लोग करते हैं बहुत तारीफ नैनीताल की.

कहा जाता है कि नैनीताल की खोज सन् 1841 में एक अंग्रेज पी बेरून ने की थी, लेकिन यह ताल उतना हीं प्राचीन है, जितना कि कैलाश मान सरोवर. कैलाश मानसरोवर यात्रा का प्राचीन पथ यहीं से होकर गुजरता था. ऐसे में यह कहना कि इसकी खोज किसी अंग्रेज ने की थी, कोरी लफ्फाजी के सिवा कुछ भी नहीं है. इस झील का जिक्र स्कन्द पुराण में भी मिलता है. यह झील 1500 mtr लम्बी, 510 mtr चौड़ी और 30 mtr गहरी है. नैनीताल एक जिला है, जिसमें कभी 60 ताल होते थे. इसीलिए इसे षष्टिखात कहा जाता है, जिसका अपभ्रंश रुप 'छखाता ' अाजकल प्रचलन में है.
सती अपने पिता दक्ष के द्वारा पति शिव का अपमान सहन नहीं कर पाईं . उन्होंने अपने पिता के यज्ञ कुण्ड में कूदकर अपनी जान दे दी. शिव ने पत्नी के वियोग में काफी ताण्डव किया. दक्ष का यज्ञ विध्वंस कर दिया. सती के शव को लेकर आकाश मार्ग से चल पड़े. प्रलय की आशंका को देखते हुए विष्णु ने सती के शव को चक्र सुदर्शन ने काटना शुरू किया. शरीर का जो भाग जहां जहां गिरा , वहां वहां एक एक शक्ति पीठ बना. इस तरह के पूरे भारत में कुल 64 शक्तिपीठ हैं. सती की बाईं आंख नैनी ताल के पास गिरी , जहां आज का नैना मंदिर है. हिमाचल प्रदेश में दाईं आंख गिरी थी, वहां भी एक शक्तिपीठ बना, जिसे नैना देवी कहा जाता है. सती के पूरे शरीर का विलय हो जाने के बाद शिव का प्रचण्ड क्रोध शांत हो पाया था.
स्कन्द पुराण में नैनी ताल को ' त्रिऋषि सरोवर ' कहा गया है. तीन ऋषि - अत्रि, पुलस्त्य और पुलह इस शक्तिपीठ पर तपस्या के नियत से आए थे. यहां पानी की कमी को देखते हुए उन्होंने तीन सरोवर बनाए, जो एकाकार हो बाद में एक आंख के शेप में परिवर्तित हो गया. इसीलिए इसे नयन ताल कहा गया, जो बाद में नैनी ताल के नाम से मशहूर हुआ. साल में एक बार नैना देवी के नाम पर यहां मेला लगता है. लोग नैनी ताल की परिक्रमा करते हैं. नैनी ताल के उत्तरी किनारे पर नैना देवी का मंदिर है. सन् 1880 के भूस्खलन में यह मंदिर नष्ट हो गया था, जिसे पुनः निर्मित किया गया है.
नैनीताल के उत्तरी छोर को मल्लीताल व दक्षिणी छोर को तल्लीताल कहा जाता है. इस झील में बादलों का प्रतिविम्ब अत्यंत मनोहारी लगता है. गर्मियों में इस झील का पानी हरा, बरसात में मटमैला और सर्दियों में हल्का नीला हो जाता है. रोशनी में नैनी झील का नयनाभिराम दृश्य सैलानियों को प्रफुल्लित कर जाता है. इस झील का नौकायन चांदनी रात में बहुत हीं आह्लादित करता है. यहां एक ऐसा पुल है, जिस पर पोस्ट आफिस, बस स्टेशन, टैक्सी स्टैंड व रेलवे रिजर्वेशन काउंटर है. यहां के माल रोड, जिसका नाम अब गोविंद बल्लभ पंत मार्ग रखा गया है, पर चिनार के दरख्त लगे हैं. इन चिनारों को यहां की जलवायु रास नहीं आ रही है, जिससे इनका वांछित विकास नहीं हो पा रहा है. दर्शनीय स्नोव्यू प्वांइट पर जाने के लिए रोप वे बना है. नैनीताल में चाइना पीक, किलवरी, लड़िया कांटा, देवपाटा, डेरोथो सीट, स्नो व्यू प्वाइंट और हनी बनी आदि सात चोटियां हैं, जो नैनीताल की खूबसूरती को चार चांद लगाती हैं ;खासकर तब जब इन चोटियों पर चांदी बरसी हो.
नैनी ताल जाने का मुझे दो बार सौभाग्य मिला है. यदि तीसरी बार भी चांस मिले तो जाने से कोई गुरेज नहीं. गजलकार बल्लीसिंह चीमा भी नैनीताल जाने को उत्सुक हैं. आप कब प्रोग्राम बना रहे हैं  ?
लोग करते हैं बहुत तारीफ नैनीताल की.
चल मनाएंगे वहीं पर छुट्टियां इस साल की.
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Er S D Ojha
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