गंगा को निर्मल रहने दो .

वेद ,पुराण ,रामायण ,महाभारत हर जगह गंगा के महिमा का वर्णन है .सम्राट अशोक , विक्रमादित्य ,हर्षवर्धन आदि सभी को गंगा के महत्व का पता था. तात्या टोपे तो गंगा जल के अतिरिक्त किसी पानी को हाथ तक नहीं लगाते थे. मुगल बादशाह अकबर खुद गंगाजल पीते थे और अपने मेहमानों को भी पिलाते थे .उनके लिए हरिद्वार से विशेष तौर पर गंगाजल मंगवाया जाता था .वर्जिल व दांते जैसे साहित्यकारों ने अपने साहित्य में गंगा के पानी की तुलना अमृत से की है .सिकंदर महान के गुरू ने भारत से गंगाजल मंगवाया था,लेकिन भारतीय राजा पोरस ने सिकंदर को पंजाब से आगे नहीं बढ़ने दिया. सिकंदर गंगाजल के बिना हीं अपने देश वापस लौट गया. भारत को गंगा का देश कहा जाता है. प्रसिद्ध इतिहासकार शारदा रानी जब मंगोलिया गयीं थीं तो वहां के लोगों ने उन्हें गंगा के देश से आई महिला कह उन्हें  साष्टांग प्रणाम किया था.  
जब अंग्रेज भारत से इंग्लैण्ड जाते थे तो गंगा के पानी को बोतलों में भरकर ले जाते थे. कारण, यही एक पानी था, जो सड़ता नहीं था. बाकी सभी पानी एक सप्ताह के बाद सड़ना शुरू हो जाता था. पानी वाली जहाज से इंग्लैण्ड जाते समय महीनों लग जाते. इसलिए उस दौरान यह पानी उनके काम आता था. आज से करीब सवा सौ साल पहले आगरा में तैनात ब्रिटिश डाक्टर एम ई हाकिन ने वैज्ञानिक परीक्षण से यह पता लगाया था कि गंगाजल में हैजे व अन्य वीमारियों के कीटाणु को मारने की अद्भुत क्षमता है. गंगा के पानी में वैक्टीरिया को मारने के लिए छिपे तौर पर वैक्टरियोफाज वायरस होते हैं ,जो बैक्टरिया का काम तमाम कर फिर छिप जाते हैं .
गंगा जब गोमुख से निकलती है तो अपने साथ लाती है
तमाम तरह की जड़ी बूटियों के सत्व, खनिज ,लवण ,जो गंगा के पानी में घुलकर उसे मेडिकेटेड बना देते हैं. आज भी गंगा की तलहटी में ये तत्व मौजूद हैं. आम तौर पर बहते पानी की गंदगी 10-15 किलोमीटर जाने के बाद हीं दूर होती है, पर गंगा की गंदगी मात्र 1-2 किलोमीटर के बाद हीं दूर हो जाती है. विश्व में इतना शुद्ध जल केवल उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव पर हीं मिल सकता है, लेकिन रूकिए, यह पानी भी एक वर्ष बाद सड़ जाता है.
बनारस तक गंगा का पानी शुद्ध रहता है ,पर वहां के बाद यह पानी दूषित होता चला जाता है.  औद्दॊगिक शहरों की गंदगी प्रतिदिन गंगा में बहाकर हम यह सोच लेते हैं कि गंगा स्वमेव हीं अपने को शुद्ध कर लेगी. अब गंगा स्नान तो दूर की बात हो गयी है ,आप गंगा में आचमन भी नहीं कर सकते . बढ़ते प्रदूषण के कारण गंगा में डाल्फिन और मछलियां कम हो गयीं हैं. गंगा में अब घातक बैक्टिरिया उत्पन्न हो गये हैं. अब महान् पर्यावरणविद सुन्दर लाल बहुगुणा का यह नारा निरर्थक होता प्रतीत लग रहा है -
गंगा को अविरल बहने दो,
गंगा को निर्मल रहने दो.
        - ई एस डी ओझा

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