मूर्खता की स्तुति
इरास्मस एक धर्म शास्त्री थे । वे बाइबिल के ज्ञाता और एक व्याख्याकार थे । साथ हीं वे मूर्खता के उपासक भी थे । उन्होंने मूर्खता पर एक किताब भी लिखी थी । उनकी किताब का नाम था " मूर्खता की प्रशंसा में " । इस किताब में मोरिया का जिक्र आता है । वह मूर्खता की देवी है । सौंदर्य की देवी " वीनस " का नाम तो आपने सुना होगा । अब जाकर मूर्खता की देवी से भी आपका वास्ता पड़ गया । इस किताब में इरास्मस कहते हैं-
" समय के साथ बेवकूफ बनने का नाटक करना सीखें । आप सभी की तुलना में समझदार होंगे । "
ऐसा हीं नाटक एक महान विद्वान के पुत्र ने किया था । वह गाँव में रहता था । वह जब भी ग्राम प्रधान के घर के सामने से गुजरता था , उसे प्रधान अपने पास बुला लेता । प्रधान अपनी दोनों हथेलियों पर एक एक सिक्का रखता था । एक सिक्का सोने का तो दूसरा चांदी का होता था । वह विद्वान पुत्र से कहता इनमें से जो सिक्का महंगा हो वह उठा ले । लड़का हर बार चांदी का सिक्का उठाता । ऐसे में प्रधान और उसके पास बैठे लोग हंसते । वे कहते - " देखो, एक विद्वान पुत्र को सोने चांदी की समझ नहीं है ।"
विद्वान पुत्र भी हंसता । लेकिन अकेले में । उसके पास चाँदी के ढेर सारे सिक्के हो गये थे । जिस दिन वह सोने का सिक्का उठा लेता , उस दिन वह समझदार हो जाता । लेकिन उसके बाद यह खेल खत्म हो जाता । प्रधान को पता चल जाता कि विद्वान पुत्र समझदार है । फिर प्रधान को हँसने का कोई और बहाना ढूंढना होता । विद्वान पुत्र की आमदनी बंद हो जाती । ऐसे में नाटक करने में क्या बुराई है ? मूर्ख बनना घाटे का सौदा नहीं है ।
कुछ लोग मूर्ख बनने का नाटक नहीं करते , बल्कि वे मूर्खता की हद तक मूर्ख होते हैं । वे समझदार होने का नाटक करते हैं ।
हमारे पूर्वांचल में बहू की विदाई में दो बक्से दिए जाते हैं । एक बहू का होता है , जिसमें बहू के कपड़े और उसके श्रृंगार का सामान होता है । दूसरा बक्सा सास के लिए होता है । इसे सरकारी बक्सा बोलते हैं । इस बक्से से सास आने वाले परिजनों और स्वजनों को कपड़े व अन्य गिफ्ट बांटती है ।
एक परिवार में बहू के बक्से से चप्पल निकला । उस समय चप्पल नया नया चलन में आया था । हर किसी को इस बावत जानकारी नहीं थी । उस परिवार को भी चप्पल की जानकारी नहीं थी । गाँव की अकिला फुआ को बुलवाया गया । अकिला फुआ ने अपने अक्ल का घोड़ा दौड़ाया । कुछ पता नहीं चला तो उन्होंने इसे नकलोल कह दिया । इस तरह से अकिला फुआ ने समझदार होने का नाटक किया ।
मुंह देखाई की रस्म की जानी थी । बहू को तैयार किया जा रहा था । उस तथाकथित नकलोल को बहू के नाक से सिलने की बारी आई तो बहू किसी बहाने से मकान के पीछे गयी और वहाँ से अपने मायके के लिए भाग निकली । उसका नकलोल ससुराल में हीं छूट गया । बहू ने ससुराल के लिए एक चिट्ठी लिखी थी -
जब तक रहेंगी अकिला फुआ यह गाँव रहेगा डांवाडोल । मर जाएंगी अकिला फुआ फिर भी चप्पल रहेगा नकलोल ।
ऐसे हीं समझदारी का नाटक करते हुए बिहारी कवि ने एक शख्स को पकड़ा था । इत्र बेचने वाले ने उस शख्स के हाथ पर थोड़ा सा इत्र धर दिया था । उसने तत्क्षण हीं उसे पी लिया और कहा - मीठा है । ऐसे में बिहारी कवि का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया । जब सूंघने की चीज कोई पीने लगे तो गुस्सा आना लाजिमी हो जाता है । बिहारी कवि ने गंधी ( इत्र बेचने वाले को) को फटकार लगायी थी -
करी फुलेल को आचमन मीठो कहत सराहि ऐ गंधी मति अंध तू इतर दिखावत काहि
अभी हाल हीं में सोशल मीडिया को एक पढ़े लिखे बेवकूफ से पाला पड़ा है । एक अमेजन कस्टमर ने अपने घर में पूजा कराया । पूजा सामग्री में गाय के गोबर का उपला भी था । हवन के बाद कुछ उपला बच गया था । उसने उन उपलों को खाया और अमेजन को लिखा था -
" It tasted very bad when I ate it . It was grass like and muddy in taste . I got loose motion after that. Please be little more hygienic while manufacturing. Also pay attention to the taste and crunchiness of this project.
( जब मैंने इसे खाया तो इसका स्वाद बहुत बुरा लगा । यह घास जैसा और स्वाद में कीचड़ जैसा था । मुझे दस्त लगने लगे । कृपया इस उत्पाद को बनाते समय थोड़ा साफ सफाई का ख्याल रखें । इस उत्पादन के स्वाद पर भी ध्यान दें और इसके कुरकुरेपन पर भी ।)
उपरोक्त टिप्पणी से आपको यह नहीं लगता कि यह शख्स मूर्ख होने का नाटक कर रहा है । भला कोई उपला भी खाता है ? यदि इसने मुंह में डाला भी तो इसे उपले के स्वाद से बेजार होकर उसे उगल देना चाहिए , कुल्लाकर मुंह साफकर लेना चाहिए ; लेकिन इसने उपला इतना खाया कि इसे दस्त पर दस्त लगे । अब ये श्रीमान जी इस उत्पाद के साफ सफाई, स्वाद एवं कुरकुरेपन की बढ़ोत्तरी के लिए सुझाव भी दे रहे हैं । इन्हें उपला का पता नहीं हैं । किस ग्रह के प्राणी हैं ये ? ये किसको मूर्ख बना रहें हैं ? कोई बात नहीं । हम तो यही कहेंगे- " दिल को खुश करने को गालिब ये ख्याल अच्छा है" ।
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