जब मेरा कद तेरे आकाश से ऊंचा होगा.

शेर शाह सूरी ने चांदी के सिक्के 1540-45 के बीच जारी किए थे. चांदी को संस्कृत में रूपा कहा जाता है और चांदी के सिक्के को रूप्यकम्. बाद के दिनों में रूप्यकम् का बिगड़ा रूप 'रूपया' हुआ. चांदी के रूपए को कैरी करने में कापी दिक्कत आती थी. इसलिए 18वीं शताब्दी के उतरार्द्ध में अंग्रेजों ने चांदी के सिक्कों के बदले कागज के नोट प्रचलित किए . कागज के नोट को भी रूपया हीं कहा गया. शुरूआती दौर में महारानी विक्टोरिया व जार्ज पंचम की तस्वीर वाले नोट चलन में आए. जब देश आजाद हुआ तो सन् 1947 के बाद सारनाथ के अशोक स्तम्भ को नोटों पर दर्शाया गया. सन् 1966 के बाद महात्मा गांधी वाले नोट चलन में आए.
चांदी के सिक्के जब तक चलन में रहे तब तक उन्हें रखने में लोगों को परेशानी हीं रही. लोग उन्हें लोटे में रख जमीन में गाड़ देते थे या किसी विश्वास पात्र के पास रख देते थे. लोग बहुत कम हीं बैंक में रख पाते थे. लोग अनपढ़ होते थे. इसलिए उन्हें बैंकों की कागजी कार्यवाही रास नहीं आती थी. ऐसा हीं एक लोटे का रूपया मेरी मईया (दादी) ने अपने विश्वास पात्र को दिया था. जब वे मृत्यु शय्या पर थीं तो बार बार लोटवा लोटवा शब्द का उच्चारित कर रहीं थीं. उनके निकट मेरे पिता और उनकी बड़ी बहन (मेरी बुआ) थे. वे समझ नहीं पाए. मईया लोटवा के चांदी के सिक्कों को अपनी संतान को सौंप नहीं पाईं-इसका मलाल लिए हीं स्वर्ग सिधार गईं . बाद में मेरी छोटी बुआ ने बताया कि मईया ने अमुक महिला को चांदी से भरा लोटा सुरक्षित रखने के बावत दिया था. उस महिला से पूछा गया. जैसी की आशा थी, उस महिला ने साफ इंकार कर दिया.
यह तो रहा तस्वीर का एक पहलू. अब दुसरा पहलू देखिए. मेरी नानी अपनी छोटी बेटी (मेरी मौसी )को बहुत चाहती थीं. उन्होंने अपनी जिंदगी भर की जोड़ी हुई सम्पति (चांदी के रुपए) गांव के किसी महिला को इस नियत से सौंप दिया था कि उनके मरने के बाद उस सम्पति को वे उनकी छोटी बेटी को दे दें. नानी के बीमार होने की खबर पा मैं और मेरी मां असवारी (पालकी) में बैठकर उन्हें देखने पहुंचे. उस समय मैं काफी छोटा था. इतना याद है कि विस्तर पर एक नरकंकाल लेटा था. बहुत हीं क्षीण सी आवाज उस कंकाल से निकलती, "ए शंकरदयाल ! एगो काथा कहs." कथा कहानी कहने की उम्र में मैं पहुंचा नहीं था . इसलिए मुझे कहना पड़ता, "हमरा लूरि ना आवे. "
मां को देख नानी ने अपना इरादा बदल दिया. उनका वात्सल्य उस चांदी के सिक्के में से आधा मेरी मां को भी देने के लिए उमड़ पडा़. वे बार बार किसी महिला का नाम लेकर अंगुली से हथेली पर अाधा ले लेने का निशान बनातीं. मां समझ गई थी. उसने इशारा से नानी को भी बता दिया कि वह ऎसा कर लेगी.नानी की मौत हो गई .
कुछ दिन बाद वो महिला मां से मिलीं . उन्होंने मां से कहा, " हांलाकि आपकी मां ने ये रुपए अपनी छोटी बेटी को देने के लिए मेरे पास रख छोड़ा था, पर मैं बेईमानी नहीं करूंगी. दोनों बहनों को आधा आधा दे दूंगी. " मां चाहकर भी नहीं कह पाई कि नानी ने मरने से पहले उन रूपयों को दोनों बहनों को आधा आधा देने को कह गई है,क्योंकि इससे उसकी अस्मिता खतरे में पड़ जाती. लोग सोचते कि मेरी मां लालच में पड़कर यह बात कह रही है. कोई गवाह तो था नहीं. इसलिए मां ने कहा, " मैं यह रूपया नहीं लूंगीं. इससे मरने वाले की आत्मा दुःखेगी. आप यह रूपया छोटी बहन को हीं दे दो. " ऐसा कहने से मां का कद अपनी बहन और भाइयों की नजर में बहुत ऊंचा हो गया.
संयुक्त राज्य अमेरिका और विभिन्न यूरोपीय देशों के उपनिवेशों में चांदी के विशाल स्रोत मिलने की वजह से चांदी के सिक्कों के मूल्यों में भारी गिरावट आई. कागज के नोट छपने लगे. चांदी के सिक्कों के गिरावट के कारण कई जगह रिश्ते मजबूत हुए तो कई जगह रिश्तों में दरार आई. लोग इन सिक्कों का इस्तेमाल जल्द से जल्द कर लेना चाहते थे. उन दिनों एक सिक्का कागज के 22 नोट के बराबर था. इसी ऊहांपोह में किसी का कद ऊंचा हो रहा था तो किसी का नीचा.
मैं भी ऐ दोस्त! बहुत झुक कर मिलूंगा तुझसे,
जब मेरा कद तेरे आकाश से ऊंचा होगा.
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Er S D Ojha
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