मेरी चुनरी में परि गयो दाग पिया.
चुनरी शुरूआत से हीं ननद भौजाई के बीच में झगड़े की जड़ रही है और इससे बदला प्रवृति को संवर्धन व संरक्षण मिला है. लोकगीतों में इसका नायाब उदाहरण मिलता है. एक ननद को शक है कि भाभी की चुनरी उसकी चुनरी से अच्छी है. फिर क्या ? वह लगे हाथों कागा से अनुरोध कर बैठती है कि वह भाभी की चुनरी पर बीट कर दे. वह बदले में उसका चोंच सोने से मढ़ा देगी और उसे दूध भात खाने को देगी.
सुन्दर लगने के लिए अच्छी चुनरी पहनना हीं पर्याप्त नहीं है. उसके लिए तीन बातें होनी चाहिए - गोरा होना, अंजोरिया (चांदनी) होना और चुनरी धुली होना. जब तीन बातें साथ हों तो फिर क्या बात हो ?
एक तो मैं गोरिया रे, दोसरे अंजोरिया,
तीसरे धोआवल चुनरी , रे साजनिया.
फिल्मों में हरकत मुकर्री करने के लिए भी चुनरी गीत डाले जाते हैं. ये गीत कई बार फिलर के तौर पर भी डाले जाते हैं -
चुनरी सम्भाल गोरी उड़ी चली जाय रे!
मार दे न डंक कहीं ,नजर कहीं हाय रे!
चुनरी के नाम से एक फिल्म भी आयी थी -लागा चुनरी में दाग. इस फिल्म में औरत के त्याग, तपस्या और समर्पण की कहानी है. रानी मुखर्जी ने इस फिल्म में बहुत हीं भाव प्रणय अभिनय किया है . चुनरी के माध्यम से आत्मा परमात्मा जैसे गूढ़ विषयों को भी विवेचित किया जाता है. कबीर ने लिखा है -
मेरी चुनरी में परि गयो दाग पिया.
यह चुनरी मेरे मैके ते आई,
ससुरे में मनवा खोय दिया.
कहे कबीर दाग तब छूटे,
जब साहब अपनाय लिया.
कहते हैं कि सपने में चुनरी देखना सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. ऐसे में यदि चुनरी धानी रंग की हो और हरे कांच की चूड़ियां हो तो सोने में सुहागा. शैलेन्द्र ने फिल्म 'हरे कांच की चूड़ियां' के लिए एक बहुत हीं सुन्दर गीत लिखा था,जिसे आशा भोंसले ने बड़े हीं मादक आवाज में गाया था-
धानी चुनरी पहन,
सज के बन के दुल्हन.
जाऊंगी उनके घर,
मन में उनकी लगन.
गीत में मेरा मन.
कुछ ना बोलूंगी मैं,
मुख ना खोलूंगी मैं,
बज उठेंगीं हरे कांच की चूड़ियां.
भक्त जन मातारानी को चुनरी चढ़ाने में पीछे नहीं रहते. अभी कुछ दिनों की बात है. किसी भक्त ने माता को 151 फीट की चुनरी चढ़ाई थी. नेपथ्य में नरेन्द्र देव चंचल की आवाज गूंज रही थी -
लाया थारी चुनरी, करियो माँ स्वीकार.
अब बात कर ली जाय तन्मय चतुर्वेदी की. अब तन्मय जवान हो गये हैं. वे स्वतंत्र रूप से गा रहे हैं और फिल्मों में गाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. कभी सारे गामा पा के लिटिल चैम्पियन बने थे सन् 2007 में. साहिर लुधियानवी के लिखे गीत ' लागा चुनरी में दाग ... ' को दरवाजे को तबला बनाकर क्या बेहतरीन गाया है ! शाब्बास तन्मय !
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