औरत मार्च

 आज भी रुढवादियों का कहना है कि औरत की जगह चादर और चारदिवारी में है । हमारे गाँव में भी जवान औरतें चारदिवारी में हीं कैद रहतीं रहीं हैं । जब कभी वे बाहर निकलती तो एक मध्यम आकार का चादर ओढ़कर हीं बाहर निकलतीं । साथ में घूंघट भी काढ़ लेतीं थीं । अब जब महिला दिवस मनाया जाने लगा है तो कुछेक लोगों की आंखें आश्चर्य से फैलने लगीं हैं । पहली बार न्यूयार्क की सड़कों पर 15 हजार महिलाओं ने धरना प्रदर्शन किया था । उनकी मांग थी कि उन्हें भी वोट का अधिकार मिलना चाहिए । उनके काम करने के घण्टे कम किए जांए , लेकिन वेतन पुरुषों के बराबर मिलें । उन्हें घर पर भी काम करना होता है ।

औरतें आज  घर और बाहर दोनों जगह काम करतीं हैं । उनके काम करने का समय पुरुषों के बराबर हीं है , पर वेतन उनसे कम मिलता है । वैसै औरतें घर आकर भी काम करतीं हैं । उस काम का कोई मूल्यांकन नहीं होता । घर उनका है तो घर का काम भी उनका हीं है । उसमें घर के किसी पुरुष सदस्य ने मदद कर दी तो यह उनका बड़ा एहसान माना जाता है । 

पिछले तीन सालों से पाकिस्तान में महिला दिवस के मौके पर " औरत मार्च " का आयोजन होने लगा है । इस आयोजन से रुढिवादी लोग खिसिआने लगे हैं । टी वी डिवेट पर पाकिस्तान के एक मशहूर लेखक खलील उर रहमान ने मारवी सिरमद को बेहद भद्दी गाली दे दी । मारवी सिरमद पाकिस्तान की जानी मानी एक्टिविस्ट , नारीवादी और श्रेष्ठ विश्लेषक हैं । इतने बड़े लेखक का गाली देना बिल्कुल शोभा नहीं देता ।

"औरत मार्च " का प्रसिद्ध नारा है - My body , my choice(मेरा जिस्म , मेरी मर्जी )  ।" मेरा जिस्म मेरी मर्जी " कहने पर भड़कने की कोई जरुरत नहीं है । यह कोई गाली नहीं है । इसका मतलब यह है कि औरत अपने जिस्म की स्वंय मालकिन है । इस पर किसी और का मालिकाना हक नहीं है । ऐसे में वह अपनी मर्जी से अपना शरीर सौंपेगी । इसके लिए वह मिस्टर राइट का खुद चुनाव करेगी । कोई जोर जबरदस्ती नहीं कर सकता है । कोई बलात्कार नहीं कर सकता ।

ज्ञातव्य हो कि इस नारे पर वहाँ की किसी अदालत ने रोक लगा दी है ।पता नहीं अदालत को इस नारे में क्या खामी नजर आयी । मुझे तो कोई बुराई नजर नहीं आई । भाई , औरत का जिस्म अपना है तो मर्जी तो उसकी हीं चलेगी ।  यहाँ तक कि उसकी मर्जी के बगैर उसका पति भी उसके जिस्म को हाथ नहीं लगा सकता । अगर हाथ लगाया तो उसका यह कृत्य जघन्य माना जाएगा और बलात्कार की श्रेणी में गिना जाएगा ।

"मेरा जिस्म , मेरी मर्जी " को कट्टर पंथियों ने अश्लील करार दिया है । बहुत से लोगों ने सड़कों पर उतर कर इसका विरोध किया है । भारत में भी जब औरतों ने " मी टू " आंदोलन चलाया था तो बहुतों ने उन्हें झूठी और बेगैरत कहा था । इस साल भी 8 मार्च आ रहा है । महिला दिवस पर फिर " औरत मार्च " का प्रदर्शन होगा । फिर कट्टर पंथियों के तेवर गरम होंगे ,लेकिन हजारों साल से दबायी कुचली गयी नारी के तेवर अब कभी नरम नहीं होंगे । कारण , उसे अपने हक के लिए लड़ना आ गया है ।

टिप्पणियाँ

  1. अब तो औरतें मर्दों से भी आगे निकल रही हैं

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  2. इसमें पूर्ण बदलाव होने में अभी सदियां लगेंगी सर

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  3. कानूनों में भी राइट ऑफ इक्वलिटी होना चाहिए.
    एक महिला अगर पुरुष पर झूठा केस कर दे तो कोई भी पुरुष, दूसरे पुरुष का साथ नहीं देता. न पुलिस न कानून.
    यह भी एक पहलू है!

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