भूख को मात दी ऐ मसीहा तूने.

एक जमाना था, जब हमारे देश में भूख की समस्या उफान पर थी. अमेरिका से सड़ा हुआ गेहूं निर्यात किया जाता था. यह गेहूं अमेरिका में जानवरों को खिलाने के लिए प्रयुक्त होता था. तिस पर भी यह गेहूं देते समय अमेरिका एहसान दिखाता था. सत्तर की दशक की शुरूआती दौर में (1960 /62 के आस पास) भारत में दुर्भिक्ष फैला. उस समय के कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन ने महान् कृषि वैज्ञानिक नार्मन बोरलाग को भारत आने का निमंत्रण दिया.
नार्मन बोरलाग भारत आए. उस समय भारत की प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी थीं. नार्मन ने योजना आयोग के उपाध्यक्ष अशोक मेहता से मुलाकात की. लेखक लियोन हेस्सेर ने अपनी पुस्तक ' The man who fed the world ' में इस मुलाकात का जिक्र किया है. नार्मन को डर था कि जो योजना वे अशोक मेहता को बताएंगें,  उससे हो सकता है कि उन्हें भारत छोड़ने के लिए कह दिया जाय ,परन्तु हुआ उसका उल्टा . अायरन लेडी इंदिरा गांधी ने नार्मन बोरलाग के द्वारा सुझाए गए सुझावों पर अशोक मेहता को अमल करने का आदेश दिया, जिसके लिए पूर्ववर्ती योजनाओं में आमूल चूल परिवर्तन करना पड़ा. सन् 1966 में नार्मन बोरलाग की उन्नत की गई गेहूं व धान की नई किस्में भारत को मिल गईं .नतीजा भारत में बम्पर पैदावार हुई. यह आयातक देश अब निर्यातक बन गया. भारत खाद्दान्न के मामले में आत्म निर्भर हो गया.
नार्मन बोरलाग विश्व हरित क्रांति के प्रणेता थे. उन्होंने गेहूं व धान की ऐसी तकनीक विकसित की, जिससे उपज सात सौ गुना बढ़ गई. उन्होंने विश्व के कई देशों की सरकारों को अार्थिक नीतियों पर देश, काल और परिस्थिति के अनुसार अहम सुझाव दिए. उन्हीं के सुझाव के कारण भुखमरी के कगार पर पहुंचे भारत में इतनी पैदावार हो गई है कि आज अनाज रखने की समस्या हो गई है. गोदामों में गेहूं सड़ने लगे हैं.
नार्मन बोरलाग का जन्म अमेरिका के अयोवा में एक सामान्य परिवार में हुआ था. मिनसोय विश्वविद्यालय में पढ़ते समय उन्होंने भुखमरी को समझना शुरू कर दिया. उनका कहना था कि भोजन मनुष्य का मौलिक अधिकार  है, जिससे उसे महरूम करना उसके साथ नाइन्साफी है. ड्यूपांट में वे नौकरी करने लगे थे. सन् 1944 में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया. वे ड्यूपांट से मेक्सिको आ गये. यहां आकर उन्होंने गेहूं और धान की उन्नत किस्मों पर शोध शुरू किया. 1963 में उनकी मेहनत रंग लाई. मेक्सिको के अनाज उत्पादन में 95% बढ़ोत्तरी हुई.
नार्मल बोरलाग के इस ईजाद से विश्व पटल से भूखमरी का नामोनिशान मिट गया. उन्हें 1970 में नोबल पुरूष्कार दिया गया.बोरलाग को 60 से ज्यादा विश्वविद्यालयों से मानद डिग्रियां मिली थीं. वे 11देशों के कृषि विज्ञान अकादमियों के सदस्य भी रहे. सन् 2006 में भारत सरकार ने नार्मन बोरलाग को भारत का द्वितीय सर्वोच्च सम्मान पद्मविभूषण से नवाजा था. सन् 2009 में 95 साल की उम्र में उनका निधन हो गया . उनके निधन पर भारत के कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामी नाथन ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा था-
" नार्मन बोरलाग भूख से मुक्त दुनियां की इंसानी तलाश के जीवंत प्रतीक थे. उनका जीवन हीं उनका संदेश है. "
नार्मन बोरलाग मर गए,पर अपनी बिरासत इस विश्व में बम्पर अनाज के रूप में छोड़ गये हैं. उन्हीं बोरलाग के बारे में यदि कोई यह कहता है कि वे कौन थे? वह उन्हें नहीं जानता है तो कलेजा चाक हो जाता है.
भूख को मात दी ऐ मसीहा तूने.
चूल्हों को आग दी ऐ मसीहा तूने.
                  - ई एस डी ओझा

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