लौटा दे वो अर्जुन भीम वीर.
15 अगस्त सन् 1947 को भारत आजाद हुआ.सरदार बल्लभ भाई पटेल ने बहुत सी रियासतों को अपने बुद्धि विवेक के बल पर भारत में विलय करवा लिया, लेकिन जूनागढ़ के नवाब और कश्मीर के राजा विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने में देर कर रहे थे. जूनागढ़ को सैन्य बल पर भारत में मिला लिया गया. नवाब को पाकिस्तान में शरण लेनी पड़ी. कश्मीर के राजा की ढुलमुल नीति का फायदा उठाते हुए जिन्ना ने दिनांक 22 अक्टूबर सन् 1947 को कश्मीर पर कबाइली हमला करवा दिया . हैरान परेशान राजा हरि सिंह जम्मू भागकर आ गये. अबकी बार उन्होंने भारत सरकार से विलय की बात स्वयं शुरू की. महाराज हरिसिंह ने देर से निर्णय लिया. फिर भी विलय पत्र पर उनके हस्ताक्षर करने के बाद भारतीय सेना हरकत में आ गई. भारतीय सेना ने आधे कश्मीर को पाकिस्तान के कब्जे से छीन लिया.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एक नई संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO ) का उदय हुआ था, जो युद्ध रत देशों के मध्य बीच बचाव कर उनके बीच अमन चैन कायम करती थी. पंडित नेहरू को UNO पर अगाध श्रद्धा व विश्वास था. उन्होंने कश्मीर समस्या उसे सौंप दी. नतीजा यह हुआ कि यह समस्या आज भी अनसुलझी रह गई.
कश्मीर के दो हिस्से हो गये. एक पाक अधिकृत कश्मीर तो दूसरा भारत के हिस्से वाला कश्मीर . विशेषज्ञों का मानना है कि मात्र 2% कश्मीरी हीं कश्मीर का विलय पाकिस्तान में चाहते हैं, जब कि शेष जनता भारत के साथ है. यही बात महबूबा मुफ्ती ने भी एक इंटरव्यू में कही है. कश्मीर पर लंदन के रिसर्चरों द्वारा कराए गये सर्वे से भी पता चला कि अधिकांश कश्मीरी भारत के साथ हैं. भारतीय कश्मीरियों की हालत पाकिस्तान अधिकृत कश्मीरियों से कई गुना अच्छी है. पाक अधिकृत कश्मीर से कई लोग भारतीय कश्मीर में आकर बस गये हैं.
कई युद्धों में भारत से पाकिस्तान को हार का सामना करना पड़ा है, जिसमें से सन् 1971 की हार बहुत शर्मनाक थी. इंदिरा गांधी ने अपने सूझ बूझ की बदौलत बांगला देश को आजाद करवाया था. इस युद्ध में पाकिस्तान के एक लाख सैनिकों ने आत्म समर्पण किया था, जो मिलिट्री इतिहास में एक बेमिशाल रिकार्ड के रूप में दर्ज है. इस अपमान को पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिअाउल हक नहीं भूले थे. उन्होंने भारत के विरूद्ध "आपरेशन टोपाक " नाम से वार विद लो इन्टेनसिटी की योजना बनाई. इस योजना के चार चरण थे. पहला चरण -पूरी कश्मीर घाटी में मस्जिदों का निर्माण. दूसरे चरण - घाटी से शिया मुसलमान व पंडितों का खात्मा. तीसरा चरण - बगावत के लिए कश्मीरी जनता को उकसाना. चौथा चरण - यह चरण अब अपने उफान पर है. अब घाटी में सरे आम पाकिस्तानी झंडे लहराये जा रहे हैं.
कभी कश्मीर के बारे में मुगल बादशाह जहांगीर ने फारसी में कहा था -
"गर फिरदौस बररूए जमीं अस्त, हमीं अस्त, हमीं अस्त, हमीं अस्त. "
( अगर पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है, यहीं है. )
आज वही कश्मीर जल रहा है. बकरीद के मौके पर सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ है. कहीं कोई चहल पहल नहीं, कहीं कोई उत्साह नहीं. घाटी के सभी जिलों में कार्फ्यू लगा है. सड़कों पर सेना गश्त लगा रही है. मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं बन्द कर दी गईं हैं. अलगाव वादियों ने सयुंक्त राष्ट्र संघ पर्यवेक्षक कार्यालय तक मार्च करने की अपील की थी. उस अपील को दृष्टिगत रखते हुए भारत सरकार ने यह कदम उठाया है.
कश्मीर में आतंक वाद के चलते अब तक 7 लाख कश्मीरी पंडित विस्थापित हो चुके हैं. हजारों पंडित मौत के घाट उतारे जा चुके हैं. पाकिस्तान कश्मीर में रायशुमारी की मांग करता है. यदि रायशुमारी होती है तब भी भारत का पलड़ा भारी रहेगा, क्योंकि पूरे जम्मू कश्मीर में बौद्ध, हिन्दू और अधिसंख्य मुसलमान भारत के पक्ष में हैं. भारत ने इस राय शुमारी को यह कहकर नकार दिया है कि कश्मीरी जनता ने चुनाव में भाग लेकर अपना आत्मनिर्णय भारत के पक्ष में दिया है.
भारतीय राजनेता निर्णय लेने से डरते हैं. वे शुतुरमुर्गीय नीति अपना रहें हैं. शुतुरमुर्ग रेत में मुंह छुपाकर समझता है कि खतरा टल गया है. कभी अटल बिहारी बाजपेयी ने नेहरू को संत की संज्ञा दी थी. हमें संत की जरूरत नहीं है. जरूरत है तो पटेल और इंदिरा गांधी जैसे लौह इरादों वाले रजनीतिज्ञों की. तभी कश्मीर समस्या का हल निकलेगा .युधिष्ठिर जैसे सत्यवादी को स्वर्ग मिलता है तो मिले. ,हमें आज भीम और अर्जुन जैसे वीरों की जरूरत है. रामधारी सिंह ' दिनकर ' की यह कविता इसी हकीकत को बयां करती है -
रे रोक न युधिष्ठिर को यहां, जाने दो उनको स्वर्ग धीर.
पर लौटा वो गांडीव गदा, लौटा दे वो अर्जुन भीम वीर.
- इं एस डी ओझा
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