दक्षिण अफ्रीका की औरतें

 दक्षिण अफ्रीका की औरतें बहुत कर्मठ होतीं हैं । वे पुरुषों के मुकाबले बहुत  काम करतीं हैं । वहाँ पानी की बहुत किल्लत है। उनको बहुत दूर से पानी लाने जाना पड़ता है । पानी की कमी के कारण ये जीवन में केवल एक बार नहातीं हैं । वह भी जब उनकी शादी होती है । शेष जीवन ये जड़ी बूटियों को उबालकर उनके धुएँ से अपने को साफ करतीं रहतीं हैं । ये एक विशेष प्रकार के लोशन का भी इस्तेमाल करतीं हैं , जो जानवरों की चर्बी और हेमेटाइट के पावडर से तैयार किया जाता है । इस लोशन की वजह से इन्हें कीड़े नहीं काटते ।

ये औरतें गायों को दुहती भी हैं । जिस औरत के पास जितनी अधिक गायें होतीं हैं , उसे उतना हीं सम्मान की नजर से देखा जाता है । महिलाओं के पास केवल अधोवस्त्र होता है , जो लुंगी की तरह हीं होता है ।  पुरुष मात्र गाय चराना जानते हैं । वे बहुत दूर तक गाय चराते हुए निकल जाते हैं । 

दक्षिण अफ्रीका की विधवाओं की समाज में हालत बहुत बदतर होती है । उन्हें मरे हुए पति की लाश को नहलाना पड़ता है । मृतात्मा की मुक्ति के लिए लाश के पानी को पीना पड़ता है । विधवा की अपनी कोई मर्जी नहीं होती । उनसे बगैर पूछे उनकी शादी पति के किसी निकटतम रिश्तेदार से कर दी जाती है । पत्नी को पति की जायदाद से मरहूम कर दिया जाता है । तमाम दुनियां में जितनी विधवाएं हैं उसका  10% केवल दक्षिण अफ्रीका में हैं ।

दक्षिण अफ्रीका में औरतों के साथ बलात्कार अक्सर होते रहते हैं । यहाँ हर 17 सेकण्ड में एक बलात्कार होता है । इसीलिए दक्षिण अफ्रीका को दुनियां का " रेप कैपिटल " कहा जाता है । कई बार महिलाओं के साथ बलात्कार इसलिए भी होते हैं कि बलात्कारी उन्हें सबक सिखाकर सुधरने का एक मौका देते हैं ताकि वे भविष्य में अपनी मनमानी न कर सकें । ऐसे रेप को "करेक्टिव रेप " कहा जाता है । हर सप्ताह दस के करीब " करेक्टिव रेप " होते हैं ।

दक्षिण अफ्रीका में औरतों को एक वस्तु माना जाता है । जब कोई अधिकारी दूर के हलकों में विजिट करने जाता है तो उसे दुधारु गाय मय बछड़े के साथ दी जाती है । एक औरत भी सौगात के रुप में प्रदान की जाती है । औरतों की बकायदा उस अधिकारी के सामने परेड करायी जाती है । जो औरत उसे पसंद आती है उसे वह सौंप दी जाती है । वह औरत भी बिना चीं चापड़ किए हीं उस अधिकारी के साथ चल देती है । मानो वह उसकी गाय हो ।

टिप्पणियाँ

  1. विचित्र किंतु मार्मिक सत्य
    आश्चर्यजनक यह है कि इसके लिये कोई स्त्री संघठन या मानवाधिकार आयोग या संस्था ने आवाज नही उठाई

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