दिल का दिया जला

 मोहन राकेश नई कहानी विधा के महानायक थे । उनके साथ त्रिदेव में शामिल कमलेश्वर और राजेन्द्र यादव भी उनके इस बर्चस्व को मानते थे । उनकी लिखी " मलवे का मालिक " , " जीनियस " , " मवाली " , " मंदी ", " उसकी रोटी ,"आर्द्रा" "सुहागिनें " " मिस पाॅल "और " सीमाएँ " आदि मील का पत्थर साबित हुई हैं ।

भारतेंदु हरिश्चंद्र और जय शंकर प्रसाद के बाद यदि किसी ने नाटक को रंगमंच तक पहुँचाया तो वे थे मोहन राकेश  । उनके लिखे " आषाढ़ का एक दिन " , "आधे अधूरे ", " लहरों के राजहंस" आदि नाटकों का सफलता पूर्वक मंचन हुआ था ।वे अपने हर नाटक के रिहर्सल पर मौजूद रहते थे । उनको नाटक क्षेत्र में इस अप्रतिम योगदान के लिए 1968 में  " संगीत नाटक अकादमी " सम्मान प्रदान किया गया था । 

मोहन राकेश ने उपन्यास भी लिखे थे । उन्होंने " अंधेरे बंद कमरे" , " न आनेवाला कल " , " अंतराल " और " बकलम खुद"चार उपन्यास भी लिखे थे । उनकी लिखी कहानी " उसकी रोटी " पर फिल्म भी बनी थी ।

मोहन राकेश ने बहुत कम समय में हिंदी साहित्य को अपने ढेर सारे लेखन से अलंकृत किया था , लेकिन उनका स्वभाव जो था, वह फक्कड़पन से ओत प्रोत था । उन्होंने दो शादियां की दोनों नहीं चलीं । पहली से तो एक बेटा भी था । फिर भी वह शादी कामयाब नहीं हुई । वजह था परिवार को समय न दे पाना । वे अपने लेखन और सहित्यिक गोष्ठियों में मशगूल रहते थे ।

उनकी पहली शादी से उत्पन्न बेटे को केंद्र में रखकर मन्नू भंडारी ने एक उपन्यास लिखा था - " आपका बंटी " । यह उपन्यास हिंदी साहित्य के टाॅप टेन में आज भी जगह बनाए हुए है । जब यह उपन्यास धर्मयुग में धारावाहिक छपा था तब धर्मयुग की बिक्री अचानक बढ़ गयी थी । मन्नू भंडारी ने इस उपन्यास के प्रकाशन से पहले मोहन राकेश से इसकी इजाजत ले ली थी ।मोहन राकेश का कहना था कि कहानी हमारे आस पास के परिवेश से हीं बनती है । हम जो देखते हैं,  महसूस करतें हैं,  वही लिखते हैं ।

दूसरी पत्नी को छोड़ते समय मोहन राकेश बहुत रोए थे । पत्नी को उसके घर तक छोड़ने वे खुद गये थे । साथ में कादम्बिनी के तत्कालीन संपादक राजेन्द्र अवस्थी भी थे । राजेन्द्र अवस्थी ने मोहन राकेश को फूट फूट कर रोते हुए देखा था । फिर वे एक झटके के साथ कार ड्राइव करते हुए अपने घर आ गये थे ।

मोहन राकेश की मुरीद ग्वालियर की चंद्रा मोहन भी थीं । वे अक्सर मोहन राकेश को खत लिखा करतीं थीं । एक बार उन्होंने लिखा कि मोहन मुंबई से दिल्ली जाते समय कुछ दिनों के लिए ग्वालियर भी उनके साथ रुकें । मोहन राकेश आए । उन्हें  चंद्रा मोहन की बेटी अनिता औलख पसंद आ गयी । चंद्रा ने बैठे बिठाए मुसीबत मोल ली थी । मोहन राकेश और अनिता औलख की उम्र में 17 / 18 साल का अंतर था । दोनों ने भागकर शादी कर ली ।

शादी के बाद मोहन राकेश ने अनिता के सामने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी थी । उनका कहना था कि उनकी प्रथम प्राथमिकता लेखन,  द्वितीय प्राथमिकता उनके दोस्त और तृतीय प्राथमिकता पर अनिता औलख रहेंगी । अनिता औलख ने मन्नू भंडारी के अनुमोदन पर मोहन राकेश को चुना था । लेकिन ऐसी शर्त की उम्मीद उनको नहीं थी । फिर भी उन्होंने इसे अपनी नियति माना और मोहन राकेश के साथ सफल दाम्पत्य के छः साल गुजारे थे।

मोहन राकेश हीं कमजोर निकले । वे महज 46 / 47 साल की उम्र में हीं 3 जनवरी 1972 को दुनियां छोड़ गये थे । उनकी मौत का गम कप्लेश्वर और राजेन्द्र यादव को बहुत हुआ था । बकौल मन्नू भंडारी राजेन्द्र यादव बिस्तर पर औंधे मुंह लेटकर फफक फफक कर रोए थे । 

मोहन राकेश के दिल का दिया बहुत समय बाद जला था । इसे बहुत दिनों तक जलना था । लेकिन नियति को मंजूर नहीं हुआ।

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