्डन जाना चाहते थे, पर जार्डन के शाह ने विनम्रता पूर्वक मना कर दिया. वे नील नदी पर बने शीतकालीन रिस

शिवानी दुर्गा - अघोर तांत्रिक.

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अकाल्ट साइन्स (तंत्र विद्या )में शिकागो यूनिवर्सिटी से पी एच डी शिवानी दुर्गा ने भारत के नागनाथ योगेश्वर गुरू से अघोर तंत्र में दीक्षा ली थी. योगेश्वर गुरू के साथ शिवानी ने शव साधना की थी .वे जहां भी जाती हैं अपने साथ एक नर मुंड और तंत्र साधना के अन्य सामान साथ लिए चलती हैं. शिवानी दुर्गा का जलती चिता के पास घंटो बैठ साधना करना उन्हें अन्य तांत्रिकों से अलग पहचान देती है . साधना से पहले वे जलती चिता के एरिया को तलवार से रेखा खींच सेक्योर कर लेती हैं. शिवानी दुर्गा ने अघोर साइकिक नामक एक नया तंत्र विकसित किया है. अब वे भारतीय और पश्चिमी तंत्र को मिलाकर एक नया तंत्र विकसित कर रहीं हैं. उनके भक्त और अनुयाई भारत तथा कई अन्य देशों में है. अघोर तंत्र में शिवानी दुर्गा की रुचि अपनी दादी की वजह से हुई. उनकी दादी श्मसान में अक्सर उन्हें साथ ले जाती थीं. दादी का कहना था कि हर आदमी का यही हश्र होना है. अन्तिम शरणस्थली यहीं हैं. उज्जैन की रहने वाली शिवानी दुर्गा सर्वेश्वरी शक्ति इन्टरनेशनल आखाड़ा की संस्थापिका और महामंडलेश्वर हैं .उनका कहना है कि शव साधना के दौरान तांत्रिक कुछ भी नहीं खा सकता .शव

अंतराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस की पूर्व संध्या पर विशेष.

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जैसे चींटियां लौटती हैं - बिलों में, कठफोड़वा लौटता है - काठ के पास, वायुयान से लौटते हैं एक के बाद एक, लाल आसमान में डैने पसारे हुए, हवाई अड्डे की ओर. ओ मेरी भाषा, मैं लौटता हूं तुममें , जब चुप रहते रहते मेरी जीभ, दुखने लगती है, रोने लगती है जब मेरी आत्मा.               - केदारनाथ सिंह.            ज्ञान पीठ पुरष्कार प्राप्त.             चकिया, बलिया, उत्तर प्रदेश.

अयोध्या की बेटी कोरिया गणराज्य की महारानी बनी.

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सुरीरत्ना अयोध्या से नाव के माध्यम से कोरिया बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए गईं थीं. वहां राजकुमार सुरो के साथ उनका प्यार परवान चढा़ और 16 साल की उम्र में उनकी शादी राजकुमार सुरो से हो गई .यूं तो कोरिया के इतिहास में कई महारानियों का जिक्र है, पर सबसे महत्वपूर्ण और उदारमना महारानी का जिक्र होता है तो वह है - महारानी सुरीरत्ना . महारानी का जिक्र कोरिया के पौराणिक कथाओं में किया गया है, जो कि मंदारिन भाषा में है. कोरियाई लोग महारानी सुरीरत्ना को राम का वंशज मानती हैं . किमहये शहर में कोरिया वासियों ने महारानी सुरीरत्ना की एक आदमकद मूर्ति लगा रखी है. महाराज सुरो और महारानी सुरीरत्ना के वंश को कारक वंश नाम दिया गया, जिसके नाम पर इस देश का नाम कोरिया रखा गया. आज इस वंश के तकरीबन 60 लाख लोग हैं, जिनमें कई नामचीन हस्तियां हैं. पूर्व राष्ट्रपति किमदेई जुंगऔर पूर्व प्रधान मंत्री दियोजिमोंग इसी वंश के हैं. कोरिया वासी हर साल फरवरी मार्च में अयोध्या आ महारानी सुरीरत्ना को श्रद्धांजश्रलि अर्पित कर जाते  हैं .उन लोगों ने सरयू नदी के किनारे बना एक पार्क महारानी को  समर्पित कर ऱखा है . वह नाव,जिससे सुर

नीम करौली वाले बाबा तुम्हारी जय हो.

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मार्क जुकरवर्ग ने उस समय हाल हीं मे फेस बुक बनाया था. उन पर फेस बुक बेचने का लगातार कम्पनी वाले दबाव बना रहे थे. जुकरवर्ग निर्णय नहीं ले पा रहे थे. स्टीव जाब्स ने उन्हें भारत स्थित कैंची धाम जाने की सलाह दी. कैंची धाम उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले में है, जहां विश्व में जानी मानी एप्पल कम्पनी के मालिक स्टीव जाब्स आ चुके थे. मार्क जुकरवर्ग भी आए. उस समय उनके हाथ में एक किताब के सिवाय कुछ भी नहीं था. उनके पैंट घुटनों पर फटी हुई थी. वे आए थे एक दिन के लिए, पर मौसम खराब होने के कारण उन्हें दो दिन रूकना पडा़. परेशानी का सबब यह था कि उनके पास बदलने के लिए कपड़े तक नहीं थे. मार्क जुकरवर्ग को यहाँ एक नई ऊर्जा मिली. उन्होंने फेस बुक को न बेचने का निर्णय लिया. यह निर्णय उनके लिए महत्वपूर्ण रहा. आज जुकर वर्ग अरबों का धन दान में दे देते हैं. उनकी गिनती विश्व के धनाड्य व्यक्तियों में  होती है. सुप्रसिद्ध हालीवुड अभिनेत्री जूलिया राबर्टस भी कैंची धाम आ चुकी हैं. यहाँ आने के बाद उनमें परिवर्तन हुआ. आज जूलिया ईसाई मां बाप की संतान होते हुए भी भारतीय पूजा पद्धति को अपनाती हैं . संस्कृत के श्लोक पढ़ती हैं

तुलसी दास ने दशरथ और कौशल्या के पुत्री " शांता "के साथ न्याय नहीं किया.

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बाल्मिकी रामायण के बाल कांड में शांता का जिक्र आता है. शांता कौशल्या और दशरथ की पुत्री थी, जब कि तुलसीकृत राम चरित मानस में इसका उल्लेख कहीं भी नहीं है. ऐसा लगता है कि तुलसी राम की मर्यादा अक्षुण्ण रखना चाहते थे. इसीलिए तुलसी ने राम को मर्यादा  पुरषोत्तम बनाने की लालसा में सीता का परित्याग भी नहीं दिखाया है. कुछ संदर्भ जैसे लव कुश का राम के साथ युद्ध, लव कुश द्वारा अयोध्या जा कर बाल्मिकी रचित रामायण का पाठ करना और सीता परित्याग के लिए राम को भरी सभा में धिक्कार करना आदि प्रसंग तुलसी द्वारा छोड़ दिए गए हैं.उसी तरह से शांता का प्रसंग तुलसी ने इस बिना पर छोड़ दिया है कि कहीं शांता का त्याग राम को मर्यादित करने के मार्ग में रोड़ा न बन जाए. बाल्मीकि राम के समकालीन थे. उन्होंने जो देखा ,वह लिखा . रंच मात्र का भी प्रपंच नहीं लिखा. अत: बाल्मिकी रामायण को हीं मानक रामायण माना जाना चाहिए. शांता के होते हुए भी राजा दशरथ अपने को नि:संतान मानते थे ; क्योंकि उनका कोई पुत्र नहीं था, जो उनके मरने के बाद उनका राज काज सम्भाल सके. अचानक अयोध्या में अनावृष्टि हो गई. 12 साल तक अयोध्या में वर्षा के आसार नही

फतेहपुर बिंदकी का बावन इमली शहीद स्मारक.

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बावन इमली शहीद स्मारक बिंदकी से पश्चिम की तरफ 3 किलोमीटर की दूरी पर है. जोधसिंह अटैया स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. ब्रिटिश सरकार के समय में सरकारी खजाना लूटने और कार्यालय में आग लगाने के वे  आरोपी थे. एक थानेदार की हत्या के भी वे दोषी थे. दरियाव सिंह और शिवदयाल सिंह के साथ मिलकर जोधसिंह अटैया गुरिल्ला युद्ध के जरिये व्रिटिश सरकार के नाक में दम किए हुए थे. जोधसिंह अटैया अपने 51 साथियों के साथ रात के अंधेरे में आ रहे थे. कर्नल क्रिस्टाइन ने मुखबिर से सूचना पर उन्हें अचानक दबोच लिया. एक बटालियन से अपने को घिरा पाकर जोधसिंह अटैया और उनके साथियों को अपने हथियार निकालने का मौका तक नहीं मिला. मुगल रोड पर खजुए के निकट एक इमली के पेड़ पर दिनांक 28 अप्रैल सन् 1858 को सभी 52 लोगों को अंग्रेजों ने फांसी दे दी बरबरता की परकाष्ठा यह हुई कि शव को उतारा नहीं गया और वे लगभग 35 दिन तक उसी पर झुलते रहे. अंत में महाराज सिंह 4 जून 1858 को रात को सेना लेकर आए. इन शवों को उतार शिवराजपुर में उन शवों की अन्त्येष्टि की गई. आज भी वह इमली का पेड़ खड़ा है. तब से इस पेड़ पर किसी साल इमली नहीं लगी. शायद आज भी यह पे

एक सफर भूलभूलैया तक .

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समय सन् 1989 का था. बरेली के बुखारा ग्राम में 14 एकड़ जमीन 20 वीं वाहिनी भा ति सी पुलिस की स्थापना के लिए अर्जित की गई थी. अब निर्माण कार्य शुरू किया जाना था. चूंकि जमीन कृषि वाली थी. इसलिए उस पर निर्माण कार्य से पहले भू उपयोग परिवर्तन (Land use change ) करने की अनुमति आवश्यक थी. मुझे land use change की अनुमति हेतु लखनऊ जाना पड़ा. जाड़े की रात थी. बस का सफर था. बस की खड़खड़ नीरवता भंग कर रही थी. उस खड़खड़ में खिड़कियों की संधि से तीक्ष्ण ठंडी हवाएँ आकर अंदर उत्पात मचा रही थीं. मेरी सीट दरवाजे के पास थी. कोई सवारी उतरती या किसी और कारण से कंडक्टर जब दरवाजा खोलता तो बस में हवा अनाधिकार प्रवेश करती तो कंपकपी छूट जाती. वस्तुतः यह लड़ाई हमारे ऊनी वस्त्रों और ठंडी हवा के झोंकों के बीच थी, जिसमें मुझ जैसा अदना इंसान पीस रहा था. आज भी उन हवाओं की याद मेरे जेहन में बरकरार है. -       फिर याद आया एक ठंडी हवा का झोंका,       सुना रही है फसाने उस दिन की मुझे. सुबह 3/4 बजे लखनऊ पहुँचा . बस स्टेशन से बारादरी के एक होटल में आकर रात की खुमारी निकाली. सुबह तड़के जा पहुंचे IAS जगजीत सिंह सिरोही के पास,