उन्हें यूं हवा ने उड़ा दिया कि पता भी आज न चल सके.
तीर धनुष लेकर हमेशा चलने वाले पहाड़ी कोरवा एक घूमंतू जनजाति है. घूमना हीं इनकी जिंदगी है. इस घूमने के पीछे एक इतिहास है. कहते हैं कि शंकर भगवान ने एक मूर्ति के अंदर जान भर दिया. इस पुतले को नाम दिया कोरवा. कोरवा को भगवान शंकर ने आदेश दिया कि वह जंगल में जाकर रहे और उन जंगलों की प्राणपण रक्षा करे, जो हमारे होने की शर्त है; जो हमारे लिए प्राण वायु उत्सर्जित करते हैं. कोरवा की आबादी बढ़ती गई. पूरी कोरवा की आबादी घूम घूम कर जंगल की रक्षा करती है. जंगलों की अवैध कटाई इनकी वजह से हीं रुकी हुई है. घूमना इनकी फितरत है. एक जगह टिक के रहने से इन्हें लगता है कि अन्य जगह पर कोई जंगल को नुकसान पहुंचा रहा होगा. इसलिए ये चलते रहते हैं.
इन घूमंतू जनजातियों को सरकार ने अब पक्के मकान देकर उनके घूमने की प्रवृति पर अंकुश लगाया है. इनके अब गांव बसने लगे हैं. खेती इनको रास आने लगी है. इनके बच्चे स्कूलों में पढ़ने लगे हैं. आरक्षण की वजह से इन्हें नौकरियां मिलने लगी है, परन्तु आज भी ज्यादातर कोरवा जंगलों में रहना पसंद करते हैं. ये शंकर भगवान का आदेश शिरोधार्य कर जंगल बचाने की मुहिम में लगे हैं.
कोरवा जनजाति के लोग वधु पक्ष को दहेज देते हैं. यदि वधु देखने के नियत से जा रहे कोरवा लोगों को सियार की आवाज सुनाई पड़ जाती है तो ये उसे अपशकुन मानते हैं और उस घर में रिश्ता पक्का नहीं करते. कोरवा जिस घर में रहते हैं, यदि उस घर में कोई मौत हो जाय तो ये उस घर को हीं अशुभ मान वह घर छोड़ देते हैं. बच्चा पैदा होने पर ये घर में एक नया दरवाजा जरूर लगवाते हैं .ऐसा नवागंतुक को बुरी आत्माओं से बचाव के लिए किया जाता है.
कोरवा देवार से अपना इलाज कराते हैं. देवार परम्परागत चिकित्सक होते हैं, जो जड़ी बूटियों से इलाज करते हैं. देवार की परम्परा हजारों साल से चली आ रही है. कोई भी देवार अपना इल्म तब तक किसी अन्य को बताना नहीं चाहता है, जब तक उसे विश्वास नहीं हो जाता कि वह देवार बनने के योग्य है. कई देवार सुपात्र के अभाव में अपना ज्ञान अपने साथ हीं लेकर दुनियां से कूच कर जाते हैं.
छत्तीसगढ़ के सुदूर जंगलों में रहने वाली कोरवा जनजाति अब डेंजर जोन में आ गई है. इनकी जन संख्या सिमट रही है. पिछली बार के जनगणना में इनकी संख्या मात्र 35,000 आंकी गई थी. इनकी घटती जनसंख्या को दृष्टिगत रखते हुए ,सरकार ने इनका परिवार नियोजन करने से मना कर दिया है. यदि किसी को नसबन्दी कराना आवश्यक हो तो सरकार से पहले परमिशन लेनी पड़ेगी. सरकार नसबन्दी कराने के कारणों की जांच पड़ताल करके हीं परमिशन देती है .
जो खिले थे प्यार के रंग सौ,
कभी पंखुरियों में गुलाब के .
उन्हें हवा ने यूं उड़ा दिया कि,
पता भी आज न चल सके.
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