मसूरी का भूतहा महल - राधा भवन

 मुम्बई से फोन आया था । कोई हमारे आई जी नैय्यर साहब का जानकार था । वह मसूरी में किसी भूतहा फिल्म की शूटिंग करना चाहता था । इसके लिए उसे किसी पुरानी हवेली की दरकार थी । आई जी साहब ने उसे राधा भवन में शूटिंग करने की सलाह दी थी ।

राधा भवन मसूरी में लाइब्रेरी के नजदीक स्थित है । यहाँ से पूरी मसूरी पर एक विहंगम दृष्टि डाली जा सकती है । वैसे मसूरी का विहंगम दृश्य लाल टिब्बा से भी देखा जा सकता है । राधा भवन के जाने वाले रास्ते पर लिखा है - यह एक निजी सम्पत्ति है । यहाँ प्रवेश वर्जित है । "

मैं राधा भवन 2007 में गया था । भवन की दीवारें बहुत मोटी हैं। इसकी छत गिर चुकी है । जगह जगह पानी के दाग नजर आते हैं । कई जगहों पर दीवारें गिर गयीं है । मलवे का ढेर पड़ा है । भवन से हटकर एक व्यू प्वाइंट भी है , जहाँ से मसूरी के अतिरिक्त देहरादून का भी नजारा लिया जा सकता है । कहते हैं कि यह किसी राजा का महल था । राजा का परिवार इसमें रहता था । लकड़ी की आग भड़कने से पूरा भवन जल गया था । साथ हीं इसमें रहने वाला परिवार भी जल मरा था । तब से इस महल को भूतिया महल कहा जाने लगा ।

ऐसा माना जाता है कि इस भवन के आस पास एक लड़की का साया नजर आता है । लेकिन ऐसा कोई दावा किसी की तरफ से पेश नहीं किया गया है । सब सुनी सुनाई बातें हैं । कई यू ट्यूबर यहाँ चोरी छिपे आकर वीडियो बना चुके हैं । किसी ने कोई भूत नहीं देखा है ।

कहते हैं कि राजा के वंशज आजकल कलकत्ता में रहते हैं । उत्तराखंड सरकार और भवन के मालिकों में कोर्ट में अदावत चल रही है । सरकार इस जगह का अधिग्रहण कर यहाँ अतिथि राज्य गृह बनवाना चाहती है । राजा के वंशज इस जगह को छोड़ना नहीं चाहते हैं । इस भवन के नीचे एक अच्छी खासी आबादी बस गयी है । ये लोग इस भवन के केयर टेकर के परिवार से हैं । इन्हीं लोगों ने इस भवन के भूतिया होने की अफवाह उड़ाई है ताकि आम लोगों की आवाजाही पर रोक लगाई जा सके ।

यह भवन 1800 ईसवी में बना था । कब यह भवन खण्डहर बना , इसकी कोई जानकारी नहीं है । इसका कुल रकबा 2 .50 हेक्टेयर है । यह जगह शेरगढ़ी के नाम से मशहूर है । राधा भवन की लोकप्रियता को देखते हुए लाइब्रेरी के नजदीक इसी नाम से एक होटल खुला है - Hotel Radha Residency   बनाया गया है । यह थ्री स्टार होटल है ।

राधा भवन खामोश खड़ा अपनी बरबादी की कहानी सुनाता रहा है । इसके अंतस्थल में कई राज दफन हो गये हैं ।

वही हवेली जो सुनसान अपनी दास्ताँ सुना रही अब                  रहते थे वो जो कल तक होने का एहसास करवा गए 


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