ऊंचेय कैलाशा शिव मेरा बसदा.
किन्नौर रामपुर वुशहर रियासत का एक अंग था. इसका अंतिम राजा पद्म सिंह थे, जिनका शासन काल सन् 1914 से सन् 1947 तक रहा. देश आजाद होने के बाद राजशाही खत्म हुई तो यह आजाद भारत का एक अंग बन गया .समुद्र तल से 2760 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रिकांगपियो किन्नौर का जिला मुख्यालय है. कल्पा, सांगला, छितकुल, कोठी, निचार, नाको, पूह, रोपा व काजा आदि यहां के दर्शनीय स्थल हैं.
किन्नौर में बहुपति प्रथा है. यदि एक परिवार में पांच भाई हैं तो पांचों की शादी एक हीं लड़की से होगी. इस तरह की शादी से जायदाद का बंटवारा तो रूक जाता , पर बहुत सी लड़कियां कुंवारी हीं रह जातीं. इन कुंवारी लड़कियों को मजबूरन वौद्ध भिक्षुणी बनना पड़ता ,जिन्हें 'चमो 'कहते हैं. बहुपति प्रथा अब लगभग समाप्त हो गई है. कहीं कहीं प्रतीक के तौर पर यह प्रथा नजर आ जाती है. जनश्रुति के अनुसार पाण्डव द्रोपदी के साथ यहां अज्ञात वास के दौरान कुछ दिन ठहरे थे. बहुपति प्रथा यहां के लोगों ने पाण्डवों से हीं सीखा था.
सर्दियों में वर्फ पड़ने पर किन्नौरी घरों में कैद होकर रह जाते हैं. आपस में हंसी मजाक कर, गप्प मारकर ये इन मुश्किल दिनों को आसान बनाते हैं. इसे ये 'घोटुल 'कहते हैं. किन्नौर में घर की मुखिया औरतें होती हैं. पति व बच्चों की देखभाल करना इनका मुख्य काम होता है. मुखिया को 'गोयनो ' कहा जाता है.
किन्नौर की सीमा आरम्भ होते हीं सतलुज के दोनों ओर छोटे छोटे गांव नजर आने लगते हैं. नदी पार करने के लिए उड़न खटोला (Rope way) ट्राली लगी होती है. यहां के मन्दिरों में प्रवेश के लिए सिर पर टोपी व कमर में रस्सी बांधना आवश्यक होता है. जिनके पास ये नहीं होता , उन्हें मंदिर के पुजारी मुहैय्या कराते हैं. मन्दिर अधिकत्तर लकड़ी के बने होते हैं. यहां बहुत से प्राचीन लकड़ी के मंदिर हैं, जो अब भी मजबूती से खड़े हैं. यहां लकड़ी में दीमक नहीं लगती. दीमक वहां लगती हैं, जहां ऊमस (humidity) होती है. यज्ञ के आयोजन के लिए शिमला, सरहान या हमीरपुर से पंडितों को बुलाना पड़ता है. सन् 1962 की चीन के साथ हुई लड़ाई में ये पंडित निचली इलाकों में चले गये थे. वौद्ध धर्मावलम्बी हिन्दुओं के साथ मिल जुल कर रहते हैं. मन्दिर, गोम्फा का अनुष्ठान साझे तौर पर किया जाता है.
किन्नौर में अलूचे, खुमानी तथा अंगूर की शराब बनाई जाती है. कोदो व जौ की भी शराब बनती है. शराब का सेवन सभी मर्द करते हैं, पर औरतें नहीं करती हैं. शराब घरों में औरतें हीं परोसती हैं. चीड़ के पेड़ों की जड़ों में विजली की गर्जना से एक तरह की सब्जी उगती है, जो गुच्छी कहलाती है. आज बाजार में गुच्छी की कीमत पांच हजार रूपये प्रति किलो है. किन्नौरी सेव हमेशा कश्मीरी सेव पर भारी पड़ा है.
किन्नौर क्षेत्र में बैल की तरह का एक जानवर पाया जाता है, जिसे 'याक ' कहते हैं. याक अन्य जानवरों के चरे गये जूठी घास को नहीं खाता है. यह अपने लिए नित नये जूठा रहित क्षेत्र तलाशता है. वैसे तो याक शान्त जानवर है, पर जब कभी अपनी पर आ जाता है तो इसे सम्भालना मुश्किल हो जाता है. याक को नमक बहुत पसंद है. पत्थर पर रखे गये नमक को यह तब तक चाटता रहेगा, जब तक कि नमक का स्वाद मिलता रहेगा.
फुलैचा किन्नौर घाटी का प्रमुख त्यौहार है. इसे ऊख्यांग भी कहा जाता है. ऊ का मतलब फूल और ख्यांग का तात्पर्य देखना होता है. अर्थात् फूल देखना. अतिथि सत्कार में महिलाएं अग्रणी होती हैं. यहां का साल उद्दोग इन औरतों की हीं बदौलत है.
सर्दियों में शिव किन्नर कैलाश चले आते हैं. किन्नर कैलाश देखने के लिए दूर दूर से पर्यटक आते हैं. देखने में किन्नर कैलाश नजदीक लगता है, पर चढ़ते चढ़ते तीन दिन का विचारणीय समय लग जाता है. जो लोग चढ़ाई नहीं चढ़ना चाहते हैं वे किन्नर कैलाश की परिक्रमा हीं कर लेते हैं. परिक्रमा भी तीन दिनों तक चलती है, पर चढ़ाई से निजात मिल जाती है. किन्नौर के जन जन और कण कण में शिव व्याप्त हैं. लोकगीतें भी शिवमय हैं.
ऊंचेय कैलाशा शिव मेरा बसदा.
कुन वो गलांदां गौरा नी बसदा.
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