अंतराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस की पूर्व संध्या पर विशेष.

जैसे चींटियां लौटती हैं -
बिलों में,
कठफोड़वा लौटता है -
काठ के पास,
वायुयान से लौटते हैं एक के बाद एक,
लाल आसमान में डैने पसारे हुए,
हवाई अड्डे की ओर.
ओ मेरी भाषा,
मैं लौटता हूं तुममें ,
जब चुप रहते रहते मेरी जीभ,
दुखने लगती है,
रोने लगती है जब
मेरी आत्मा.
              - केदारनाथ सिंह.
           ज्ञान पीठ पुरष्कार प्राप्त.
            चकिया, बलिया, उत्तर प्रदेश.
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