मैं तुम्हारा हूं , तुम तो सम्भालों मुझे.

चित्तौड़गढ़ की रानी पद्मिनी का का महल आज मरम्मत के अभाव में उपेक्षित पड़ा है. इस महल में उस अतीव सुंदरी का निवास था, जिस पर कभी अल्लाउद्दीन खिलजी मोहित था. अल्लाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी के पति रतन सेन से निवेदन किया था कि एक बार वह उसे रानी पद्मिनी को देखने दे, उसके बाद वह कभी भी चित्तौड़ गढ़ की तरफ रूख नहीं करेगा. भीषड़ रक्तपात से बचने के लिए महाराज रतन सेन इस प्रस्ताव को मान गये. महारानी पद्मिनी के कमरे में एक आदम कद दर्पण लगाया गया. दर्पण इस तरह का कि सीढियों पर खड़ा आदमी दर्पण में पड़े अक्स को देख सकता है, पर अक्स वाला व्यक्ति सीढियों पर खड़े व्यक्ति को नहीं देख सकता है. रानी को कुछ पता नहीं था. खिलजी ने रानी का अक्स सीढियों पर खड़े होकर देखा. रानी को देख अल्लाउद्दीन के मन में रानी को पाने की इच्छा और भी बलवती हो गई .
सौजन्यता वश राजा रतन सेन अलाउद्दीन खिलजी को महल के बाहर तक छोड़ने गये. उसी गफलत का फायदा उठा खिलजी ने महाराज को बन्दी बना लिया. रतन सेन के बन्दी बनाने की खबर रानी पद्मिनी के पास भी पहुंची. रानी ने अलाउद्दीन के पास खबर भिजवाई कि वह एक बार राजा रतन सेन से मिलना चाहती हैं, उसके बाद खिलजी जो चाहेगा उन्हें मंजूर होगा. खिलजी को इसमें क्या एतराज हो सकता था ?
उसने मंजूरी दे दी. पालकियों में रानी और उनकी सहेलियों की जगह राजपूत सैनिक बैठै. कहार बने पुरूष भी राजपूत सैनिक हीं थे. पालकियों में हथियार छुपा कर रखे गए . धोखे का बदला धोखे से लिया गया  . सठे साठ्यम् समाचरेत्.
उन दिनों पर्दानसीं को चेक करने का रिवाज नहीं था. पालकियां सीधे तौर पर महाराज रतन सेन के पास भेजी गईं, जहां वे बन्दी जीवन जी रहे थे. सुरक्षा व्यवस्था इन परदानसीनों की वजह से हटा ली गई थी. एक पालकी में राजा रतनसेन को बिठाकर पालकियां वापस चल पड़ीं. कुछ दूर आ जाने के बाद अलाउद्दीन खिलजी के सैनिकों को पता चला कि राज रतन सेन फरार हो गये हैं. अच्छे घुड़सवार सैनिक दौड़ाए गये. खिलजी के सैनिकों और रतन सेन की सैनिकों की भीषड़ मुठभेड़ हुई.
गोरा और बादल नाम के दो योद्धाओं ने खिलजी के सैनिकों को गाजर मूली की तरह काटना शुरू किया. गोरा रानी पद्मिनी का चचेरा भाई और बादल उनके चाचा थे. गोरा की उम्र उस समय मात्र12 वर्ष थी. गोरा और बादल वीरता से लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए.तब तक कहार पालकी सुरक्षित किले में पहुंचा चुके थे . किले का दरवाजा बंद कर दिया गया.महाराज रतन सेन को अपने बीच पाकर प्रजा हर्षित हो गई.
अलाउद्दीन खिलजी को जब पता चला कि राजा रतन सेन उसकी कैद से फरार हो गए हैं तो उसका क्रोध अपने चरम पर पहुंच गया. उसने एक बहुत बड़ी सेना लेकर  चित्तौड़गढ़ के किले को घेर लिया. राजा रतन सेन भी अपने सैनिकों के साथ खिलजी से लड़ने के लिए मैदान -ए- जंग में आ पहुंचे. भीषड़ मार काट मची. इस लड़ाई में रतन सेन खेत रहे. राजा की मृत्यु की खबर पाकर रानी पद्मिनी हजारों औरतें के साथ जलती चिता में प्रवेश कर गईं . रानी का यह जौहर ब्रत उन्हें इतिहास में अमर कर गया. अलाउद्दीन खिलजी जब चित्तौड़गढ़ के किले में प्रवेश किया तो उसे पद्मिनी की जगह राख की ढेरियां मिलीं.
रानी पद्मिनी व राजा रतन सेन की कथा 'पद्मावत'  लिख मल्लिक मुहम्मद जायसी ने उन्हें अमर कर दिया.देश विदेश के सैलानी यहां आकर रानी पद्मिनी को श्रद्धासुमन चढ़ाते हैं, पर अपने देश में उनके महल की बेकद्री हो रही है । यह महल जीर्ण शीर्ण हालत में है । पुरातत्व विभाग गहरी नींद में है । यह महल चिल्ला चिल्लाकर पुरातत्व विभाग को जगा रहा है -
अपनी महफिल से ऐसे न टालो मुझे.
मैं तुम्हारा हूं  ,  तुम तो सम्भालो मुझे.
               -ई एस डी ओझा

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