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औरतों का दिमाग उनके घुटनों में होता है

 जब औरतों ने लिखना शुरू किया तो उन्हें बहुत डर लगा था । उनका डर वाजिब था । उस दौर में पुरुष लेखक औरतों को कोई भाव नहीं देते थे । उन्हें कोई गम्भीरता से नहीं लेता था । यही कारण था कि फ्रांस की कोलेत ने जो भी लिखा अपने पति के नाम से लिखा । कोलेत के पति बैठे बिठाए एक बड़े लेखक बन गये । कोलेत बेचारी आजीवन नेपथ्य में रही ।

मेरी इन इवान ने भी पुरुष नाम से लिखा था । जार्ज इलियट एक काल्पनिक पुरुष नाम था । मेरी इन इवान ने मइस नाम से एक उपन्यास लिखा था । उपन्यास का नाम " मिडिल मार्च " था । उपन्यास काफी लोकप्रिय हुआ । बाद में इस उपन्यास पर " लिटिल गर्ल " नाम से एक फिल्म भी बनी थी । एल्काट भी ए एम वर्नाड के नाम से लिखतीं थीं ।

औरत खुद लिखे तो लोग विश्वास नहीं करते थे । उस समय की मान्यता थी कि औरतों के पास दिमाग नहीं होता । होता भी है तो वह उनके घुटनों में होता है । प्रेमचंद की पत्नी थीं शिवरानी देवी । जब शिवरानी देवी ने अपने नाम से लिखना शुरू किया तो लोगों को विश्वास नहीं हुआ । लोगों ने कहा कि लिखते प्रेमचंद हैं और नाम होता है शिवरानी देवी का । शिवरानी देवी ने " प्रेमचंद घर में " लिखा था । इसमें प्रेमचंद के विवाहेत्तर संबंध उजागर हुए थे । अगर प्रेमचंद ने इसे लिखा होता तो वे अपना  प्रेम संबंध क्यों उजागर करते ?

हमारे एक सेनानी साहब की पत्नी भी बड़ी विदुषी थीं । वे आंग्ल भाषा में पारंगत थीं । उन दिनों आंग्ल भाषा में हीं सारे सरकारी काम हुआ करते थे । सेनानी महोदय दिन भर यूनिट/मेस का निरीक्षण करते और शाम को सारी डाक उनके घर पहुँचा दी जाती । श्रीमती सेनानी सारे डाक निपटा देतीं थीं । पत्राचार के लिए ड्राफ्ट भी वही बनातीं थीं । सेनानी महोदय का काम केवल हस्ताक्षर करना होता था । इस तरह से वे सदा नेपथ्य में हीं रहकर अपने पति का हाथ बंटातीं रहीं ।

जब 1909 में सेलमा ओटिइला लोविसा को साहित्य का पहला नोबल पुरस्कार मिला तो सारी दुनियां की आंखें खुलीं की खुलीं रह गयीं । दुनियां को पता चल गया कि औरतों को भी लिखना आता है ।


स्वागत गान करेगा कौन ?

 राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर जिलों की सीमा पर एक गाँव है देवड़ा । इस गाँव में लड़कियों को पैदा होते हीं मार दिया जाता है । मारने के तरीक़े भी बड़े लोम हर्षक हैं । नवजात शिशु से निजात पाने के लिए उसके मुंह में नमक ठूस दिया जाता है ।उसका गला दबा दिया जाता है या उसके मुँह पर भारी भरकम तकिया रख दिया जाता है । ये तरीके बड़े हीं निर्दयी हैं । इसमें बच्ची तड़प तड़प कर मरती है । एक और भी तरीका है , जिसमें बच्ची को जरा भी तकलीफ नहीं होती है । बच्ची को अफीम की डोज ज्यादा मात्रा में दे दी जाती है । बच्ची नींद में हीं  चल बसती  है ।                                                                        

जैसलमेर और बाड़मेर  इलाके में लिंगानुपात  क्रमशः 897 व 791है । इतनी कम संख्या होने के कारण बहुत से पुरूषों को कुंआरा रहना पड़ रहा है । राजस्थान में बहुत से ऐसे गाँव हैं, जहाँ लड़कियों का दीदार बड़ी मुश्किल से होता है । ऐसे गाँव  के लोग कभी बड़े फक्र से कहा करते थे कि हमारे गाँव में बारात नहीं आती है । हरियाणा में भी लड़कियों की बहुत कमी है । पश्चिमी उत्तर प्रदेश भी इससे अछूता नहीं है । ऐसे में लोग उड़ीसा , नेपाल और बंगाल से लड़कियों की आपूर्ति  कर रहें हैं । कोई जाति धर्म नहीं पूछता । केवल खानदान चलाना उद्देश्य रह गया है ।

दूसरे प्रांत से आई इन कन्याओं को नए माहौल में रचने बसने में  समय लगता है । बंगाल से एक कन्या भगाकर लाई गयी थी । नया माहौल उसे माफिक नहीं आ रहा था । वह दिन रात रोती रहती थी । कलपती रहती थी । उसके रोने से अड़ोस पड़ोस के लोग भी दुःखी रहने लगे । किसी ने सलाह दी कि इस लड़की को इसके घर पहुंचा  देना चाहिए । इस बात पर लड़ाई हो गयी । परिवार के लोगों  ने उस आदमी से कहा था कि तुझे इसके रोने धोने से कोई मतलब नहीं है । तुझे इस बात का गम है कि हमारे घर में रोटी पानी का सुख हो गया है । रोटी पानी का सुख किसी को दुःखी कर के हासिल नहीं किया जा सकता ।

इन कन्याओं का दुःख वाजिब है । एक माहौल से उखड़ कर दूसरे माहौल में जमने में समय लगता है । पौधा भी एक जगह  से दुसरी जगह लगाने से उदास निराश रहता है । जबकि उसकी जड़ों में पहले वाले स्थान की कुछ मिट्टी भी होती है । उसकी पत्तियां दो तीन दिनों तक झुकीं रहतीं हैं । फिर पानी खाद पाकर वह हरा भरा होता है । इन भगाकर या खरीदकर लाईं गयीं लड़कियों की सभ्यता संस्कृति अलग होती है । भाषा अलग होती है । उनका पति से केवल दैहिक रिश्ता रहता है । वे पति से मानसिक स्तर पर जुड़ नहीं पातीं हैं । 

जब इन कन्याओं के बच्चे हो जाते हैं तो ये मानसिक स्तर पर भी जुड़ भी जाती हैं । कुछेक के बच्चे नहीं होते । वे भाग जातीं हैं  । कुछ भागने में सफल हो जातीं हैं । कुछ भागते हुए पकड़ीं जातीं हैं । फिर तो ताजिंदगी वे विसूरतीं रहतीं हैं । रोतीं रहतीं हैं। उनके मां बाप उन्हें भूल गये होते हैं। ससुराल में इनका दम घुटता है । उनकी जिंदगी तबाह हो गयी रहती है । साथ में पति महोदय भी चैन से जी नहीं पाते । उनके रोटी पानी का यह सुख एक नासूर बनकर रह जाता है , जिससे पीव रिसता रहता है ।

औरतों की बेकदरी की तो यही हाल होगा । कन्या भ्रूण को पेट में हीं मार देना , कन्या ने जनम ले लिया है तो उसे कुपोषित कर मार डालना । ये ऐसे पाप हैं  जो अब फलित हो रहे हैं ।

 सुख का स्वाद लिया है तूने अब विषपान करेगा कौन               दुःख को आप बुलाकर घर में स्वागत गान करेगा कौन 


टिप्पणियां

  1. लोमहर्षक यथार्थ।आखिर यह समाप्त कैसे होगा,इसके लिए तो स्थानीय स्तर पर ही पहल करने होंगें।

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  2. लोमहर्षक यथार्थ।आखिर यह समाप्त कैसे होगा,इसके लिए तो स्थानीय स्तर पर ही पहल करने होंगें।

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  3. लोमहर्षक यथार्थ।आखिर यह समाप्त कैसे होगा,इसके लिए तो स्थानीय स्तर पर ही पहल करने होंगें।

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  4. लोमहर्षक यथार्थ।आखिर यह समाप्त कैसे होगा,इसके लिए तो स्थानीय स्तर पर ही पहल करने होंगें।

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