दुआओं में याद रखना
आयशा अहमदाबाद बाद की रहने वाली थी । उसकी ननिहाल जालौर राजस्थान में थी । वह अक्सर छुट्टियों में अपनी ननिहाल जाया करती थी । एक बार आरिफ के घर भी उसे जाना पड़ा था । शायद आरिफ के घर कोई गमी हो गयी थी । वह वहाँ मातमपुर्सी के लिए गयी थी । वहीं पर आयशा की आंखें आरिफ से चार हुईं थीं ।" प्यार का फसाना , बना ले दिल दीवाना , कुछ तुम कहो , कुछ मैं कहूँ " की तर्ज पर उनकी प्यार भरीं बातें शुरू हो गयीं थीं ।
6 जुलाई 2018 को आरिफ और आयशा परिणय सूत्र में बध गये थे । आयशा अपना पीहर छोड़ जालौर आ गयी । वह जालौर जहाँ उसके मामा रहते थे । उसके मामा एक नामी वकील थे । समय का पंख लगाकर उड़ रहा था । कहते हैं कि समय के एक पंख का रंग उजला और दूसरे पंख का रंग काला होता है । उजला रंग शांति व सौहार्द का प्रतीक है तो काला रंग दुःख का । आयशा के जीवन में कुछ दिनों बाद हीं दुःख का पहाड़ शामिल हो गया ।
आयशा के पति के जीवन में एक दूसरी लड़की आ गयी । वह उस लड़की के साथ आयशा के सामने वीडियो चैट करता था ।यही नहीं वह उस लड़की पर अपनी दौलत भी लुटाने लगा । आरिफ खान राजस्थान के ग्रेनाइट फैक्ट्री में सुपरवाइजर था । उसके पास इतनी दौलत नहीं थी कि वह उस लड़की पर बेपनाह खर्च कर सके । नतीजतन वह आयशा पर अपने मैके से पैसे लाने का दबाव डालने लगा । आयशा के पिता डेढ़ लाख तक की रकम आरिफ को दे चुके थे । फिर भी पैसे कम पड़ रहे थे । आरिफ ने अब आयशा के साथ मार पीट भी करनी शुरू कर दी थी ।
आयशा को आरिफ ने उसके मैके भेज दिया । इस तरह की घटना दो बार हुई । दूसरी बार तो हद हो गयी । जब आयशा के पेट का बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ तो आरिफ उसे देखने तक नहीं आया । मजबूर होकर आयशा के पिता ने दहेज प्रताड़ना का केस कर दिया । बात सुलझने की बजाय उलझती गयी । एक दिन आयशा ने आरिफ को फोन किया । उसने कहा कि यदि हालात यूँ हीं रहे तो एक दिन वह आत्महत्या कर लेगी । निर्मोही आरिफ ने कहा था -
" कर लो आत्म हत्या । आत्महत्या कर उसका वीडियो मेरे पास भिजवा देना ।"
यह बात आयशा के दिल में चुभ गयी । वह साबरमती के किनारे गयी । वहाँ वीडियो बनाया । वीडियो में उसने कहा था - --
" मेरा नाम आयशा-- आयशा आरिफ खान है ,,,,,, जो कुछ मैं करने जा रही हूँ , वह अपनी मर्जी से कर रही हूँ । किसी तरह का मुझ पर कोई जोर या दबाव नहीं है । मैंने अब तक सूकून की जिंदगी जी है । मेरे प्यारे डैड ! हम कब तक लड़ेंगे अपनों से । केस विड्रा कर लो । आयशा लड़ाइयों के लिए नहीं बनी है । आरिफ को आजादी चाहिए । उसे आजाद कर दो । मुझे खुशी है कि मैं अल्ला से मिलूंगी । उनसे पूछूंगी कि गल्ती कहाँ हुई मुझसे ?
माँ बाप अच्छे मिले । दोस्त भी अच्छे मिले । अल्ला से प्रे करती हूँ कि दुबारा इंसानों की शकल ना दिखाए । इस प्यारी नदी से प्रे करती हूँ कि यह मुझे अपने अंदर समां ले । इस दुनियां में आकर हमने यह सीखा कि प्यार दो तरफा होना चाहिए , एक तरफा नहीं ,,,,,,,,,,,,, चलती हूँ । दुआओं में याद रखना । क्या पता जन्नत मिले या न मिले । अलविदा !!"
इसके बाद आयशा ने अपने माँ बाप को फोन मिलाया । माँ बाप को उसने अपनी आत्महत्या की बात बताई । माँ बाप उसे मना करते रहे । चीखते , चिल्लाते और रोते रहे । वे उसे सब कुछ ठीक हो जाएगा का दिलासा देते रहे । लेकिन आयशा नहीं मानी । उसने वीडियो आरिफ को भेज दिया था । खुद को उसने साबरमती की गोद में सौंप दिया ।
आरिफ से किया हुआ वादा आयशा ने पूरा कर दिया था ।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें