ये नयन डरे डरे,,
पांतछुक मेरी पहली पोस्टिंग थी । पांतछुक में तकरीबन मैं चार साल से ज्यादा रहा हूँ । यहीं पर मेरी मुलाकात अशरफ से हुई थी । रंग उसका काला था । काश्मीरियों की तरह वह भी फिरन पहनता था । बोली भी कश्मीरी थी , लेकिन कुछ बात तो ऐसी थी जो उसे कश्मीरी लोगों से अलग रखती थी । जी हाँ, उसका अगले टोन था । वह हिंदी बोलते समय भी लहजा बिहारी हीं रखता था । आम तौर पर कश्मीरी हिंदी या उर्दू बोलते समय एक खास लहजे में बात किया करते थे ।
अशरफ एक दिन मेरे दफ्तर में किसी काम से आया था । मैंने उससे पूछा था -
"तुम रहने वाले कहाँ के हो ? रंग रुप और बोलने के लहजे से तो तुम किसी भी तरह से कश्मीरी नही लगते ।"
अशरफ हँसा था -
"सर, मैं आपके पड़ोस के जिले छपरा का रहने वाला हूँ ।"
बातों हीं बातों में पता चला था कि वह जेवन गाँव में रहता है । पहले ट्रक पर खलासी का काम करता था । धीरे धीरे अब ट्र्क चलाना भी सीख लिया है । अब वह ट्रक ड्राइवर बन गया है । साथ हीं अपने मालिक की बेटी के दिल का मालिक भी बन बैठा है । मैंने पूछा था -
" क्या लड़की के घर वालों को पता है कि तुम उनकी लड़की को प्यार करते हो ?"
उसने किंचित चिंतित होते हुए कहा था -
" लड़की की माँ को पता है , पर वह भी इस रिश्ते को नकार रही है । वह कहती है कि जिस दिन लड़की के पिता को पता चलेगा वे तुम दोनों को गोली मार देंगे । "
कोई अपनी लड़की को किसी ऐसे आदमी को क्यों सौंपने लगा जो उनके यहाँ ट्रक ड्राइवर है । रंग रुप की बात छोड़ भी दें तो सभ्यता और संस्कृति अलग थी । केवल धर्म के नाम पर कोई अपनी लड़की इतनी दूर थोड़े व्याह देगा ।
समय पंख लगाकर उड़ता रहा । लड़की के पिता काम के सिलसिले में मेरे दफ्तर में आते रहते थे । जब भी अशरफ की बात चलती वो उसे एक अच्छा कर्मचारी बताते थे । एक अच्छे कर्मचारी और एक अच्छे दामाद में अंतर होता है । मुझे पता था कि कोई भी पिता एक ट्रक ड्राइवर को अपनी लड़की सौंपकर बिरादरी में अपनी नाक कटवाना नहीं चाहेगा ।
अशरफ बहुत बड़ा रिश्क ले रहा था । वह चांद को छूना चाहता था । यह नितांत असम्भव बात थी । मैंने यह बात कई बार अशरफ को समझानी चाही थी , लेकिन उसके दिमाग पर इश्क का पर्दा चढ चुका था । वह समझने के लिए तैयार नहीं था ।
मैं भी जेवन गाँव में हीं रह रहा था । कैम्प में क्वार्टर अभी बन रहे थे । जब तक क्वार्टर बनते तब तक मुझे किराए के मकान में हीं रहना पड़ रहा था । एक दिन अशरफ मुझे जेवन गाँव के सड़क पर टहलता हुआ मिल गया था । उसका चेहरा उतरा हुआ था । बाल अस्त व्यस्त थे । पता चला कि लड़की की शादी तय हो गयी है ।
मुझे पहले से हीं इस बात का इल्म था । मुझे पता था कि अशरफ इस मामले में कुछ नहीं कर सकता ।
एक दिन अशरफ मुझे मिला तो वह बहुत खुश नजर आ रहा था। उसके दिमाग में एक प्लानिंग चल रही थी , जिसे वह शादी के दिन आजमाना चाह रहा था । प्लानिंग प्रथम दृष्टया कामयाब लग रही थी । शादी वाले दिन अशरफ लड़की का हाथ पकड़कर सबसे कहना चाहता था कि वह लड़की से बेहद प्यार करता है । इस काम के लिए लड़की भी उसका हाथ बंटाने के लिए रजामंद थी ।
अशरफ का कहना था कि इस काम के एवज में उसकी बेइंतहा पिटाई हो सकती है , पर इस काम से शर्तिया बारात भी लौट जा सकती है । मैंने उसे असीम शुभकामनाएँ दी थीं ।
जिस दिन शादी थी, उस रात मैंने अशरफ की हड्डी पसली सलामत रहने की शिद्दत से प्रार्थना की थी ।
दूसरे दिन शाम को मेरे दफ्तर में अशरफ आया था । उसकी आंखें लाल हो रहीं थीं । शायद , वह पूरी रात बिल्कुल भी नहीं सो पाया था । मैंने उसे चाय पिलाई । काफी देर बाद उसने बोलना शुरू किया -
" सब कुछ पहले से तय था । तयशुदा काम को अंजाम देने के लिए मैं उठा था । लड़की के पास पहुँचने वाला हीं था कि अचानक मेरी आंखें लड़की की आंखों से टकरा गयी । मैंने उन आँखों में भय देखा था । उसकी हिरनी जैसी आंखें डरी हुईं थीं । लड़की उसे अपनी आंखों से इस काम को अंजाम देने के लिए मना कर रही थी ।"
अशरफ असंमजस में वहीं खड़ा रहा । तभी नेयर नेयर ( हटो हटो ) की आवाजें आने लगीं । वीडियो बनाने वाले और फोटोग्राफरों ने चिल्लाना शुरू कर दिया था । वह चुपके से एक किनारे जाकर खड़ा हो गया था । उसके सामने उसकी दुनिया लूट रही थी और वह खामोश खड़ा तमाशा देख रहा था ।
उसके बाद से मुझे अशरफ कभी दिखाई नहीं दिया । शायद वह अपने गाँव लौट गया था । कश्मीर ने उसका सब कुछ छीन जो लिया था ।
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