खांटी घरेलू औरत

 राजेंद्र यादव ने कभी अपनी पत्नी को खांटी घरेलू औरत कहा था । इसका प्रतिकार खुद मन्नू भण्डारी ने किया था । और बहुत से साहित्यकार और पाठकों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी थी । ममता कालिया ने तो इस पर कविता भी लिख मारी थी - 

उसका दिन कतर ब्यौंत में                                              निकल जाता है                                                              और रात उधेड़बुन में 

अगर ऐसा है तो वह सोती कब है ? इस तरह से किसी को महिमामण्डित करना उसकी प्रशस्ति गाने के सिवा कुछ भी नहीं है । मेरा मानना है कि हर औरत घर में एक खांटी घरेलू औरत है । कहते हैं कि घर घरवाली का होता है । गृह से गृहिणी बना है । गृह से गृहणा बनते कभी नहीं देखा है । हां इसलिए घर के साम्राज्य पर घरवाली का दखल होता है । वह नहीं चाहती कि घर पर किसी और का नियंत्रण हो ।

 औरत घर में रहकर भाव खाती है । चाहे बाहर वह डाक्टरनी , मास्टरनी या साहित्यकार कुछ भी हो । उसके हुकुम के बिना घर में पत्ता भी नहीं खड़कता । यदि पत्ता खड़कता है तो क्लेश होता है । यह क्लेश जब रौद्र रुप धारण करता है तो भी औरत टस से मस नहीं होती है । वह समझौतावादी रवैया अपनाती भी है तो इस तरह कि तुम माफी मांग लो , मैं तुम्हें माफ कर दूंगी । समय रहते सब कुछ सम्भल गया तो ठीक बरना उस घर का मोह माया प्यार मोहब्बत सब छिन्न भिन्न हो जाता है ।

आजकल सबको परिवार के प्रति समर्पित बहू चाहिए । घरेलू औरत चाहिए । बहू ऐसी हो कि अपनी परवाह न करे । केवल घर की परवाह करे । परिवार की परवाह करे ।  जब चाहे अपने कैरियर से नाता तोड़ ले । ऐसा कहाँ होता है ? ये सब किताबी बातें हैं । आजकल महिला घर से बाहर निकलने लगी है । उसके पांव जमीन पर कम हवा में ज्यादा रहने लगे हैं । वह घरेलू खांटी औरत नहीं रह गयी है । घर घरवाली का नहीं घर वाला का भी हो गया है । ऐसे में पुरुषों को हाउस हसबैंड बनना होगा । लजीज व्यंजन बनाना होगा । 

पुरुषों को अपना ईगो छोड़ना होगा । निठल्ले निकम्मे पति को पत्नी के प्रति समर्पित होना होगा । उन्हें पत्नी की फाइल सहेजने के अतिरिक्त बच्चों का टिफिन भी तैयार करना होगा। पत्नी घर आकर दफ्तर की बातें सोचेगी । वह सुबह अखबार पढ़ेगी । आपको उसे चाय देनी होगी । आप एक साथ कई बातें सोचेंगे । आपको घर के झाड़ू पोंछा के साथ साथ दूध उबलने का भी ख्याल रखना होगा । ऐसे में हाउस हसबैंड घर को स्वर्ग बना देंगे । पत्नी अश् अश् कर उठेगी । वह कह उठेगी - तुम्हीं तो हो , मेरे सपने के राजकुमार !

नारी जागृति के लिए काम करने वाली महिलाओं को शायद पता नहीं है कि सर्व प्रथम एक पुरुष हीं इस आंदोलन का आवाज बना था । बाद में सिमोन दा बऊआर आयीं । उन्होंने  लिखा था - " दि सेकण्ड सेक्स " । भारत के पुरुष भी पीछे नहीं रहे थे । यशपाल ने " दिव्या " भगवती चरण वर्मा ने " पहले से " लिखी थी । हमें फख्र है कि हमने इस आंदोलन को नाम दिया । इसे आगे बढ़ाने का काम किया । फिर हम पुरुषों को हाशिए पर क्यों डाला जा रहा है ?  हम तो अपने बच्चों का लंगोट तक बड़े शौक से बदल रहे हैं ।

आज की नारी जब से बाहर निकलने लगी है , परिवार का विघटन बढ़ा है । घरों में घरेलू खांटी औरतों का अभाव सा हो गया है । घरेलू खांटी औरत नारी का वह नैसर्गिक रुप है , जिसे पुरुषों ने अज्ञानतावश मान नहीं दिया । नारी एक पत्नी के साथ एक माँ भी होती है । माँ को माँ बनने का उपहार केवल औरत को हीं मिला है । पुरुष बच्चा नहीं जन सकता ।  पुरुष के आगे बढ़ने में घरेलू खांटी औरत का बहुत बड़ा योगदान है । अब इस बात को पुरुष भी मान रहे हैं । इसलिए हमें घरेलू खांटी औरत की शिद्दत से दरकार है । हम घर और बाहर दोनों जगहों पर औरत का साथ देने को तैयार हैं ।


                                               

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