इस हाल में भी सांस लिए जा रहा हूं.
नोबल पुरूष्कार विजेता अंग्रेजी के लेखक रूडयार्ड कीपलिंग का जन्म 30 दिसम्बर सन् 1865 को भारत में हुआ था . इनका बचपन भारत में बीता. उसके बाद वे तकरीबन दस साल तक इंग्लैंड में रहे. बचपन के भारत में व्यतीत किए गये क्षण उन्हें पुनः खींच कर भारत लाए. वे लगभग छः साल यहां और रहे .वे दिन भर यहां की जंगलों की खाक छानते .खाक छानते छानते उन्होंने एक पुस्तक लिख दी - The Jungle book ,जो 1893-94 के लगभग बाजार में आई .रूडयार्ड कीपलिंग लेखक बन गये.
जंगल बुक के कथानक पर हीं सन् 1990 में एक टी वी धारावाहिक बनी थी. इसमें मोगली नाम के किरदार का पालन पोषण भेड़ियों का झुण्ड करता है. अंत में मोगली अपने गांव लौट जाता है. जंगल के सारे जानवर मोगली को पसंद करते हैं. जब मोगली अपने गांव जाता है तो सारे जानवर उसे जंगल के सरहद तक छोड़ने आते हैं. वे मोगली की अश्रुपूरित नेत्रों से विदाई देते हैं. उस दौरान इस सीरियल के लिए लिखा गुलजार का शीर्षक गीत काफी लोकप्रिय हुआ था -
जंगल जंगल पता चला है,
चड्ढी पहन के फूल खिला है.
रूडयार्ड कीपलिंग ने कुछ यथार्थ, कुछ कल्पना का ऐसा ताना बाना बुना था कि The jungle book पुस्तक काफी लोकप्रिय हो गई. इस लोकप्रियता से उत्साहित हो सन् 1895 में उन्होंने एक और किताब लिखी थी - -The Second jungle book.
रूडयार्ड कीपलिंग सन् 1888 व सन् 1889 के दरमियां इलाहाबाद में भी रहे थे. उस समय वे वहां एक लोकप्रिय अंग्रेजी अखबार के प्रधान सम्पादक थे.एक बार महात्मा गांधी को इलाहाबाद से ट्रेन पकड़ कहीं जाना था. ट्रेन लेट थी. इसलिए वे रूडयार्ड कीपलिंग के दफ्तर उनसे मिलने पहुंच गये. गाँधी जी ने कीपलिंग से कहा कि आपका अखबार सत्याग्रहियों के त्याग और तपस्या को नजरअंदाज कर रहा है. आप वही खबरें छापते हैं, जिनसे सत्याग्रहियों की नकारात्मक छवि बनती है. आप एक खबरनवीश हैं. आपको निष्पक्ष हो खबरें छापना चाहिए. गांधी जी का विरोध Classic था. उसमें हिंसा की कोई जगह नहीं थी. रूडयार्ड कीपलिंग गांधी जी से काफी प्रभावित हुए. उन्होंने खुद गांधी जी का इंटरव्यू लिया. अपने अखबार में उस इंटरव्यू को प्रमुखता से छापा.
उस इंटरव्यू के छपने से ब्रिटिश सरकार रूडयार्ड से नाराज हो गई. लिहाजा उन्हें भारत छोड़ना पड़ा. इंग्लैंड में रहते हुए रूडयार्ड कीपलिंग की दिनांक 18 जनवरी सन् 1936 को मौत हो गई.
रुडयार्ड कीपलिंग का बंगला आज भी इलाहाबाद में मौजूद है. बंगला जर्जर हालत में है. कोई रख रखाव नहीं, कोई मरम्मत नहीं, किंतु यह आज भी जिंदा है. सांसे ले रहा है.
इस हाल में भी सांस लिए जा रहा हूं मैं,
जाता नहीं आस का आजार क्या करूं ?
-Er S D Ojha
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