याद न जाए बीते दिनों की.
घर से निकलकर कुछ दूर चलते हीं बेर की झाड़ियां आ जातीं थीं. उनमें मीठे बेर लगे होते थे. बेर खाने का एक अलग हीं मजा था. साथ हीं बेर के कांटे भी होते थे, जो गाहे ब गाहे चुभ जाया करते थे. ऐसे कैसे हो सकता है कि आप बेर खाएं और कांटे न चुभे. ये तो वही बात हुई कि गुड़ खाए, पर गुलगुले से परहेज करे. कई बार हम गर्मियों में बेर की झाड़ियों में आग लगा देते थे, ताकि बारिश के दिनों में फिर बेर लहलहा उठे और नये सिरे से फिर ढेरों फल दे. एक बार आग भड़क उठी. वह गांव की तरफ बढ़ने लगी. हमारे प्राइमरी स्कूल के टीचर वृजबिहारी सिंह ने आग को बुझाने के लिए लड़कों को भेजा. किसी तरह से आग पर काबू पाया गया. इस तरह की आग की तारतम्यता(Continuity) को आप तोड़ देंगे तो आग आगे नहीं बढ़ पाएगी. इस केस में भी यही उतजोग अमल में लाया गया. आग लगाने की मंशा सभी की थी, पर सजा मिली केशव पाण्डेय को . शिक्षक की नजर में वे शातिर थे और शातिर के खिलाफ गवाही देने वाले भी बहुत थे, जिनमें मैं भी एक था.
आगे चलने पर दो महुआ के पेड़ आते थे. इन पेड़ों के नीचे हम विश्राम करते थे. गर्मियों में दूर बहुत देखने पर लगता था कि पानी की लहरें झप झप कर रही हैं. बाद में पता चला कि ये लहरें कृत्रिम होती हैं और गर्मी की वजह से नजर आती हैं. इन्हें 'मृग मरीचिका ' कहा जाता है. मृग मरीचिका की वजह से मृग पानी के लालच में वहां पहुंचता है तो पानी उसे वहां नहीं मिलता, बल्कि उतनी दूर और अागे पानी नजर आता है.
महुआ के पेड़ के बगल में हम मिट्टी के ढेलों का पिरामिड बनाते थे,जिसे ढेलहवा बाबा कहते थे. हमारी मान्यता थी कि ढेलहवा बाबा मति बुद्धि देते हैं. इसलिए हम उनकी पूजा करते थे. गुड़ का भोग लगा,उन्हें अगरबत्ती दिखाते थे. फिर गुड़ का प्रसाद बांटते थे.
आगे चलकर एक खेत के बीच से होकर गुजरते थे. खेतवाह लाख जतन करते कि बच्चे बीच से न जाए, पर हम उनके सभी जतन पर भारी पड़ते. वे अक्सर कांटे लगाते, हम कांटे हटा देते. पता नहीं कि हमें ऐसा क्यों लगता कि यह हमारा हक है और खेत के मालिक हमारे हक से हमें महरूम कर रहे हैं. कई बार खेत के मालिक जब खेत में होते तो हम खेत के बीच से नहीं जाते, पर वे नसीहत देना नहीं भूलते. कहते हैं कि एक बार उन्होंने एक बड़े बच्चे के टांगों के बीच लात से प्रहार भी किया था . हम फिर भी नहीं सुधरे. तू डाल डाल, हम पात पात.
वहाँ से प्राइमरी स्कूल पास हीं था. स्कूल के नजदीक एक छवर (ग्राम समाज की सड़क) आती थी. उस छवर पर बरसात में पानी भरा होता. रामानन नाम के एक बड़े लड़के की ड्यूटी लगी होती. वे हम सबों को कन्धे पर उठाकर पानी पार कराते थे. स्कूल पहुंचकर चारों तरफ का एरिया साफ करना पड़ता था. इसके लिए एक कमांडर लड़का होता था, जो इसका इन्चार्ज होता था. वह अकारण हीं छोटे बच्चों को मार देता था. ऐसे हीं एक बच्चे के पेट में उसने लात मार दी थी. वह उल्टी करनॆ लगा था. बाद में उसकी दादी ओरहन (शिकायत) लेकर आईं थीं. शिक्षकों ने किसी अप्रिय घटना से बचने के लिए उस सफाई प्रभारी को भगा दिया था.
सफाई के बाद प्रार्थना होती.
वह शक्ति हमें दो दया निधे,
कर्तब्य मार्ग पर डट जाएं.
जिस देश जाति ने जन्म दिया,
बलिदान उसी पर हो जाएं
-इं एस डी ओझा
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