सर्द रात का पहाड़ी सफर
श्रीनगर लेह राजमार्ग आधिकारिक तौर पर बंद हो गया था । ट्रक वाले और निजी वाहनों वाले अपने अपने रिस्क पर आ जा रहे थे । ट्रक वाले श्रीनगर से फल , सब्जियाँ , हार्डवेयर और अन्य किराने का सामान लेह लाते थे । जाते समय वे खाली जाते थे । ऐसे में एक दो सवारी बिठा लेते थे । उनके रास्ते का खर्च निकल जाता था ।
मुझे भी मसूरी कोर्स के लिए जाना था । यह कोर्स पदोन्नति के लिए था । इसलिए जाना जरुरी था । मैं फ्लाइट पकड़ना चाहता था , पर सीट नहीं मिली । सैलानियों ने बुक कर लिया था । ठंड की शुरुआत हो चुकी थी । इसलिए कोई सैलानी लेह में टिकना नहीं चाहता था । अब मेरे लिए ट्रक का हीं सहारा रह गया था । वैसे लेह से कारगिल तक बसें चल रहीं थीं ।
मैंने लेह से कारगिल का सफर बस से पूरा किया । कारगिल में आई टी बी पी का ट्रांजिट कैम्प था । रात्रि विश्राम वहीं किया । सुबह कारगिल से श्रीनगर के लिए ट्रक की सवारी की । ट्रक में ड्राइवर , खलासी के अतिरिक्त एक लड़की भी सफर कर रही थी । लड़की श्रीनगर की रहने वाली थी । वह कारगिल के किसी प्राइमरी स्कूल में टीचर थी । उसे भी जाना जरुरी था । उसकी माँ को हार्ट अटैक आया था । माँ श्रीनगर के ललद्दद हाॅस्पिटल के आई सी यू वार्ड में थी ।
लड़की के चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं । ड्राइवर व खलासी उसे ढाढस बंधा रहे थे । तीनों कश्मीरी थे । वे कश्मीरी भाषा में बात कर रहे थे । मुझे कुछ कुछ पल्ले पड़ रहा था । मैंने भी लड़की को हिंदी में समझाया कि चिंता करने की कोई बात नहीं है । शाम के चार बजे तक हम श्रीनगर पहुँच जाएंगे ।
कहते हैं कि " मेरे मन में कुछ और है , कर्ता के मन में कुछ और "। यही बात हुई । द्रास पहुँच कर पता चला कि आगे रास्ता बंद है । ऊपर से मलवा आ गिरा था । डी जी बी आर वाले मालवा हटाने में लगे थे । मैं ट्रक से उतरकर उस जगह पर गया था । देखा , मलवा बहुत था ।
धीरे धीरे शाम होने लगी । द्रास सबसे ठंडा इलाका है । यहाँ की ठंड सहने की कूवत सब में नहीं है । धूमिल कहते हैं कि लोहे का स्वाद जानना हो तो लोहार से न पूछें । उस घोड़े से पूछें जिसके मुँह में लगाम है । इसी तर्ज पर यहाँ के ठण्ड के बारे में यहाँ के निवासी हीं बता सकते हैं , जो दिन रात उसका सामना करते रहते हैं ।
शाम को पता चला कि रास्ता नहीं खुला । मलवा ज्यादा था ।सूरज डूबने के बाद रोशनी का भी कोई बंदोबस्त नहीं था । इसके अतिरिक्त रात को और मलवा भी आ सकता था । ऐसे में काम करने वालों की जान का खतरा हो सकता था । वैसे भी डी जी बी आर वाले काफी थक गये थे । उन्हें भी आराम की सख्त जरुरत थी ।
लड़की रुआंसी हो चली थी । ड्राइवर और खलासी पास के गाँव में रात बिताने चले गये । वे उस लड़की को भी अपने साथ ले जाना चाहते थे । लड़की नहीं गयी । मेरे पास स्टेनगन था । हथियार लेकर गाँव में जाना मुझे जंचा नहीं । मैं ट्रक के पिछले हिस्से में चला गया । मेरे पास दो कम्बल थे । एक बिछाया और दूसरा ओढ़ लिया । लड़की को अपना स्लीपिंग बैग दे दिया था । वह ड्राइविंग सीट के पीछे वाली लम्बी सीट पर लेट गयी थी । उसे अच्छी तरह से तागीद कर दी कि वह ट्रक की खिड़कियों को अच्छी तरह से बोल्ट कर ले ।
ज्यों ज्यों रात गहरी होती गयी , ठण्ड भी अपना रंग जमाती गयी । मुझे अपना स्लीपिंग बैग उस लड़की को देने का अफसोस होने लगा । हांलाकि मैंने गर्म कपड़े पहन रखे थे , पर वे द्रास की ठण्ड सहने के लिए नाकाफी थे । नवम्बर के महीने में हीं द्रास का तापमान माइनस में टहल रहा था । मैं ट्रक से नीचे उतरता । चहलकदमी करता । थोड़ी गर्मी पाता । फिर कम्बल में जा घुसता । इस तरह से मैं कई बार ट्रक से उतरा । और चढ़ा । अंतिम बार न जाने कैसे नींद आ गयी ।
जब मैं उठा तो सूर्य देव अपनी चमक मार रहे थे । चहलकदमी करते हुए घटना स्थल पर गया । वहाँ काम शुरू हो गया था । पास की चाय की गुमटी पर चाय पी । जब मैं ट्रक के पास आया तो लड़की जाग गयी थी । मैं उसके लिए चाय और विस्कुट लाया था । उसने कृतज्ञ भाव से ग्रहण किया । थोड़ी देर बाद ड्राइवर और खलासी भी आ गये । मैंने अपना कम्बल और स्लिपिंग बैग समेटा । उन्हें होलडाल के हवाले किया । फिर रोड खुलने का इंतजार करने लगा ।
दिन के बारह बजे एकाएक शोर उभरा । लोग " खुल गया खुल गया " का शोर कर रहे थे । सब अपनी अपनी गाड़ियों में बैठने लगे। हम भी अपने ट्रक में चाक चौबंद थे । सफर फिर शुरू हुआ । लोगों ने" जय माता दी" के नारे लगाए थे । गाड़ियों का इतना बड़ा जखीरा था कि सब गाड़ियों को धीरे धीरे रेंगना पड़ रहा था । हम तीन चार घण्टे बाद जोजीला क्रास किए थे । सोन मार्ग में एक ढाबे में भोजन किया । हमें 20 / 22 घंटे बाद भोजन मयस्सर हुआ था ।
इसके बाद पहाड़ी रास्ता खतम हो गया था । हम कश्मीर घाटी में द्रुत गति से बढ़ रहे थे ।
रात के 9 / 10 बजे हम श्रीनगर बस अड्डे पहुँचे थे । ट्रक ड्राइवर को भुगतान किया । लड़की का घर पास में हीं था । मैंने उसकी माँ के शीघ्र स्वस्थ होने की मंगल कामना की थी । लड़की के चेहरे पर मुर्दनी छाई हुई थी । वह तेज तेज कदमों से अपने घर की तरफ चली गयी थी । वह रात मैंने श्रीनगर बस अड्डे पर गुजारी थी । दूसरे दिन अपने गंतव्य के लिए प्रस्थान किया । मैं दो दिनों के बाद मंसूरी पहुँचा । कोर्स शुरू होने से एक दिन पहले पहुँचा था ।
आज सेवानिवृत्त होने के बाद भी द्रास की वह रात मेरे जेहन में आज भी बसी हुई है । मुझे उस लड़की के बारे में आज तक कुछ पता नहीं चला । उसकी माँ का क्या हुआ होगा ? जिंदा रही या उसकी सद्गति हो गयी ?
इतना तो पता है कि वह लड़की आज की तारीख में बूढ़ी हो गयी होगी । मेरी तरह हीं वह नाति नतुकरों की मलिकनी बन गयी होगी । जीवन संध्या में अपने हिस्से का बुढ़ापा मेरी तरह हीं शान से काट रही होगी ।
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