सईंया भइले गुलरी के रे फुलवा.

गुलर का पेड़ कमोबेश भारत के हर कोने में पाया जाता है. इसे संस्कृत में उदुम्बर, बंगाला में हुमुर, मराठी में उदम्बर, गुजराती में उम्बरा, अरबी में जमीझ और फारसी में अंजीर -ए-आजम कहा जाता है. इसका फल मीठा होता है. मीठा होने के कारण इसमें जल्दी कीड़े लग जाते हैं. ये पंख वाले कीड़े होते हैं,जो फल में छेदकर घुस जाते हैं.पूरा गूदा खा कर फिर ये उड़ जाते हैं.इसलिए इसका फल खाने से पहले फाड़कर देख लेना चाहिए कि कहीं कीड़े तो नहीं लगे हैं. यह हमेशा हरा रहने वाला पेड़ है. इसके पत्तों को छूने से खुजली होती है. इसे फिग ट्री भी कहा जाता है.
गूलर के फल, छाल और दूध औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं . इससे पित्त व कफ के घरेलू उपचार किए जाते हैं. गूलर पाचक व वायु नाशक होता है. यह रक्त प्रदर, रक्त पित्त, उदर शूल व महिलाओं के गर्भाशय सम्बन्धी बीमारियों के इलाज में काम आता है.
गूलर का फल होता है, पर फूल नहीं . इसीलिए जो बहुत दिनों में मिलता है, उससे कहा जाता है कि तुम तो गूलर के फूल हो गये हो. पूर्वांचल के विरह गीतों में भी विदेश गये पति की तुलना गूलर के फूलों से की गई है.
सईंया भइले गूलरी के रे फूलवा.
कहते हैं कि गूलर का फूल मिल जाए तो आदमी राजा बन जाता है. इससे जुड़ा एक और मिथक है कि गूलर का फूल रात को खिलता है और सुबह होने से पहले लोप हो जाता है. इसलिए कुछ लोगों ने चौकीदारी की. रतजगे किए. परन्तु गूलर का फूल नहीं मिला. रातों रात धनवान बनने का सपना छू मंतर हो गया.
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के सिद्धौर ब्लाक के तपापुर गांव में लोगों को गूलर का फूल मिला है, पर वनस्पति शास्त्र के ज्ञाताओं के अनुसार वह फल का हीं एक भाग है. गूलर का फूल होने वाली बात केवल कपोल कल्पना है. विन कमाए धमाए राजा बनने का सपना एक बार फिर चकनाचूर हो गया.
हम बचपन में गूलर के फल खूब खाते थे. कीट को गूलर के फल से निकल कर उड़ना बड़ा हीं सुखद दृश्य उत्पन्न करता था. गूलर कम खाते थे. उसकी टहनियों पर चढ़ खूब उधम मचाते थे. जब गूलर का फल अाता है, उन्हीं दिनों आंख भी आती है. आंख आना अांखों की एक बीमारी होती है. इसलिए सैकड़ों साल पहले जोड़ तोड़ कर एक गीत बच्चों के लिए तैयार हुआ था, जिसे हम गाते थे. नई पीढ़ी भूल गई होगी .
अंखिया आईल,
गुलरिया पाकल.
चलs लईका ,
गूलर खाए.
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Er S D Ojha

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