फटी जींस
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीर्थ सिंह रावत ने कहा है कि वे महिलाएँ अपने बच्चों को क्या संस्कार देतीं होंगीं , जो खुद फटी जींस पहनतीं हैं । वैसे सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच ने निजता के आधार को मौलिक अधिकार माना है । कौन क्या खाता है ? क्या पीता है ? क्या पहनता है ? यह उसका निजी मामला है । इसके लिए संविधान है , जो लोगों की निजता की रक्षा करता है ।
तीर्थ सिंह रावत के इस बात से हड़कम्प मच गया है । लोग पक्ष विपक्ष के खेमे में बंट गये हैं । मैं भी इस पर अपनी बात रखना चाहता हूँ । जहाँ तक खाने पीने का प्रश्न है । यह हर किसी का निहायत हीं निजी मामला है । जिसे जो पसंद आए खाए पिए । हमें उससे कोई मतलब नहीं है , क्योंकि वह जो खाएगा पिएगा , उसका स्वाद भी वही लेगा । हम उसके स्वाद से अनभिज्ञ होंगे । इसलिए जो खाता पीता है , वह उसकी निजी पसंद होती है ।
लेकिन पहनावा उसका निजी मामला नहीं है । कारण , कोई क्या पहनता है , कैसे पहनता है ; उसे हम देखते हैं । उस पर अपनी पसंद नापसंद जाहिर करते हैं । फिर वह उसका निजी मामला कैसे हो गया ? यदि आपकी घर की बेटी बहू शालीन कपड़े पहने तो आप उसे पसंद करते हैं । यदि वह कपड़ा शालीनता से परे है तो आपको बरबस मुँह फेरना पड़ता है । अतएव यह किसी का निजी मामला कभी नहीं हो सकता है ।हमारे यहाँ इस बात पर एक कहावत प्रसिद्ध है -
" खाना मनपसंद , पहनावा जगपसंद "
मर्द जब औरतों के कपड़े पहनते हैं तो उन पर समाज कटाक्ष करता है । उन पर तरह तरह की फब्तियां कसी जातीं हैं । उन्हें जनखा या मेहरा शब्दों से नवाजा जाता है । उन पर मानसिक विकृति होने का आरोप लगाया जाता है । लेकिन जब औरतें मर्दों के कपड़ें पहनतीं हैं तो उनको विकृत मानसिकता , मर्दाना औरत जैसे विशेषण क्यों नहीं दिए जाते ? वैसे भी औरतों को मर्दाना कपड़े क्यों पसंद होते हैं ? उन्हें अपने कपड़े पहनने चाहिए । मर्द के कपड़े पहनकर भी भाव तो औरतों के हीं रहेंगे । फिर मर्दाना कपड़े पहनने की होड़ क्यों ?
औरतें जींस पहन रहीं हैं । वह जींस जो घुटनों और जांघों पर फटी रहतीं हैं । तीर्थ सिंह रावत ने इस बात को औरत के संस्कार से जोड़ा तो हाय तोबा मच गयी । आज तक की एंकर अंजना ओम कश्यप चिल्ला चिल्ला कर पूछ रहीं हैं- उनकी नजर उस औरत के घुटनों पर कैसे गयी ? जहाँ भी कोई चीज असहज करने वाली होती है , वहाँ नजर अपने आप जाती है। कोई जान बूझकर अपनी नजर वहाँ नहीं ले जाता । कोई लाख अपनी नजर बचाए , नजर वहाँ जाएगी हीं ।
कहने वाले कहते हैं कि फटी जींस पहनना एक फैशन होता है।मैं पूछता हूँ कि फैशन किसलिए किया जाता है ? दिखाने के लिए । कोई जंगल में रहकर फैशन तो करेगा नहीं । करेगा तो देखेगा कौन? यदि आप शहर में रहकर फैशन करेंगे तो देखने वाले देखेंगे । उसी प्रक्रिया के तहत तीर्थ सिंह रावत की नजर वहाँ पहुँची । उनको यह फैशन पसंद नहीं आया । उन्होंने अपनी नापसंदगी जाहिर कर दी । इस बात की संविधान उनको भी आजादी देता है । उन्हें भी बोलने की आजादी है। उन्होंने इसी आजादी का दामन थामा है ।
यदि जींस घुटनों पर फटा है , जांघों पर फटा है तो कुछ लोग मुँह फेर लेंगे , कुछ लोग ललचाई नजरों से देखेंगे । जो मुँह फेर लेंगे वह भी अपनी जगह सही हैं । उन्हें वह फैशन पसंद नहीं आया , नहीं देखेंगे । जो देख रहे हैं , उन्हें भी कोई रोक नहीं सकता । फैशन देखने के लिए हीं होता है । वैसे मैं यहाँ स्पष्ट करना चाहूँगा कि फटी जींस पहनना प्रदर्शनकामिता की श्रेणी में आता है ।
कुछ लोग कहते हैं सोच बदलो । अपनी मानसिकता बदलो । लेकिन कैसे ? कोई अपनी नग्नता प्रदर्शित कर रहा हो तो सोच और मानसिकता कैसे बदल लेगा कोई ? हाँ , वह उस जगह को छोड़ के जा सकता है। प्रदर्शन करने वाला अपनी जगह पर रहेगा । उसकी अपनी सोच व मानसिकता उसके साथ रहेगी । आपको अपनी सोच व मानसिकता को फोल्ड कर वहाँ से भागना होगा ।
अरुणांचल के लोगों ने अपनी सोच व मानसिकता नहीं बदली थी । लड़कियाँ छोटे छोटे कपड़े पहनकर काॅलेज जातीं थीं । शिक्षकों की भी सोच नहीं बदली । शिक्षकों को पढ़ाने में दिक्कत आती थी । उन्होंने अभिभावकों को बुलाया । एक आचार संहिता बनाई गयी , जिसका कड़ाई से पालन किया गया । उसके बाद कोई भी लड़की छोटे कपड़ों में काॅलेज जाती नहीं मिली । सोच व मानसिकता हालात की सदैव समानुपाती होती है ।
अतिसुंदर। लाजवाब।
जवाब देंहटाएंमैं आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ। मेरा मानना है कि स्त्री शरीर पुरुष के लिए सदैव आकर्षण का केंद्र रहा है और रहेगा, क्योंकि यह प्राकृतिक व्यवस्था है। जब सभी लोग नंगे घूमते दिखाई देंगे तो हो सकता है वह चुम्बकीय आकर्षण भी न रहे। परन्तु निकट भविष्य में यह सम्भव नहीं लगता। वैसे भी सुन्दर लगने के और बहुत से साधन हैं। भोजन नितांत निजी है, परन्तु मदिरा सेवन निजी नहीं। सामाजिक बुराइयों में आता है और पारिवारिक हिंसा अपराध की श्रेणी में है। इसे कौन उचित कह देगा। मैं आदरणीय मुख्यमंत्री जी का समर्थन करती हूँ। बुराई के विरुद्ध कोई तो आवाज़ उठाकर बलि का बकरा बनेगा ही। कुछ बिगड़ी हुई लड़कियाँ इस प्रकार की पहल करती हैं और फिर अच्छे भले शालीन घरों की लड़कियाँ वही मांग करने लगती हैं। देखते-देखते पानी सरों से ऊँचा निकल जाता है।
हटाएंआभार आपका
हटाएंमैं बिल्कुल भी सहमत नही ,अगर पहनावा निजी मामला नही तो खाना पीना कैसे निजी हो गया,पाइन में आप अगर शराब पीते है और शराब पीकर घर की औरत से मारपीट करते है या बाहरी औरत से छेड़खानी करते है तो ये निजी कैसे हुआ,रही बात फटी जीन्स तो ये वही पहनती है जिनका परिवेश वैसा होता है ,फिर तो औरतों को साड़ी भी नही पहनना चाहिए पेट और कमर दिखता है,पैरों से भी ज्यादा ललचाने वाली जगह, दूसरे बात किसी इंस्टीट्यूशन की तो वहाँ मेरा भी मानना है कि यूनिफॉर्म होनी चाहिए क्योंकि वहाँ हर वर्ग का बच्चा आता है और बच्चे वहाँ पढ़ने आते है तो फ़ैशन से अछूते होने चाहिए
जवाब देंहटाएंयह आपकी अपनी सोच है । इस सोच के लिए आपको संवैधानिक अधिकार प्राप्त है । लेकिन मैं आपसे सहमत नहीं हूँ । सादर ।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंजहां तक पहनावे का सोच है वो तो हर महिला पुरुष की निजी फैसला है पर ये फ़ैसला हमें अपनी समझ,समाज,और अपनी सभ्यता की सुरक्षा को लेकर करनी चाहिए । ये तो हम मानते हैं गंदगी हमारे पहनावे में नहीं, हमारे ग़लत सोच,संस्कार और अमर्यादित होने से है , परन्तु कुल मिलाकर जब हम सार्वजनिक रूप से बाहर निकलते हैं तो अपने पहनावे पर जरूर विचार कर के निकलना चाहिए, और अपने पहनावे से अपनी सोच, संस्कार को लज्जित नहीं करनी चाहिए सिर्फ और सिर्फ आधुनिकता के नाम पर 🙏🙏
जवाब देंहटाएंजहां तक पहनावे का सोच है वो तो हर महिला पुरुष की निजी फैसला है पर ये फ़ैसला हमें अपनी समझ,समाज,और अपनी सभ्यता की सुरक्षा को लेकर करनी चाहिए । ये तो हम मानते हैं गंदगी हमारे पहनावे में नहीं, हमारे ग़लत सोच,संस्कार और अमर्यादित होने से है , परन्तु कुल मिलाकर जब हम सार्वजनिक रूप से बाहर निकलते हैं तो अपने पहनावे पर जरूर विचार कर के निकलना चाहिए, और अपने पहनावे से अपनी सोच, संस्कार को लज्जित नहीं करनी चाहिए सिर्फ और सिर्फ आधुनिकता के नाम पर 🙏🙏
जवाब देंहटाएं