कुरआन का सबसे अफजल किस्सा
युसुफ कुल जमा 11 भाई थे , जिनमें से एक उनका सगा भाई भी था । सगे भाई का नाम बन्या बैन था । युसुफ को ख्वाब की ताबीर का पता होता था । इसलिए वे अपने वालिद के सबसे चहेते बेटे थे । यह सब देख सुनकर युसुफ के दूसरे भाई उनसे जलने लगे । उन लोगों ने युसुफ को खत्म करने की योजना बनाई । वे युसुफ को घने जंगल में ले गये , जहाँ उन्होंने उनको एक कुंए में धक्का दे दिया ।
युसुफ के भाई उनको रोजाना देखने आते । कुएँ में भूखे प्यासे पड़े युसुफ को देखते और लौट जाते । तीसरे दिन जब वे आए तो उन्होंने देखा कि युसुफ कुएँ से बाहर आ गये हैं । उन्हें एक काफिले वालों ने बाहर निकाला था । वे प्यासे थे । जब उन्होंने कुएँ में पानी निकालने के लिए बाल्टी डाली तो युसुफ ने बाल्टी पकड़ ली थी । काफिले वालों ने उन्हें बाल्टी और रस्सी के सहारे बाहर निकाला था । वे युसुफ को अपने साथ ले जा रहे थे ।
युसुफ के भाइयों ने उन्हें रोका । भाइयों ने कहा कि युसुफ उनका खरीदा हुआ गुलाम है । इसे उन्होंने 20 दिरहम में खरीदा है । काफिले वालों ने उन्हें 20 दिरहम दिया और युसुफ को अपने साथ ले गये । भाइयों ने युसुफ के सगे भाई बन्या बैन को डरा धमकाकर चुप करा दिया था । उसे धमकी दी कि यदि वह इन सब बातों को वालिद को बताया तो उसके परिणाम भी वहीं होंगे जो युसुफ का हुआ था ।
भाइयों ने पिता को बताया कि युसुफ को जंगल से भेड़िया उठा ले गया है । सबूत के तौर पर उनकी कमीज पेश की जो खून से लथपथ थी । दरअसल वह बकरे का खून था । पिता ने दुनियां देखी थी । उन्होंने सवाल किया -" वह कैसा भेड़िया था जिसने मेरे बेटे को लहुलुहान कर दिया पर उसकी कमीज को एक खरोंच तक नहीं पहुँचाई ।" पिता ने रो रोकर अपनी आंखों की रोशनी गंवा दी ।
काफिले के साथ युसुफ मिस्र पहुँचे । वह अन्य गुलामों के साथ उनकी भी बोली लगाई गयी । युसुफ की सबसे ज्यादा बोली लगाकर एक अमीरे मिस्र ने उन्हें खरीद लिया । उस अमीर का नाम पोतीपर था । पोतीपर ने युसुफ को अपनी बेगम जुलेखा की सेवा में रखा । युसुफ जुलेखा की प्राणपण से सेवा में जुट गये । लेकिन जुलेखा पर बदनीयत सवार थी ।
जुलेखा युसुफ की खुबसूरती पर रीझ गयी । उसने युसुफ पर डोरे डालने शुरू कर दिए । युसुफ ने जुलेखा को समझाया कि वे उसके पति के गुलाम हैं और गुलामों के लिए इस तरह का कृत्य बर्जित है । जुलेखा नहीं मानी । युसुफ भागने लगे । जुलेखा ने पीछे से उनकी कमीज पकड़ी । कमीज फट गयी । तभी वहाँ पोतीपर आ गया । अब जुलेखा के पास कोई चारा नहीं था । उसने सारा इल्जाम युसुफ पर मढ़ दिया ।
युसुफ ने अपनी सफाई में कहा था- " यदि मैं अपराधी हूँ तो मुझे सजा अवश्य दी जाए । लेकिन मुझे भी इंसाफ चाहिए । " युसुफ ने पास हीं खेल रहे चार साल के बच्चे को पंच बदा , क्योंकि बच्चे मन के सच्चे होते हैं । बच्चे ने इंसाफ किया । उसने कहा-"यदि कमीज आगे से फटी है तो युसुफ की और यदि पीछे से फटी है तो जुलेखा की गल्ती है ।" जुलेखा की गल्ती निकली । कमीज पीछे से फटी थी ।
पोतीपर ने अपनी पत्नी का पक्ष लिया । उसने युसुफ को जेल में डाल दिया । एक रात पोतीपर ने सपना देखा कि सात स्वस्थ गायों को सात कमजोर गायें खा रहीं हैं । वहीं पर सात सूखी और सात हरी बालियां रखीं हुईं हैं ।
पोतीपर ने इस स्वप्न फल पर अपना विचार देने के लिए सबसे कहा । कोई विचार नहीं दे पाया । फिर किसी ने युसुफ का नाम लिया । युसुफ को जेल से छोड़ दिया गया । युसुफ ने कहा - "सात खेतों का अनाज न बेचा जाय । यही अनाज दुर्दिन में काम आएगा । भयंकर दुर्भिक्ष सात सालों तक रहने वाला है ।"युसुफ की बात सच निकली थी ।
पोतीपर ने युसुफ को वहीं रख लिया । उसे गल्ला बांटने का प्रभारी बना दिया था । भयंकर दुर्दिन में युसुफ के भाई भी गल्ला लेने आए । उन्होंने युसुफ को नहीं पहचाना । लेकिन युसुफ अपने भाइयों को पहचान गये । उन्होंने अपने भाइयों को अनाज तो दिया हीं साथ हीं अनाज में कुछ धन भी छुपाकर दे दिए । अगली बार युसुफ के भाई फिर आए । साथ में युसुफ का सगा भाई बन्या बैन भी आया । युसुफ उसे देखकर खुश हो गये । उन्होंने बन्या बैन को अपने पास रख लिया । उसे चुपके से बता दिया कि वे युसुफ हैं ।
जब यही बात युसुफ के अन्य भाइयों को लगी तो उन्हें बड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई । उन्होंने युसुफ से क्षमा मांगी । युसुफ ने अपने भाइयों को अपनी एक कमीज दी । कमीज को भाइयों ने अपने पिता को दी । पिता को उस कमीज से युसुफ की खूशबू आई । पिता ने उस कमीज को बड़े प्यार से अपनी आंखों से छुलाया । पिता की आंखों की रोशनी वापस आ गयी ।
जुलेखा के पति पोतीपर का देहावसान हो गया था । अब वह निपट अकेली रह गयी थी । उसने अपना सारा धन युसुफ के पिता के कदमों में रख दिया । पिता ने वह धन नहीं लिया । उसे जकात में दान करने को कहा था । युसुफ ने पिता के कहने पर जुलेखा से बाद में शादी कर ली थी ।
यह कुरान का सबसे अफजल किस्सा है ।
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