ईरान के शाह के बादशाहत का अन्त.

ईरान के शाह मोहम्मद रजा पहलवी ईरान छोड़ने से पहले अपने विश्वास पात्र शाहपुर वख्तियार को प्रधान मंत्री बना चुके थे. ईरान में उनके खिलाफ हो रहे फसाद को देखते हुए उन्हें जल्द से जल्द ईरान छोड़ देना चाहिए था , पर उनके ईरान छोड़ने में एक पेंच फंसा हुआ था . बैंक में उनके हीरे जवाहरात पड़े थे, जिसे वे अपने साथ ले जाना चाहते थे . ये जवाहरात जमीन में 20 मीटर गहरे सेल्फ में रखे हुए थे. उन दिनों बैंकों की हड़ताल चल रही थी. शाह ने अपने सैनिकों को भेजकर बैंक पर दबाव बनाना चाहा, पर जिन्हें सेल्फ खोलने का पता था, वे इधर उधर छिप गये. कई दिनों का प्रयास का परिणाम सिफर रहा. शाह ने जवाहरात के लिए जो अतिरिक्त अभेद्य सुरक्षा कवच तैयार करवाया था, वह उनके हीं खिलाफ गई. अन्ततोगत्वा शाह को बिना जवाहरात लिए हीं जाना पड़ा.यह खजाना आज भी मौजूद है, जिसके लिए 500 अरब डालर का बीमा करवाया गया था.
16 जनवरी सन् 1979 को मोहम्मद रजा पहलवी ने आखिरी बार ईरान से अपनी पत्नी के साथ उड़ान भरी. वे खुद विमान उडा़ रहे थे. वे पहले जार्डन जाना चाहते थे, पर जार्डन के शाह ने विनम्रता पूर्वक मना कर दिया. वे नील नदी पर बने शीतकालीन रिसार्ट में पहुंचे ,जहां राष्ट्रपति अनवर सादात ने उनका स्वागत किया. वहां 5 दिन व्यतीत करने के पश्चात् शाह पहलवी मोरक्को पहुंचे. तय था कि वहाँ से वे अमेरिका चले जाएंगे .अमेरिका ने उन्हें राजनीतिक शरण देने का बचन दिया था.ऐन वक्त परअमेरिका ने अपना विचार बदल दिया. अब शाह को मोरक्को में रहने के सिवा कोई चारा नहीं था. तीन सप्ताह के बाद मोरक्को के शाह का ए डी सी उनका संदेश लेकर पहुंचा कि हम आपको शरण तो देना चाहते हैं, पर हालात अब बदल गये हैं. यह कितनी त्रासद पूर्ण बात है कि ईरान देश का शाह एक अदद छत के लिए दर ब दर हो रहा था. इसी गहरे कशमकश में ईरान के भूतपूर्व शाह मोहम्मद रजा पहलवी की मृत्यु इजिप्ट में 27 जुलाई सन् 1980 को महज 60 साल की उम्र में हो गई. मरने पर वतन की मिट्टी भी उनको नसीब नहीं हुई.
इतना बदनसीब है "जफर " दफ्न के लिए,
दो गज जमीन ना मिली कू -ए -यार में  .
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