अकेलापन घंटो मुझसे बातें करता है.
Though I go alone, like a lonely dragon ..
William Shakespeare.
प्राख्यात हिंदी कथाकार मन्नू भंडारी ने अपनी अप्रतिम रचना 'आपका बंटी 'अकेलेपन में हीं लिखी थी. उनके प्रेरणास्रोत रहे उनके पति सुप्रसिद्ध कथाकार राजेंद्र यादव. एक बार तो मन्नू ने एकांतवास से बाहर आने का मन बना लिया था, जब उनकी एकलौती संतान ने फोन पर कहा ,' तुम मेरा हालचाल क्यों पूछती हो? तुम्हें क्या ? तुम अपनी किताब लिखो. ' बड़ी मुश्किल से राजेंद्र यादव ने उन्हें विश्वास दिलाया कि उनकी बेटी महफूज है और अपनी बुआ के साथ सुखी व सानन्द है. किन्हीं कमजोर लमहों में उसने ये बात कह दी होगी. उनका उपन्यास 'आपका बंटी ' पूर्ण हुआ, जिसका आज हिंदी के टाप टेन उपन्यासों में स्थान है.
यह जरूरी नहीं कि लिखने के लिए एकांत होना जरूरी है. प्रसिद्ध कथाकार काशीनाथ ने अपने एक संस्मरण में लिखा था कि उन्हें लिखने के लिए किसी एकांत की जरूरत नहीं होती. वो जिस बिस्तर पर बैठकर लिखते हैं, उस पर उनके बच्चे धमाचौकड़ी मचाते रहते हैं. यानी कि इनका लिखना और बच्चों की धमाचौकड़ी साथ साथ चलती है.
वैसे एक अवधि विशेष का एकांतवास लाभदायक होता है. इससे आदमी में स्फूर्ति व ताजगी आती है. कबीर जब अपने भक्तों की भीड़ भाड़ से तंग आ जाते थे तो एकांतवास में चले जाते थे. गहमर में वह गुफा आज भी है, जहां कबीर एकांतवास करते थे. कवि एमिली डिकंसन एकांतवास में रहकर हीं अपनी रचनात्मक सृजनता को कायम रख सके.
कुछ लोग दोस्तों के बीच रहकर भी अकेलापन महसूस करते हैं. अकेलापन एक सोच है, जो स्वजनों के बीच भी आपको अकेला करता है. यही सोच आपको अकेला रहकर भी आपको अपनों के बीच रखता है . दूर रहकर भी आपको स्वजनों की स्मृतियाँ आपको उनसे जोड़े रखती हैं. अकेलापन अक्सर गांवों की अपेक्षा शहरी लोगों को ज्यादा सताती है, जहां यह पता नहीं होता कि एक दीवार के बाद कौन रहता है? सब अपने अपने दड़बे बन्द होते हैं. जिनसे हाय, हेलो थोड़ी बहुत होती है, वो भी बहुत एहसान दिखाकर हाय हेलो करते हैं. अकेलापन गांवों में भी होता है, पर वहां एक तरह का भाईचारा व बहनापा होता है, जो अकेलेपन पर बीस पड़ता है. वहाँ खुशी सार्वजनिक होती है तो दुःख भी सबका दुःख होता है.
हममें से सभी कभी न कभी अकेलेपन से रूबरू होते हैं. कई बार आदमी परिस्थिति वश अकेला हो जाता है तो कई बार जान बूझकर अकेलापन ओढ़ लेता है. अकेलापन एक ऐसी भावना है, जिसमें लोग बड़ी शिद्दत से खालीपन महसूस करते हैं. अकेलेपन से ग्रसित व्यक्ति को मजबूत पारस्परिक सम्बंध बनाने में परेशानी होती है. जब घर के लोगों का साथ नहीं मिलता, तब आदमी घर में रहते हुए भी अकेला रहता है. वह अंदर हीं अंदर घुटता रहता है. अकेलेपन के कई कारण होते हैं - मसलन घर में अक्सर विवाद होना, किसी प्रतियोगिता में असफल होना, खुद अहंकारी या घमंडी होना, जीवन साथी से तालाक होने पर, प्रियजन की मृत्यु, व्यापार में घाटा, पति पत्नी के विचार न मिलने पर या आपसी कलह.
अकेलापन धीरे धीरे अवसाद का रूप ग्रहण कर लेता है. तनाव, चिंता,व्याकुलता और आत्मविश्वास में कमी आदि मानसिक बीमारियां होने लगती हैं. शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली पर असर होने लगता है. शरीर में सूजन, जलन, घाव का संक्रमण, हृदय सम्बंधी बीमारियां होने लगती हैं.
अकेलेपन से घबराने की जरूरत नहीं है. अकेलेपन को एक टानिक के रूप में स्वीकार करें. आगत को स्वीकार करना हीं बुद्धिमानी है. लोगों से मेल जोल बढ़ाएं, पढ़ने की आदत डालें, नई भाषा या कोई नया काम सीखें, प्यार में दिल टूट गया है तो सोशल एक्टिविटीज में भाग लें, फिर से नये दोस्त बनाएं, योग,संगीत में ध्यान लगाएं व व्यायाम करें, अपने किसी प्रिय जन से फोन पर बात करें और फिर भी बात न बनें तो किसी मनोविज्ञानी से मिलें. कभी कभी अपने अकेलेपन से बातें करना भी लाभप्रद होता है. अकेलापन भी आपसे बातें करेगा. रश्मि प्रभा की एक कविता अकेलेपन से बात करती है -
अकेलापन,
घंटों मुझसे बातें करता है,
भावनाओं को तराशता है,
जीने के लिए,
मुट्ठी में चंद शब्द थमा जाता है.
- ई एस डी ओझा
William Shakespeare.
प्राख्यात हिंदी कथाकार मन्नू भंडारी ने अपनी अप्रतिम रचना 'आपका बंटी 'अकेलेपन में हीं लिखी थी. उनके प्रेरणास्रोत रहे उनके पति सुप्रसिद्ध कथाकार राजेंद्र यादव. एक बार तो मन्नू ने एकांतवास से बाहर आने का मन बना लिया था, जब उनकी एकलौती संतान ने फोन पर कहा ,' तुम मेरा हालचाल क्यों पूछती हो? तुम्हें क्या ? तुम अपनी किताब लिखो. ' बड़ी मुश्किल से राजेंद्र यादव ने उन्हें विश्वास दिलाया कि उनकी बेटी महफूज है और अपनी बुआ के साथ सुखी व सानन्द है. किन्हीं कमजोर लमहों में उसने ये बात कह दी होगी. उनका उपन्यास 'आपका बंटी ' पूर्ण हुआ, जिसका आज हिंदी के टाप टेन उपन्यासों में स्थान है.
यह जरूरी नहीं कि लिखने के लिए एकांत होना जरूरी है. प्रसिद्ध कथाकार काशीनाथ ने अपने एक संस्मरण में लिखा था कि उन्हें लिखने के लिए किसी एकांत की जरूरत नहीं होती. वो जिस बिस्तर पर बैठकर लिखते हैं, उस पर उनके बच्चे धमाचौकड़ी मचाते रहते हैं. यानी कि इनका लिखना और बच्चों की धमाचौकड़ी साथ साथ चलती है.
वैसे एक अवधि विशेष का एकांतवास लाभदायक होता है. इससे आदमी में स्फूर्ति व ताजगी आती है. कबीर जब अपने भक्तों की भीड़ भाड़ से तंग आ जाते थे तो एकांतवास में चले जाते थे. गहमर में वह गुफा आज भी है, जहां कबीर एकांतवास करते थे. कवि एमिली डिकंसन एकांतवास में रहकर हीं अपनी रचनात्मक सृजनता को कायम रख सके.
कुछ लोग दोस्तों के बीच रहकर भी अकेलापन महसूस करते हैं. अकेलापन एक सोच है, जो स्वजनों के बीच भी आपको अकेला करता है. यही सोच आपको अकेला रहकर भी आपको अपनों के बीच रखता है . दूर रहकर भी आपको स्वजनों की स्मृतियाँ आपको उनसे जोड़े रखती हैं. अकेलापन अक्सर गांवों की अपेक्षा शहरी लोगों को ज्यादा सताती है, जहां यह पता नहीं होता कि एक दीवार के बाद कौन रहता है? सब अपने अपने दड़बे बन्द होते हैं. जिनसे हाय, हेलो थोड़ी बहुत होती है, वो भी बहुत एहसान दिखाकर हाय हेलो करते हैं. अकेलापन गांवों में भी होता है, पर वहां एक तरह का भाईचारा व बहनापा होता है, जो अकेलेपन पर बीस पड़ता है. वहाँ खुशी सार्वजनिक होती है तो दुःख भी सबका दुःख होता है.
हममें से सभी कभी न कभी अकेलेपन से रूबरू होते हैं. कई बार आदमी परिस्थिति वश अकेला हो जाता है तो कई बार जान बूझकर अकेलापन ओढ़ लेता है. अकेलापन एक ऐसी भावना है, जिसमें लोग बड़ी शिद्दत से खालीपन महसूस करते हैं. अकेलेपन से ग्रसित व्यक्ति को मजबूत पारस्परिक सम्बंध बनाने में परेशानी होती है. जब घर के लोगों का साथ नहीं मिलता, तब आदमी घर में रहते हुए भी अकेला रहता है. वह अंदर हीं अंदर घुटता रहता है. अकेलेपन के कई कारण होते हैं - मसलन घर में अक्सर विवाद होना, किसी प्रतियोगिता में असफल होना, खुद अहंकारी या घमंडी होना, जीवन साथी से तालाक होने पर, प्रियजन की मृत्यु, व्यापार में घाटा, पति पत्नी के विचार न मिलने पर या आपसी कलह.
अकेलापन धीरे धीरे अवसाद का रूप ग्रहण कर लेता है. तनाव, चिंता,व्याकुलता और आत्मविश्वास में कमी आदि मानसिक बीमारियां होने लगती हैं. शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली पर असर होने लगता है. शरीर में सूजन, जलन, घाव का संक्रमण, हृदय सम्बंधी बीमारियां होने लगती हैं.
अकेलेपन से घबराने की जरूरत नहीं है. अकेलेपन को एक टानिक के रूप में स्वीकार करें. आगत को स्वीकार करना हीं बुद्धिमानी है. लोगों से मेल जोल बढ़ाएं, पढ़ने की आदत डालें, नई भाषा या कोई नया काम सीखें, प्यार में दिल टूट गया है तो सोशल एक्टिविटीज में भाग लें, फिर से नये दोस्त बनाएं, योग,संगीत में ध्यान लगाएं व व्यायाम करें, अपने किसी प्रिय जन से फोन पर बात करें और फिर भी बात न बनें तो किसी मनोविज्ञानी से मिलें. कभी कभी अपने अकेलेपन से बातें करना भी लाभप्रद होता है. अकेलापन भी आपसे बातें करेगा. रश्मि प्रभा की एक कविता अकेलेपन से बात करती है -
अकेलापन,
घंटों मुझसे बातें करता है,
भावनाओं को तराशता है,
जीने के लिए,
मुट्ठी में चंद शब्द थमा जाता है.
- ई एस डी ओझा
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