छींट के कपड़ों पर बैन लगा था कभी यूरोप में

 छींट हजारों साल पहले से भारत में बनाया जा रहा है । यह एक सूती वस्त्र होता है , जिस पर फूल पत्तियाँ , बेल बूटे काढ़े जाते हैं । पहले भारत की छींट अरब व्यापारियों के मार्फत यूरोप में पहुँचता था । अरबी लोग पहले अपना कमीशन काट  कर तब छींट को युरोपीय लोगों को बेचते थे । ऐसे में छींट महंगी पड़ती थी । छींट को सस्ती करने के लिए समुद्र मार्ग से भारत की खोज की गयी ।

बास्को डिगामा ने 15वीं शताब्दी में समुद्र मार्ग से भारत के दक्षिणी भाग पर कदम रखा था । वह यहाँ से मसालों और  कपड़ों की पहली खेप लेकर यूरोप पहुँचा था । चूँकि कपड़े कालीकट से ले जाए गए थे , इसलिए इन कपड़ों को कलिको कहा गया । ये कपड़े फूल पत्तियों वाले थे , इसलिए इनके भारतीय नाम छींट की तर्ज पर इन्हें chintz भी कहा गया । 

सुप्रसिद्ध उपन्यासकार जार्ज इलियट ने अपनी बहन को चिट्ठी लिखी थी -

" छींटदार कपड़े सबसे अच्छे हैं , पर इनका असर चिंटजी होता है ।" 

उस समय तक पूरे यूरोप के बाजारों में ढेर सारे नकली छींट आ गये थे । भारत से भेजे जाने वाले छींट के कपड़े कम पड़ने लगे थे । इसलिए इस कमी को पूरा करने के लिए व्यापारियों ने नकली छींट बाजार में उतार दी थी । इस नकली कपड़े को हीं इलियट ने चिंटीज कहा था ।

भारतीय छींट के कपड़े चमकदार व कड़क होते थे । नकली में ये गुण नहीं थे । लोग असली नकली की पहचान करने लगे थे , पर नकली छींट सस्ते पड़ते थे । इसलिए लोग नकली से हीं काम चलाने लगे थे । इस छींट पर एकाधिकार कायम करने के लिए यूरोपीय देशों में संघर्ष होने लगे । यह संघर्ष लगभग सौ सालों तक चला था । आखिर विजय इंगलैण्ड को मिली । इंगलैण्ड की कम्पनी "ईस्ट इण्डिया कंपनी " को भारत से व्यापार करने के लिए एकाधिकार मिल हीं गया ।

छींट का कारोबार यूरोप में इतना फैल गया कि स्थानीय लोगों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया । स्थानीय कपड़ों की खफत घट गयी । हारकर यूरोप में छींट की विक्री पर प्रतिबंध लगाना पड़ा । इससे स्थानीय कपड़ों को बाजार में जगह मिली , पर छींट पूरी तरह से "आउट आफ मार्केट " नहीं हुआ । इसका उपयोग पहनने में बेशक कम हो गया , पर आंतरिक साज सज्जा में इसका उपयोग बढ़ गया ।

लोग अपने घरों के पर्दे छींट के बनाने लगे । सोफा सेट के कवर और चेयर कुशन छींट के कपड़ों के बनाए जाने लगे । 1980 तक यह यूरोपीय बाजारों में धूम मचाता रहा । 1996 में " चक आऊट योर चिंट्ज " अभियान चला था , जिसमें यह  यूरोपीय मार्केट से लगभग गायब हीं हो गया ।

2000 के बाद से यूरोप में छींट की पुनः वापसी हुई है । यूरोप की गृहणियों का कहना है कि छींट से हमलोग बेहद प्रभावित हैं । ये अद्भुत कपड़े हैं । यूरोप में यह अब बड़े पैमाने पर वापस आया है । घर की साज सज्जा और फैशन में यह हमेशा आता जाता रहेगा । इसे समूल कोई उखाड़ नहीं सकता ।


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