क्यों जहर घुला, क्यों गिद्ध मरे.
गिद्धों को लेकर एक मिथक यह है कि ये अपशकुनी होते हैं. मैंने अपने गांव से रेवती बाजार जाने वाले रास्ते पर एक उजड़ा हुआ घर देखा था .कहा जाता था कि उस घर पर कहीं से आकर एक गिद्ध विश्राम करने की नियत से बैठ गया था .घर वालों ने अपशकुन मान उस घर को छोड़ दिया . हांलाकि यह कोरा अंधविश्वास है. एक नारी की अस्मिता की रक्षा करने वाला गिद्ध अपशकुनी कैसे हो सकता है? माता सीता का हरण करने वाले रावण से महायुद्ध करने वाले जटायु गिद्ध हीं तो थे.
हमारे दौर में गिद्धों को मारने की कार्यवाही भी शुरू हुई थी. कारण था - गिद्ध जिस किसी पेड़ पर बैठ जाते हैं, वह सूख जाता है. पेड़ हमारे जीने की शर्त हैं. पेड़ का नुकसान हमारा नुकसान. इसलिए सरकारी फरमान जारी कर दिया गया था - उन्हें मारने के लिए. मैंने खुद अपनी आंखों से बोटानिकल गार्डेन , हबड़ा में सरकारी शूटरों को गिद्धों को शूट करते हुए और गिद्धों को कटे हुए पेड़ की तरह धराशाई होते हुए देखा है. बाद में पर्यावरणविदों के विरोध पर सरकार को यह फरमान वापस लेना पड़ा.
गिद्ध बेहतरीन सफाई कर्मी होते हैं. सड़े, गले मांस में घातक बैक्टिरिया व वायरस होते हैं. उस मांस को गिद्ध अपने उच्च जठराग्नि के बल पर पचा जाते हैं तो ये पर्यवरण के दुश्मन नहीं, दोस्त हुए न ? गिद्धों के कारण हीं रैबीज, मुंह, खुर पका आदि पशुओं की बिमारियां नियंत्रण में रहती थीं. पशुओं के सड़े गले मांस का 64% हिस्से का निपटान ये गिद्ध स्वयं करते हैं. इसलिए स्वच्छता अभियान में इनकी सबसे बड़ा योगदान है.
भारतीय गिद्ध गंजा होता है. पंख चौड़े, जो पूंछ के पास पहुंच कर बिल्कुल कम चौड़ा रह जाता है. चोंच हर शिकारी पक्षी की तरह टेढ़ी होती है. भारतीय गिद्ध मध्य एशिया से लेकर दक्षिण भारत तक पाया जाते हैं . प्रायः ये चट्टानों के दरारों में अपना घोंसला बनाते हैं . राजस्थान में ये पेड़ों पर भी घोंसला बनाते हुए देखे गये हैं. इनकी उड़ान बुलंदी पर होती है. इनकी उडा़न की अधिकतम ऊंचाई 37000 ft आंकी गई है, जो एवरेस्ट से भी ऊंची है. इतनी ऊंचाई पर कोई पक्षी जीवित नहीं रह सकता है, पर इनकी हीमोग्लोबीन और हृदय संरचना इस कदर होती है कि ये ऊंचाई पर भी सरवाईव कर जाते हैं,जहां आक्सीजन बहुत कम होती है.
गिद्ध दीर्घायु होते हैं. प्रजनन में समय लगाते हैं. मादा गिद्ध एक बार में मात्र एक या दो अंडे देती है. चूजे निकलने के बाद बाज दफे केवल एक हीं चूजे का देखभाल करती है, जिससे इनका केवल एक हीं चूजा जीवित रह पाता है. परभक्षी भी कई बार इनके चूजे खा जाते हैं. 1990 के दशक से गिद्धों की संख्या में गिरावट शुरू हुई और आज 95% गिद्ध खत्म हो चुके हैं. वजह पता की गई तो पता चला कि पशुओं को दी जाने वाली दर्द निवारक दवा डायक्लोफिनाक की वजह से गिद्ध मर रहे हैं. पशु दवा खाते हैं और उनका मांस गिद्ध खाते हैं. गिद्धों की मरने की वजह वाली दवा अब बाजार में प्रतिबन्धित कर दी गई है. एक नई दवा मेलाक्सीकैम आई है, जो गिद्धों को माफिक आती है.
गिद्धों को बचाने की मुहिम शुरू हो चुकी है. इन्हें एक सीमित दायरे में रखा जा रहा है. इनके चूजों की हिफाजत के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं. पर वांछित सफलता हाथ नहीं आ रही है. कई कारण हो सकते हैं. उन कारणों के कारक ढूंढे जा रहे हैं . हमें भी इस मुहिम में शामिल होना चाहिए.
क्यों जहर घुला,
क्यों गिद्ध मरे?
कुछ तुम सोचो,
कुछ हम सोचें .
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