बेचारे पेट का सवाल है
पेट है तो हम हैं । हम हैं तो दुनियां हैं । पेट में भोजन पहुँचने के उपरांत पूरे शरीर को ऊर्जा मिलती है । पेट की वजह से हीं आदमी का हाथ कमाता है । पैर चलता है । दिमाग हर अंग को निर्देश देता है । किडनी , लीवर आदि अंग पेट की वजह से हीं काम करते हैं । पेट हीं से दुनियां भर के दंद फंद हैं । पेट की वजह से हीं कई तरह के पाप करने पड़ते हैं । इसीलिए कहा जाता है कि पापी पेट का सवाल है ।
पेट कभी नहीं भरता । यह एक ऐसा गड्ढा है , जो कभी नहीं भरता । इस गड्ढे को भरने के लिए आदमी को कई तरह के काम करने पड़ते हैं । बाॅस की गाली से लगायत पत्नी के ताने भी सुनने पड़ते हैं । परिवार का मुखिया अपने साथ साथ पूरे परिवार का पेट पालता है । फिर भी परिवार के मुखिया को "लतमरुआ " की संज्ञा दी जाती है । लतमरुआ घर की दहलीज होती है , जिस पर सभी लात मारकर आते जाते हैं ।
लात मारने से याद आया कि पेट पर लात मारना किसी को भी पसंद नहीं है । भले हीं कोई पीठ पर लात मार दे । पेट पर लात मारने से पूरी कायनात हिल जाती है । जीने का मकसद हीं खत्म हो जाता है । जो कहते हैं कि पेट पापी होता है , वो गलत होते हैं । पेट पूरे शरीर को पालता है । जो पालता है उसका दर्जा सबसे ऊँचा होता है । उसे भगवान से भी ऊँचा स्थान मिला हुआ है । तभी कहते हैं -
पहले पेट पूजा फिर गोपाल दूजा
जब पेट की पूजा की जाती है तो वह पापी कैसे हुआ ? गलत ढंग से कमाई करने वाले दिल , दिमाग और हाथ होते हैं । उस गलत ढंग से की गयी कमाई से प्राप्त भोजन को पेट पचाता है ताकि सारे अंगों को पोषण मिले । इस भोजन का रसास्वादन जीभ करती है । पेट के हिस्से कुछ नहीं आता । गलत आय का भोजन बड़ा गरिष्ठ होता है , जिसे पचाने में पेट को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती है । इस अतिरिक्त परिश्रम के लिए कोई पेट को ओवर टाइम नहीं देता । फिर भी आप कहते हैं - पापी पेट का सवाल है ।
रईस खाने से खेलते हैं । वे खाते कम फेंकते ज्यादे हैं । फेंकते हैं डस्टबीन में । भिखारी को तो हाथ में दे सकते थे । इस खाने के लिए कुत्ते और भिखारी आपस में लड़ते हैं । इसे देखकर रईस खुश होते हैं । वे हंसते हैं । कहते हैं - देखो पापी पेट का सवाल ।
मंदिरों में बंदरों की भीड़ उमड़ती है । भक्त जन उन्हें प्रसाद खिलाते हैं । मंगलवार को केले खिलाते हैं । ऐसे में बंदर अपने प्राकृतिक खाद्य को भूल जाते हैं । वे वनस्पतियों से प्राप्त भोजन को दरकिनार कर देते हैं । यदि आप उन्हें भोजन देना बंद कर देते हैं तो वे आपको ब्लैक मेलिंग करना शुरू कर देते हैं । आपका चश्मा लेकर भाग जाएंगे । जब भोजन मिलेगा तो चश्मा वापस मिलेगा । उन बंदरों के लिए पेट का सवाल न होकर जीने का सवाल हो गया है ।
नौकरी बुरी है पर उससे भी बुरा पेट का सवाल है । स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पुलिस निहत्थे आंदोलन कारियों पर लाठी भांजती थी । उन्हें गोली मारती थी । बाद में ये पुलिसकर्मी अफसोस करते थे । अफसोस करते थे कि उन्होंने अपनी हीं बिरादरी पर जुल्म ढाया है । अफसोस करने से कोई फायदा नहीं था । वे ऐसा न करते तो क्या करते ? अपना और अपने बच्चों का पेट पालने के लिए उनके पास कोई और विकल्प भी तो नहीं था ।
बात पुलिस की चली तो हम पुलिस और उनके पेट के संदर्भ में भी बात कर लें । पेट से पुलिस वालों की प्रोन्नति रुक जाती है। तोंद निकलते हीं उन्हें अनफिट मान लिया जाता है । वे कई बार ज्यादा खा लेते हैं । इसलिए लाइन हाजिर होते हैं। मुअत्तल होते हैं । कई बार तो नौकरी से भी हाथ धो बैठते हैं । इसलिए उन्हें जरुरत के मुताबिक खाना चाहिए । पेट को ज्यादा गरिष्ठ खाने से बचाना चाहिए ।
पेट जब तोंद का रुप लेने लगे तो खतरा सिर पर मंडराने लगता है । प्रेमचंद ने लिखा है कि कर्ज वह मेहमान है जो आकर जाने का नाम नहीं लेता है । यही बात अक्षरशः मोटापे पर भी लागू होती है । मोटापा सबसे पहले पेट पर आता है । पेट बेचारा होता है । इसे कृपया पापी कहना बंद करें । वह खुद कोई कसरत नहीं कर सकता । काम करने और चलने फिरने से हाथ पांव की कसरत होती रहती है , पर पेट को वाँछित एक्सरसाइज़ नहीं मिल पाती है । इसलिए उस पर सबसे पहले खतरे की घंटी बजती है । बाद में पूरा शरीर उसके लपेटे में आ जाता है ।
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