बदमिया

 जब से मैंने होश सम्भाला बदमिया को गाँव में हीं देखा था । छोटे कद की थी बदमियां । रंग सांवला । चेहरे पर चेचक के दाग थे । चलती ऐसे जैसे फुदक रही हो । मेरे घर के पास हीं कुंआ था । वह गगरा लेकर पानी भरने आती थी । कई बार वह हमारे घर भी आती । उसके पास बातों का खजाना होता था । बातों में मशगूल हो वह भूल जाती थी कि वह पानी भरने आई थी । जब बाप चिल्लाता तो वह जल्दी जल्दी पानी लेकर भागती हुई घर जाती । कई बार मेरे घर के सामने से बाप गुजरता तो वह हमारी कोठरी में छिप जाती ।

कहते हैं कि बदमिया की शादी भी हुई थी । वह ससुराल में कुछेक महीने हीं रही थी । पता नहीं बदमिया को ससुराल पसंद नहीं आई या ससुराल को बदमिया पसंद नहीं आई । एक बार ससुराल से बदमिया घर आई तो फिर कभी ससुराल नहीं गयी । ससुराल वालों ने भी कभी बदमिया की सुधि नहीं ली । शायद उन लोगों ने अपने बेटे की शादी कहीं अन्यत्र कर दी थी । बदमिया दूसरी दूसरी बातें करती थी । कभी भूले से भी अपने ससुराल का जिक्र नहीं करती ।

बदमिया अक्सर परामनोविज्ञान की बातें किया करती थी । दशहरा चढ़ते हीं वह भूत दूत की बातें करनी लगती। वह हमें आगाह करती । रास्ते में फूल सिंदूर रखा हो तो उसके बगल से गुजर जाना चाहिए । उसे लांघना नहीं चाहिए । एक बार लांघने के बाद शर्तिया भूत पकड़ता हैं । इन दिनों वह मयरवां के हरिराम बाबा के यहाँ जाती थी । उसे शक था कि किसी ने उस पर भूत चढ़ा दिया है । वह दीघार के ब्रह्म बाबा के यहाँ भी जाया करती थी ।

एक बार उसके भाई को हमारे गाँव के हीं जमुनवा भूत ने पकड़ लिया था । कहते हैं कि जमुनवा पानी में डूब कर मरा था । मरने के बाद शीशो ( शीशम ) के जंगलों में रहता था । जो भी अनजाने में उधर से गुजरता था और गलती से शीशवानी  (शीशम के जंगलों में ) लघुशंका कर देता तो उसे वह पकड़ लेता था । देवपुर मठिया से व्यास जी को बुलवाया गया था । व्यास जी ने उसके भाई को लोहबान का धुआँ दिया था । कई लोगों ने उसे पकड़ रखा था । व्यास जी उसे थप्पड़ मार रहे थे ।बार बार पूछ रहे थे - इसे छोड़ेगा कि नहीं ? मार के डर से बदमियां का भाई कह देता - छोड़ दिया । फिर व्यास जी उसे और मारते - अगर छोड़ दिया है तो बोल कैसे रहा है ? मैं यह देखकर दंग हो रहा था कि भूत दिखाई नहीं दे रहा है । भूत के बदले में बदमिया का भाई मार खा रहा है ।

बदमिया से छोटे दो भाई थे - बाजदेव और राजदेव । बाजदेव को हीं भूत ने पकड़ा था । राजदेव किशोरावस्था में हीं गुजर गया था । बदमिया का राजदेव से बहुत लगाव था । वह उसे याद करके बहुत रोती थी । बाजदेव चीका कबड्डी खेलने में बहुत माहिर था । शरीर से भी हृष्ट पुष्ट था । लोग उसे बाघ कहा करते थे । बाघ पितृ भक्त था । खेती किसानी में वह पिता का हाथ बंटाया करता था । समय मिलने पर अखाड़े में भी वह जोर आजमाइश कर लेता था । पिता को जब भी उसकी जरुरत होती बुला लेते । वह अखाड़ा छोड़कर दौड़ा चला आता । बाप बेटे एक हीं थाली में खाया करते थे ।

बाजदेव के शादी के दिन तय हो गये थे । वह कई दिनों तक हल्दी लगाए घूमता रहा था । बाजदेव की शादी धूम धमाके से हुई थी । बदमियां ने शादी में बढ़ चढ़ के हिस्सा लिया था ।  घर में औरत के नाम पर केवल माँ बेटी हीं थी । माँ अंधी थी । इसलिए घर में केवल बदमियां का हीं राज चलता था । भाभी के आ जाने के बाद बदमियां को अपनी सत्ता हिलती हुई महसूस हुई। अब ननद भाभी में सत्ता का संघर्ष शुरू हो गया । भाभी नई थी । बदमिया के पास अनुभव था । पिता पुत्र और माँ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से बदमिया के साथ हीं होते थे । भाभी अकेली पड़ जाती थी ।

रात के सन्नाटे में भाभी के रोने की आवाज आती - माई , हम मरि जईंती ( माई , मुझे मर जाना चाहिए  )। उसके मायके से भाई आता और उसे ले जाता । इस तरह से भाभी जब भी घर आती वह रो पीटकर फिर वापस मायके चली जाती । तीन चार साल बीत जाने के बाद बाघ और उसके पिता को महसूस हुआ कि अब बहुत हो गया है । सिर के ऊपर से पानी बहने लगा है । इसलिए उन लोगों ने बदमिया के पर कतरने शुरू कर दिए । अब ननद की नहीं , भाभी की सुनी जाने लगी ।  

बदमिया के पास माँ के रुप में एक मजबूत ट्रम्प कार्ड था । वह गाहे ब गाहे उस ट्रम्प कार्ड का इस्तेमाल करने लगी । वह माँ को लेकर घर से भागने लगी । माँ बदमिया का कंधा पकड़कर उसके साथ जब मर्जी आए चल पड़ती थी । ऐसा बहुत बार हुआ। पहले भाभी भागती थी । अब ननद भागने लगी । आठ दस दिन बाद माँ बेटी वापस आ जातीं । समय अपने गति से चल रहा था । माँ का शरीर भी जर्जर हो चला था । एक दिन वह चल बसी । बदमिया का ट्रम्प कार्ड गुम हो गया था । एक बार बदमियां घर से निकली तो फिर लौटकर नहीं आई । भाभी ने दो टूक शब्दों में कह दिया था - या तो ननद इस घर में रहेगी या भाभी ।

मैं बदमिया से काफी छोटा था , लेकिन गाँव के रिश्ते में उसका चाचा लगता था । 1994 में मैं बच्चों समेत छुट्टियों पर घर आ रहा था । रेवती स्टेशन से एक बुजुर्ग दम्पति ट्रेन में सवार हुए । पत्नी क्षीणकाय हो गयी थी । शायद पति उसे इलाज कराने के लिए छपरा ले जा रहा था । वह बार बार पानी पी रही थी। अचानक मुझे उसके चेहरे पर कुछ खास नजर आया । अरे ! यह तो बदमिया है । मैंने बदमियां को अपना परिचय दिया ।उसके चेहरे पर क्षीण सी मुस्कान आई । बोली - 

"चाचा ! अब तो चला चली का समय आ गया है । पिता भी गुजर गये हैं । भाई भौजाई को मेरी फिक्र नहीं है । अब तो कुछ दिनों की हीं मेहमान हूँ । सोचती हूँ मरने से पहले अपने गाँव होकर आ जाती । गाँव देखने का बहुत मन कर रहा है "

दल छपरा स्टेशन आने वाला था । हम उतरने का उपक्रम करने लगे । उतरने से पहले मैंने उसके पति की आंखों में झिलमिल झिलमिल होते हुए आंसुओं को देख लिया था । मुझे महसूस हुआ कि बदमियां के पास गाँव है । उसे गाँव जाने की कोई जरुरत नहीं है । यह गाँव उसके पास बहुत पहले होना चाहिए था ।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

औरत मार्च

फेसबुक की दोस्ती जी का जंजाल

शराब चीज हीं ऐसी है