औड़िहार का नाम पहले हूणहार था
पूर्वांचल में भेड़िया को हुणार कहा जाता है । हुणार शब्द की व्युत्पति हूण शब्द से हुआ है । हूण एक बर्बर जाति थी , जो कि बहुत लड़ाकू थे । वे जिस देश पर आक्रमण करते थे , उस देश का समूल विनाश करके छोड़ते थे । वे उस देश के बच्चों तक को भी जीवित नहीं छोड़ते थे । उन्हें भी मार देते थे । भेड़िया भी बच्चों को उठाकर ले जाते थे । इसलिए पूर्वांचल में भेड़िए हुणार कहे जाने लगे । माताएं रोते हुए बच्चों को चुप कराने के लिए कहा करतीं थीं - चुप हो जाओ , बरना हुणार आ जाएगा ।
बनारस के नजदीक गाजीपुर जनपद का औड़िहार नगर स्थित है । यहीं पर पाटलिपुत्र का राजा स्कंद गुप्त ने आगे बढ़कर हूणों का सामना किया था । जब वह हूणों से समर ले रहा था तब उसके पिता कुमार गुप्त मृत्यु शय्या पर थे । दुःखी मनःस्थिति में होते हुए भी स्कंदगुप्त ने हूणों से डटकर लोहा लिया था । वह युद्ध भूमि में जमीन पर सोता था । सेना राजा को अपने बीच पाकर एक नयी ऊर्जा से लवरेज थी । दो लाख की हूण सेना को गाजर मूली की तरह काटकर फेंक दिया था स्क॔दगुप्त की सेना ने । उसके पास चतुरंगिणी सेना थी ।
हूण हार गये थे । इसलिए इस जगह का नाम " हूणहार " रखा गया , जो कालांतर में औड़िहार बन गया । हूण सेना के बचे खुचे लोगों में से कुछेक स्वदेश लौट गये थे अपनी पराजय की कहानी सुनाने के लिए । मरे हुए लोगों का हाल सुनाने के लिए उनकी विधवाओं को । कुछेक यहीं बस गये थे । आज भी राजस्थान , हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुर्जर हूण रहते हैं । उनका गोत्र हूण है । ये हूण यहाँ की संस्कृति में रच बस गये हैं ।
जीत के तुरंत बाद स्कंदगुप्त ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी । उसने औड़िहार ( हूणहार ) के नजदीक स्थित वर्तमान सैदपुर तहसील के अंतर्गत आनेवाले भीतरी ( भिमुत्री ) गाँव के पास एक विजय स्तम्भ बनवाया । उसने इस स्तम्भ पर अपनी विजय गाथा लिखवाई थी । भिमुत्री गाँव को अपने आराध्य देव विष्णु को अर्पण किया था ।
हूण बोल्गा नदी के पूर्व में रहते थे । इनके नेता का नाम अट्टिला था । अट्टिला ने यूरोप पर चढ़ाई की थी । उसने सम्पूर्ण रोम को तहस नहस कर दिया था । उसने रुस पर भी चढ़ाई की थी । रुस में इतनी मार काट मचाई कि बोल्गा नदी रक्तरंजित हो गयी थी । ये अश्वेत हूण थे ।
भारत पर चढ़ाई करने वाले श्वेत हूण थे । इनका नेता तोरमाण था । तोरमाण का पुत्र हीं मिहिरकुल था । मिहिरकुल एक क्रूर आक्रांता था । उसे पहाड़ से लुढकती हुई हाथियों को देखना बड़ा सुखद लगता था । वह अक्सर ऐसे आयोजन करवाता रहता था । मिहिरकुल ने भारत के मथुरा में बहुत लूट पाट की थी । उसने इस सांस्कृतिक नगरी को तबाह कर दिया था । स्कंदगुप्त से करारी हार मिलने के बाद हूणों की अगले पचास सालों तक भारत पर आक्रमण करने की हिम्मत नहीं हुई थी ।
हूण को चीनी भाषा में " ह्यून हू या हून हू " कहा जाता था । भारत में इन्हें हूण कहा जाने लगा । हूणों के डर से हीं चीन ने अपने चारों ओर खाई खुदवाई थी । दुनियां की सबसे लम्बी दीवार बनवाई थी । हूणों का अपना कोई धर्म नहीं था । वे जिस जिस धर्म के सम्पर्क में आते गये उसी को अपनाते गये ।भारत में कुछ बौद्ध बन गये थे तो कुछ ने सनातन धर्म को अपना लिया था । मिहिरकुल शिव भक्त था । उसने भारत में शिव का एक भव्य मंदिर बनवाया था ।
सर् हमलोग तरफ हुंडार कहा जाता है इसे और यह बकरी बहुत ले जाया करते थे आज आपसे बहुत सुंदर जानकारी मिली प्रनाम
जवाब देंहटाएंआभार आयुष्मान् !
जवाब देंहटाएंहूण शब्द प्राचीन संस्कृत में भी है। बटोरने या लेने के अर्थ में ३ धातु हैं-हुड संघाते (पाणिनीय धातु पाठ, ६/९८), हुडि (हुण्ड्) संघाते वरणे च (१/१६८, १७६)। इससे हुण्डिका (हुण्डी) तथा स्वर्ण मुद्रा अर्थ में हूण हुआ है। संस्कृत में हुण्ड का अर्थ बाघ, भेड़िया तथा उसी जैसा हुंड़ार हुआ है। हलायुध कोष (२७९) में हुड का पर्याय मेष, अवि (भेड़िया) तथा लगुड (लउर, लाठी), सैन्य आश्रय स्थान (छावनी), रथ के सींग जैसा (अंग्रेजी में Hood)। पद्मपुराण (२/१०३-१०७ अध्याय) के अनुसार पुरु की राजधानी गजाह्वय (गजनी) से उनके पौत्र नहुष का अपहरण हुण्ड दैत्य ने किया था। बाद में वसिष्ठ ने उसे छुड़ाया और नहुष ने हुण्ड का वध किया। यह हूण का मूल शब्द हो सकता है।
जवाब देंहटाएंअच्छी शोध ।
हटाएंहुणार , सियार ,और गीदड़ सब भाई भाई हैं क्या।
जवाब देंहटाएंये सभी कुत्तों के प्रजाति हैं ।
हटाएंये सभी आपस में गोतिया दयाद हैं ।
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