स्पर्श तुम्हारा
हर स्पर्श कुछ न कुछ कहता है । कंधे पर दोस्त का स्पर्श विना लाग लपेट के कहता है - मैं हूँ न। माँ का सिर पर हाथ " जुग जुग जियो मेरे लाल " का आशीर्वचन कहता है । बच्चों के छोटे हाथ माँ का स्पर्श कर वात्सल्य रस की रचना करते हैं । एक जादू की झप्पी आपको एक झटके में परमानंद की प्राप्ति करा देता है । हर स्पर्श का स्वाद व आन्नद अलग अलग होता है । स्पर्श उतना हीं जरुरी है जितना कि हवा , पानी, भोजन व सांस ।
स्पर्श सक्रिय और निष्क्रिय दोनों तरह के होते हैं । इसका अनुभव स्पर्श से हीं हो जाता है । कुछ लोग ऐसे हाथ मिलाते हैं जैसे बेगार टाल रहे हों । कुछेक गर्मजोशी से हाथ मिलाते हैं । गर्मजोशी से हाथ मिलाने वाले लोग जल्दी हीं गले भी मिलने लगते हैं । हाथ मिलाने व गले मिलने के बीच एक बड़ा बखवा होना चाहिए । हाथ मिलाने से लेकर गले मिलने की बीच की दूरी लम्बी होनी चाहिए । वशीर बद्र कहते हैं- कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से ।
स्पर्श अच्छा व बुरा दोनों तरह का होता है । बच्चों को बुरे स्पर्श से बचाकर रखना चाहिए । जिस तरह से माँ को फिक्र होती है कि बच्चे ने स्कूल में लंच खाया कि नहीं । उसी तरह से उसे इस बात की भी चिंता होनी चाहिए कि बच्चे को कहीं किसी ने गलत तरीके से छुआ तो नहीं । हमेशा बच्चे से इस बावत दरयाफ्त करते रहना चाहिए । गलत तरीके से छूने वालों में स्कूल बस का ड्राइवर, कंडक्टर या बच्चे का शिक्षक में से कोई भी हो सकता है । औरतों में गलत तरीके से छूने का एहसास उनकी छठी इंद्रिय कराती है ।
एक स्पर्श चरण स्पर्श भी होता है । कुछ लोग चरण स्पर्श करने वालों का मजाक बनाते हैं । उन्हें चरण दास या चाटुकार कहकर चिढ़ाते हैं । लेकिन चरण स्पर्श से विनम्रता आती है । यदि आप अपने को छोटा मानते हैं तो आप मे बड़प्पन का समावेश होगा । कबीर ने लिखा है -
लघुता से प्रभुता मिले , प्रभुता से प्रभु दूरी चींटी ले शक्कर फिरै, हाथी के सिर धूरी
विद्व जन कहते हैं कि चरण छूने में न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण का नियम लागू होता है । सारी ऊर्जा सिर से पाँव में आ जाती है । ऐसे में चरण स्पर्श करने वाले के शरीर में सकरात्मक ऊर्जा का संचार होता है । वैसे देखा जाय तो चरण स्पर्श करना एक व्यायाम भी है , लेकिन इस व्यायाम को लोग आधा अधूरा हीं करते हैं । वे चरण स्पर्श न कर घुटने स्पर्श करते हैं । शायद उन्हें चरण स्पर्श करने में लाज आती हो ।
अथर्व वेद में स्पर्श चिकित्सा का जिक्र मिलता है । यह चिकित्सा पद्धति गुरु शिष्य परम्परा को लेकर चलती है । गुरु ने बड़ी मुश्किल से शिष्य को सिखाया । शिष्य सीखकर प्रवीण बन गया , पर यदि उसने और किसी को नहीं सिखाया तो यह विद्या उसके साथ हीं मर गयी । यही कारण है कि भारत में स्पर्श चिकित्सा को जानने वाले बहुत कम लोग हैं । अथर्व वेद के अतिरिक्त इस विद्या का वर्णन महात्मा बुद्ध द्वारा रचित पुस्तक " कमल सूत्र " में भी मिलता है । भारत से यह विद्या तिब्बत चीन होते हुए जापान पहुँची थी । जापान में स्पर्श चिकित्सा को " रेकी " कहते हैं । रेकी से आज जापान में बहुत से असाध्य रोगों की चिकित्सा की जा रही है ।
"कुचुटुतुपु " पाणिनी ने एक सूत्र बनाया था । इसमें 'क' से लेकर 'म' तक 25 व्यंजन हैं । ये व्यंजन कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग और पवर्ग कहलाते हैं । इन व्यंजनों को स्पर्श व्यंजन कहा जाता है । कहने का तात्पर्य यह कि इन व्यंजनों का स्पर्श मुँह के किसी न किसी भाग से होता है -
कवर्ग का कण्ठ से चवर्ग का तालू से टवर्ग का मूर्धा से तवर्ग का दांत से पवर्ग का ओष्ठ से
इन स्पर्श व्यंजनों के कारण हीं भाषा की व्यंजना मधुर हो जाती है और वह कर्णप्रिय लगती है । व्यंजन विभिन्न जगहों का स्पर्श पाकर खिल जाते हैं ।
डा. कविता भट्ट को भी स्पर्श विरह के बाद बहुत सुखद लगता है -
विरह के बाद इतना हीं सुखद है तुम्हारा स्पर्श जैसे जेल से कैदी छूटकर वर्षों बाद अपने घर से मिला हो या फिर कोई रोगी लम्बी बीमारी के बाद स्वस्थ हो घर लौटा हो
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