हम भी क्या याद करेंगें कि खुदा रखते थे.

चमोली से 275 किमी पर अंतिम बस स्टेशन गोविंद घाट. गोविंद घाट से पैदल या खच्चर पर 13 किमी का रास्ता .फिर वह नैसर्गिक सौंदर्य, जिसे देख आप अभिभूत हो उठेंगें. इस नैसर्गिक सौन्दर्य को कहते हैं फूलों की घाटी. आजकल इसे Valley of flowers, National Park नाम दिया गया है. सन् 1982 में इस फूलों की घाटी को भारत सरकार ने विश्व धरोहर स्थल घोषित कर दिया है.
समुद्र तल से 3962 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह फूलों की घाटी 3 किमी लम्बाई व 1/2 किमी चौड़ाई में फैली हुई है. इस घाटी में लगभग 500 तरह के फूलों की प्रजातियां मौजूद हैं . कहते हैं कि संजीवनी बूटी लाने के लिए हनुमान इसी इलाके में आए थे. रामायण और महाभारत काल में इस फूलों की घाटी को 'नंद कानन ' कहा गया है. स्थानीय लोग इस पूरे इलाके को परियों व किन्नरों का इलाका मानते थे. इसलिए इधर आने में वे डरते थे.
सितम्बर से नवम्बर माह तक यह घाटी फूलों से भरी रहती है. एक स्थान पर एक प्रजाति का फूल है तो कुछ दिन बाद वहीं पर अपने आप दूसरी प्रजाति का फूल उग आता है । आधुनिक काल में इस घाटी की खोज सन् 1931में ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ और उनके साथी आर एल होल्डसवर्थ ने की थी. वे कामेट पर्वत अभियान से वापस आ रहे थे.
जहांगीर ने कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा था. यदि उसने चमोली जनपद स्थित फूलों की इस घाटी को देखा होता तो पक्का इसे 'खुदा ' कहा होता. बकौल गालिब -
जिन्दगी अपनी जब इस शक्ल से गुजरी 'गालिब ',
हम भी क्या याद करेंगें कि कभी हम खुदा रखते थे .
                          - ई एस डी ओझा

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