सोचा, समझा अच्छा बहाना है.
वर्जित फल खाने के बाद मनुष्य को जो पहला ज्ञान हुअा ,वह था - हाय हम नंगे. नंगे होने का ज्ञान होने पर उसने कपड़े का आविष्कार किया. कपड़ा पहन उसने घर बनाया. घर से समाज बना. समाज ने अपने लिए भली चीजों के अतिरिक्त मादक द्रव्यों का भी खोज कर ली. सबसे पहले कोलम्बस ने सन् 1492 में दक्षिण अमेरिका के निवासियों को धूम्रपान करते हुए देखा था. भारत में धूम्रपान की शुरुआत 16 वीं शताब्दी में हुआ. धूम्रपान व तम्बाकू का चलन छिपे तौर पर होता था.मुगल बादशाह जहांगीर के समय में तम्बाकू खाने वालों के होठ काट लिए जाते थे .
आज विश्व में तकरीबन एक अरब लोग तम्बाकू का सेवन कर रहे हैं. तम्बाकू के सेवन से सरकार को राजस्व तो प्राप्त होता है, परन्तु इससे हुए भंयकर रोगों के इलाज में सरकार को उससे कहीं ज्यादा खर्च करना पड़ता है. तम्बाकू का सेवन सिग्रेट, बीड़ी, हुक्का (धूम्रपान) और गुटका, खैनी, जरदा (चबाने) किसी भी रूप में किया जाय ; नुकसान तो शरीर का हीं होता है. तम्बाकू खाने से मुंह के रोग यथा - मुंह न खुलना, होठों पर सफेद दाग, मुंह का अल्सर और कैंसर होता है. वहीं धूम्रपान से मुंह की बिमारियों के अतिरिक्त धमनियां संकुचित हों जाती हैं, जिससे हृदय रोग हो जाता है. धूम्रपान से सांस की बीमारी ब्रोंकाइटिस, दमा, फेफडों का कैंसर हो जाता है. धूम्रपान करने वाले अपने साथ पैसिव स्मोकर भी तैयार करते हैं. पैसिव स्मोकर घर का कोई सदस्य या दफ्तर का कोई साथी या मातहत हो सकता है. अब सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान करना गैर कानूनी हो गया है. घर में गैर कानूनी करना घर वालों की जिम्मेदारी बनती है.
किशोरावस्था का उत्सुकतावश शुरू किया गया तम्बाकू का सेवन युवावस्था में जरूरत बन जाती है. तम्बाकू का सेवन हमारी वाध्यता बन जाती है. हम इसके आदी बन जाते हैं. महान् गजलकार दुष्यंत कुमार के शब्दों में -
एक आदत सी बन गयी है तू,
और आदत कभी नहीं जाती.
तम्बाकू छोड़ने वाले बेचैन रहते हैं. वे फिर से इसका सेवन शुरू कर देते हैं. तम्बाकू को छोड़ने के लिए मजबूत इच्छा शक्ति होनी चाहिए. प्रेमचन्द ने एक जगह लिखा है - 'दृढ़ इच्छा शक्ति के आगे दुविधा की बेड़ियां टूट जाती हैं. ' एक बार एक सज्जन गांधी जी के पास तम्बाकू छुड़ाने का उपाय पूछने गये. गांधी जी ने उन्हें दूसरे दिन आने के लिए कहा. नियत समय पर वे गांधी जी से मिलने पहुंचे . वे इंतजार करते रहे, पर गांधी जी नहीं आए . उत्सुकतावश उन्होंने कमरे में झांका तो देखा कि गांधी जी एक खम्बा पकड़ कर बैठे हैं. उन्होंने व्यग्रता से कहा, ' गांधी जी, आपने मुझे मिलने का समय दिया था. ' गांधी जी ने कहा, ' हां, दिया तो था, पर मुझे यह खम्बा नहीं छोड़ रहा है. ' अब उन सज्जन का धैर्य चुक गया. वे बोल पड़े, 'खम्बे को आपने पकड़ा है. आप जब चाहे उसे छोड़ सकते हैं. ' गांधी जी ने खम्बा छोड़ दिया. कहा, ' आपके तम्बाकू छोड़ने का यही मूल मंत्र है. तम्बाकू को आपने पकड़ा है. आप जब चाहें इसे छोड़ सकते हैं. '
कुछ लोगों का कहना है कि वे तम्बाकू को तनाव की वजह से लेते हैं. तनाव ? तनाव किसे नहीं है. तनाव तो तभी शुरू हो गया था, जब मनुष्य को उसे पहला ज्ञान हुआ था -हाय, हम नंगे. तनाव से मनुष्य का साथ चोली दामन का है. तो क्या हर कोई तम्बाकू लेने शुरू कर दे. इस तरह से तो पूरी आबादी को तम्बाकू का सेवन करने लगना चाहिए. वाह क्या सोचा, समझा अच्छा बहाना है ? गालिब ने भी कहा है -
हमें मालूम है, जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल को खुश करने को गालिब ये ख्याल अच्छा है.
- ई एस डी ओझा
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