तुलसी दास ने दशरथ और कौशल्या के पुत्री " शांता "के साथ न्याय नहीं किया.

बाल्मिकी रामायण के बाल कांड में शांता का जिक्र आता है. शांता कौशल्या और दशरथ की पुत्री थी, जब कि तुलसीकृत राम चरित मानस में इसका उल्लेख कहीं भी नहीं है. ऐसा लगता है कि तुलसी राम की मर्यादा अक्षुण्ण रखना चाहते थे. इसीलिए तुलसी ने राम को मर्यादा  पुरषोत्तम बनाने की लालसा में सीता का परित्याग भी नहीं दिखाया है. कुछ संदर्भ जैसे लव कुश का राम के साथ युद्ध, लव कुश द्वारा अयोध्या जा कर बाल्मिकी रचित रामायण का पाठ करना और सीता परित्याग के लिए राम को भरी सभा में धिक्कार करना आदि प्रसंग तुलसी द्वारा छोड़ दिए गए हैं.उसी तरह से शांता का प्रसंग तुलसी ने इस बिना पर छोड़ दिया है कि कहीं शांता का त्याग राम को मर्यादित करने के मार्ग में रोड़ा न बन जाए.
बाल्मीकि राम के समकालीन थे. उन्होंने जो देखा ,वह लिखा . रंच मात्र का भी प्रपंच नहीं लिखा. अत: बाल्मिकी रामायण को हीं मानक रामायण माना जाना चाहिए. शांता के होते हुए भी राजा दशरथ अपने को नि:संतान मानते थे ; क्योंकि उनका कोई पुत्र नहीं था, जो उनके मरने के बाद उनका राज काज सम्भाल सके.
अचानक अयोध्या में अनावृष्टि हो गई. 12 साल तक अयोध्या में वर्षा के आसार नहीं थे. लोगों ने इसका कारण शांता को बताया. राजा दशरथ को भी यह बात सही जान पड़ी. उन्हीं दिनों अंग प्रदेश के राजा रोमपद अपनी पत्नी वर्षिणी के साथ राजा दशरथ और कौशल्या से मिलने अयोध्या आए हुए थे. रोमपद राजा दशरथ के साढ़ू भाई थे.  रोमपद नि:संतान थे. दशरथ ने अपनी पुत्री शांता को रोमपद को दे दिया और खुश हुए कि अब उनके राज्य में  बारिश होगी. लेकिन बारिश नहीं हुई. होनी तो होकर मानती है. इसके लिए शांता को दोषी मानना कहाँ तक उचित था?
रोमपद और वर्षिणी शांता को पुत्री के रुप में पाकर बहुत खुश हुए. वे उसे अंग प्रदेश लाए. एक दिन की बात है. राजा रोमपद शांता से बात करने में मशगूल थे. उसी समय एक ब्राह्मण राजा से कृषि के लिए शासन की तरफ से हल चलाने की मदद मांगी . शांता से बात करने की वजह से राजा उस ब्राह्मण की बात नहीं सुन सके. कुपित ब्राह्मण उसी समय अंग प्रदेश छोड़कर चला गया. वह ब्राह्मण इंद्र का भक्त था. इंद्र नाराज हो गए. अंग प्रदेश में वर्षा कम हुई. राजा रोमपद श्रृंग ऋषि के शरण में गए . ऋषि ने इंद्र को प्रशन्न करने के लिए अंग प्रदेश में अनुष्ठान करने का आदेश दिया. अनुष्ठान हुआ. बारिश हुई और जम कर हुई.पूरे अंग प्रदेश में अच्छी फसल हुई. पूरी प्रजा धन धान्य से परिपूर्ण हुई. खुश हो राजा रोमपद ने शांता की शादी श्रृंग ऋषि से कर दी. श्रृंग ऋषि वहीं अंग राज्य में रहने लगे.
श्रृंग ऋषि के अनुष्ठान की चर्चा अयोध्या तक पहुंची. राजा दशरथ ने अपने साढ़ू रोमपद से अयोध्या में भी किसी ऐसे अनुष्ठान का आयोजन  करवाने के बावत अनुरोध किया ,जिससे उन्हें पुत्र प्राप्ति हो सके. श्रृंग ऋषि ने ऐसे अनुष्ठान के लिए मना कर दिया. पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठ अनुष्ठान का आयोजन करना पड़ता है, जिसमें अनुष्ठान कराने वाले का अर्जित सारा पुण्य समाप्त हो जाता है. श्रृंग ऋषि अपना सारा पुण्य समाप्त नहीं करना चाहते थे. शांता से दशरथ का दुःख नहीं देखा गया. वे शांता के जैविक पिता थे. अतः उसने श्रृंग ऋषि से यह अनुष्ठान करने के लिए बहुत हीं अनुनय विनय किया. श्रृंग ऋषि मान गए ,पर उन्होंने एक शर्त रखी कि उनके साथ शांता भी अयोध्या जाएगी. राजा दशरथ को डर था कि कहीं शांता के आने से फिर अनावृष्टि न हो जाय. ऋषि अपनी शर्त पर अड़े रहे. बाद में शांता के साथ हीं ऋषि अयोध्या आए. जिस दिन शांता अयोध्या आई उस दिन प्रचंड बारिश हुई. इस प्रकार शांता के नाम से जुड़ी अनावृष्टि का अशुभ अब शुभ बन गया. अनुष्ठान सफल हुआ. तीनों रानियों को अनुष्ठान वाली खीर खिलाई गयी. निश्चित समय पर राजा दशरथ चार पुत्रों -राम, भरत, लक्षमण और शत्रुघ्न के पिता बन गए . किन्तु इस प्रक्रिया में श्रृंग ऋषि का सारा पुण्य तिरोहित हो गया. शांता को अपने पति ऋंग ऋषि  के साथ महलों का सुख छोड़ वन में पुनः पुण्य अर्जन हेतु तप करना पड़ा.
अयोध्या से 39 कि मी की दूरी पर जहाँ
पुत्रेष्ठ अनुष्ठान हुआ था, वहां आज भी शांता और श्रृंग की समाधियां हैं . कुल्लू से 50 कि मी दूर हिमाचल प्रदेश में शांता और श्रृंग का मंदिर है, जहां देश विदेश से हजारों लोग दर्शन के लिए आते हैं ; परन्तु राम ने क्या किया?  वनवास के दौरान वे तप रत श्रृंग ऋषि और शांता के आश्रम के करीब से गुजरे ,पर अपने जीजा व बहन से मिलना मुनासिब नहीं समझा. तुलसी ने अपने रामायण में शांता का उल्लेख नहीं किया तो उनके मर्यादा पुरषोत्तम राम ने मिलना नहीं चाहा -उस बहन से जो उनके पैदा होने की कारक थी.
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