एक था गीदड़
गीदड़ चूहे और खरगोश जैसे छोटे जानवरों का हीं शिकार कर पाता है । बड़े जानवरों का यह शिकार नहीं कर पाता , इसलिए शेर , बाघ , भेड़िया और लकड़बग्घों द्वारा छोड़े गये भोजन पर निर्भर करता है । देखने में यह कुत्ते और भेड़िए जैसा होता है , पर उनके जैसा यह दिलेर और साहसी नहीं होता । यह काफी डरपोक होता है । यह रात के अंधेरे में निकलता है और सुबह होते हीं अपने बिल में जा छुपता है । गीदड़ की चमड़ी ढोल बनाने के काम आती है । इसके पूंछ और खोपड़ी तांत्रिक क्रियाओं के काम आती है । इसलिए इसका अवैध शिकार होने लगा है । अरहर और गन्नों के खेतों में शिकारी बारुद से भरी चुकड़ी रख देते हैं । गीदड़ बारुद की गंध से आकर्षित होकर चुकड़ी तक पहुँचता है । चुकड़ी को सूंघता है । सूंघने के चक्कर में उसका थुथुन चुकड़ी से टकराता है और चुकड़ी फट जाती है । गीदड़ सांस न ले पाने की वजह से धराशायी हो जाता है । गीदड़ हुंआ हुंआ बहुत करते हैं । ऐसा करने से उनके नाक के ऊपर दबाव बढ़ता है । नाक के ऊपर एक बालों का गुच्छा सा बन जाता है , जो समय के साथ कड़ा होता जाता है । इसे गीदड़ सींगी कहा जाता है । गीदड़ सींगी हजारों गीदड़ों में किसी एक के पास होता है ।