कल मेरा जनम दिन था ।
कल सुबह दूध लेने दूकानदार के पास पहुंचा । दूकानदार ने हंस कर स्वागत किया । मुझे उसकी हंसी में कुछ कटाक्ष नजर आई । जैसे कह रहा हो - आ गया एक साल और पुराना आदमी । जी हां ! एक साल और मैं पुराना हो गया । कल मुझे सुबह से शाम तक बधाई मिलती रही , एक साल और पुराने होने की । मैं भी मजे मजे में सबकी बधाईयां स्वीकार करता रहा । हंसता रहा । बदले में आभार लिखता रहा । फेसबुक पर पता नहीं ये कैसा नामुराद फिल्टर आया है , कमेंट करने पर वह कमेंट पोस्ट होता ही नहीं । मैं भी
" तू है हरजाई तो मेरा भी यह तौर सही " की तर्ज पर "और
नहीं और सही " का विकल्प ढूंढता रहा । बेटों की मदद लेता रहा । रात तक लगा रहा । तब जाकर कहीं अपने साल दर साल पुराने होने की बधाईयों का आभार दे पाया ।
तेरी मंजिल पर पहुंचना इतना आसां न था ,
सरहद -ए - अक्ल से गुजरे तो यहां तक पहुंचे ।
जनम दिन से यह फायदा हुआ कि मेरे फेस बुक फ्रेण्ड Sultan Ahmed] मुझसे केवल एक साल छोटे निकले । जनाब रंग रोगन कर इस कदर बैठे हैं जैसे मुझसे दस बीस साल छोटे हों । वे लिखते हैं -" जमाने की चालबाजियां हैं जनाब .........क्या हम पर हीं लाजिम सभी वफादारियां हैं "।आप सही कह रहे हैं । काश ! केशव दास के समय में ये रंग रोगन होते ! डेंटिंग पेण्टिंग का यह हिसाब किताब होता ! तो केशव दास भी नये नवेले बने फिरते । कोई चंद्र बदना , मृग लोचना उनको बाबा कहने की हिमाकत नहीं करती । उस दौर में उन्हें तंग आकर कहना पड़ा था -
केशव केसन असि करी , जो अरि न कराहीं ।
चंद्र बदन मृग लोचनी , बाबा कहिं कहिं जाहीं ।
केशव दास के बालों ने उनसे ऐसा व्यवहार किया जो दुश्मन भी नहीं कर सकता । मेरे बालों ने भी मेरे साथ बहुत नाइंसाफी की है । 30 - 45 के बीच के जवान (मेरे फेस बुक फ्रेण्ड ) मुझे दादा कहने लगे हैं । जब कि मेरा अपना बड़ा पोता महज 10 साल का है । भाई Sultan Ahmed तो अभी तलक अंकल की श्रेणी में भी नहीं आ पाए हैं । यही हाल रहा तो कल मैं परदादा की श्रेणी में आ जाऊंगा । लेकिन एक फायदा होगा । उम्र व सत्कार एक दूसरे के समानुपाती होते हैं । जितनी उम्र उसी के हिसाब से सत्कार मिलेगा । भाई Sultan Ahmed इससे महरुम रहेंगे । फिर क्या बुरा है जो मैं परदादा की श्रेणी में आ जाऊं ।
उनकी जुल्फों में शबनम की बूंदे ,
जैसे घास में पड़ीं ओंस की बूंदें ,
क्या बुरा है जो छत टपकती है ।
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