एक अनाम औरत
मीता वशिष्ठ एक अच्छे स्कूल की प्रिंसिपल थी । उसका असली नाम क्या था ? किसी को पता नहीं । राजेन्द्र यादव ने अपनी आत्म कथा में यही लिखा है । उन्होंने उसकी बहुत सी खूबियों को उकेरा है , जिनमें से एक खूबी यह थी कि वह महात्मा गाँधी की तरह दोनों हाथों से लिखती थी । वह राजेन्द्र यादव की शायद वह पहली मोहब्बत थी । प्यार तो उन्होंने मन्नू से भी किया था और उससे शादी भी की थी , पर मीता को वे कभी नहीं भूल पाए ।
शादी की पहली रात हीं राजेन्द्र ने " गरि न जीभ मुँह परेउ न कीरा " की तर्ज पर मीता के बारे में सब उगल दिया था । उस मन्नू के सामने जिसने राजेन्द्र यादव से शादी करने के लिए अपने घर से विद्रोह किया था । मन्नू के लिए यह सब सुनना कितना त्रासद रहा होगा । यही नहीं राजेन्द्र शादी के बाद कुछ मन्नू के पैसे और कुछ अपने पैसे जोड़ जाड़कर मीता के साथ टूर पर भी चले गये थे ।
मन्नू और मीता के बीच राजेन्द्र पेण्डुलम की भांति झूलते रहे थे।एक बार वे जब मीता से मिलकर वापस आए तो उन्होंने कहा था - पता नहीं क्यों जब मैं तुम्हारे पास रहता हूँ तो लगता है कि जीवन का यही सच है और जब मीता के पास जाता हूँ तो लगता है कि सब कुछ छोड़छाड़कर मीता के पास हीं रहूं । इसी थीम पर मन्नू भण्डारी ने एक कहानी लिखी थी - यही सच है । इस कहानी पर फिल्म भी बनी थी- रजनीगंधा ।
मन्नू और राजेन्द्र के बीच की खाई बढ़ती गयी । अंततः दोनों अलग रहने लगे । उस समय राजेन्द्र ' हंस ' के सम्पादक थे और कितनों को धो मांजकर लेखक के रुप में चमका चुके थे । इन्हीं लेखकों में से एक थीं मैत्रेयी पुष्पा । मन्नू से अलग रहकर भी राजेन्द्र मीता के न हुए । उसके भाइयों ने कहा था - अब आपको मीता के साथ रहने में क्या परेशानी है ?
दरअसल मीता के साथ रहने पर राजेन्द्र को अपनी छवि धूमिल होने का अंदेशा था । ऐसे में कुछ तो कहना था । उन्होंने कहा कि मीता के साथ रहना उनका मुमकिन नहीं । वह एक तानाशाह है । उसे घनघोर नारीवादी बताया । वे मन्नू से अलग होकर भी उसके पास लौट जाने के लिए बेताब थे । लेकिन उनके लिए अब मन्नू के पास लौटना बहुत मुश्किल था । मन्नू ने राजेन्द्र के लिए अपने घर और मन के सब कपाट बंद कर लिए थे ।
राजेन्द्र के अंतिम दिनों में मीता उनके पास कुछ दिनों तक रही थी । राजेन्द्र ने उसे मधुबनी स्टाइल की एक साड़ी भेंट की थी । मीता चली गयी थी । उसे जाना हीं था । उसके रहने का कोई औचित्य नहीं था । बिना शादी के गैर मर्द के साथ रहने में उसकी बेइज्जती थी । राजेन्द्र यादव न मन्नू के रहे न मीता के । एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था - मै इन दोनों औरतों का कर्जदार हूँ ।
आज राजेन्द्र यादव नहीं हैं , लेकिन उनका नाम अजर अमर है ।उनका नाम नयी कहानी के त्रिदेव में शामिल होता है । मन्नू भण्डारी का नाम भी हिंदी साहित्य के महान महारथियों में शामिल है , पर मीता को कोई नहीं जानता । उसके असली नाम का भी पता नहीं । मन्नू भण्डारी ने भी अपने किताब " एक कहानी यह भी " में उसका नाम मीता हीं लिखा है , लेकिन मैत्रेयी पुष्पा कहती हैं कि यह उसका असली नाम नहीं है । एक अनाम सी औरत हमेशा अनाम हीं रहेगी ।
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