नीम करौली वाले बाबा तुम्हारी जय हो.
मार्क जुकरवर्ग ने उस समय हाल हीं मे फेस बुक बनाया था. उन पर फेस बुक बेचने का लगातार कम्पनी वाले दबाव बना रहे थे. जुकरवर्ग निर्णय नहीं ले पा रहे थे. स्टीव जाब्स ने उन्हें भारत स्थित कैंची धाम जाने की सलाह दी. कैंची धाम उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले में है, जहां विश्व में जानी मानी एप्पल कम्पनी के मालिक स्टीव जाब्स आ चुके थे. मार्क जुकरवर्ग भी आए. उस समय उनके हाथ में एक किताब के सिवाय कुछ भी नहीं था. उनके पैंट घुटनों पर फटी हुई थी. वे आए थे एक दिन के लिए, पर मौसम खराब होने के कारण उन्हें दो दिन रूकना पडा़. परेशानी का सबब यह था कि उनके पास बदलने के लिए कपड़े तक नहीं थे. मार्क जुकरवर्ग को यहाँ एक नई ऊर्जा मिली. उन्होंने फेस बुक को न बेचने का निर्णय लिया. यह निर्णय उनके लिए महत्वपूर्ण रहा. आज जुकर वर्ग अरबों का धन दान में दे देते हैं. उनकी गिनती विश्व के धनाड्य व्यक्तियों में होती है. सुप्रसिद्ध हालीवुड अभिनेत्री जूलिया राबर्टस भी कैंची धाम आ चुकी हैं. यहाँ आने के बाद उनमें परिवर्तन हुआ. आज जूलिया ईसाई मां बाप की संतान होते हुए भी भारतीय पूजा पद्धति को अपनाती हैं . संस्कृत के श्लोक पढ़ती हैं . योग करती हैं .
कैंची धाम की स्थापना बाबा नीम करौली ने की थी. आरम्भ में बाबा ने यहां एक चबूतरा बनवाया था और हवन करवाया था. बाद में यहां एक आलीशान आश्रम बना. देश विदेश से यहाँ श्रद्धालु आते हैं.हर साल कैंची धाम में 15 जून को समारोह होता है. नीम करौली वाले बाबा को अंतराष्ट्रीय पहचान तब मिली जब बाबा के एक भक्त राम दास ने अपनी किताब में उनका जिक्र किया. आज बाबा की गिनती बीसवीं सदी के महान् सन्तों में होती है.
नीम करौली बाबा का जन्म उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर में हुआ था. मात्र 11 वर्ष की आयु में उनकी शादी कर दी गई. बाबा ने शादी के तुरन्त बाद घर छोड़ दिया. वैराग धारण कर लिया. 17 साल की उम्र में उन्हें ग्यान प्राप्त हुआ. घर छोड़ने के दस साल बाद उनका पता चला. पिता ने घर आ गृहस्त जीवन जीने का आदेश दिया. पिता का आदेश माना .दो पुत्र और एक पुत्री के पिता बने. गार्हस्त जीवन जीते हुए भी बाबा सामाजिक जीवन में व्यस्त रहते थे. बाबा हनुमान के बड़े भक्त थे. अपने जीवन में बाबा ने कुल 108 हनुमान मंदिर बनवाए थे. उनके भक्त उन्हें हनुमान का अवतार मानते थे.
बाबा को मधुमेह था. उन्हें कैंची धाम से जाते हुए मथुरा के पास डाइबिटिक अटैक आया. कोमा में जाने से पहले उन्होंने अपनी समाधि वृंदावन में बनाने की अपनी इच्छा बताई. 10 सितम्बर सन् 1973 को बाबा की मौत हो गयी.
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