छछिया भरि छाछ पे नाच नचावे.
छाछ एक पेय होता है. दही को बिलोकर उसका मक्खन निकाल लिया जाता है .उसके बाद जो तरल पदार्थ बच जाता है, वह छाछ कहलाता है. छाछ गर्म देशों का बहुत लोकप्रिय पेय है. इसके पीने से पेट की बीमारियां स्वतः दूर हो जाती हैं. आयुर्वेद में इसे बहुत उपयोगी माना गया है. इसे भोजन के बाद पीने को कहा गया है -
भोजनांते पिवेत तक्रं.
आजकल बाजार में कई प्रकार के कोल्ड ड्रिंक हैं, जिन्हें पीने से शरीर को नुकसान हीं नुकसान है. वहीं छाछ पीने से शरीर को कोई नुकसान नहीं होता, बल्कि इसे पीने वाले दीर्घायु होते हैं . आइए जानते हैं छाछ पीने से क्या फायदा होता है -
हिचकी आने पर छाछ में एक चम्मच सोंठ मिलाकर पियें, हिचकी दूर हो जाएगी. उल्टी, दस्त में छाछ के साथ जायफल पीने से आराम मिलता है. यह सौन्दर्य प्रसाधन के तौर पर भी इस्तेमाल होता है. छाछ में आटा मिलाकर उसका चेहरे पर लेप करें. सूखने पर साफ पानी से धो डालें. चेहरे में निखार आ जायेगा. बासी छाछ एक अच्छे शेम्पू का विकल्प होता है. जिन लोगों का मोटापा जिम जाने व पसीना बहाने के बाद भी कम नहीं होता है, उन्हें एक गिलास छाछ में एक चम्मच जीरा मिलाकर सुबह शाम पीना चाहिए. मोटापा शर्तिया दूर होगा. उच्च रक्तचाप के रोगियों को छाछ के साथ गिलोय लेने पर आराम मिलता है. मानसिक तनाव को दूर करने के लिए छाछ का सेवन राम वाण दवा है. इससे दिमाग में रक्त का संचार सही तरीके से होता है. भूख कम लगने पर इसका उपयोग एक चम्मच अजवाइन के साथ करने पर भूख लगने लगेगी.
हमारे पूर्वांचल में छाछ को मट्ठा कहते हैं .मट्ठा पर एक दोहा बहुत प्रसिद्ध है -
जो भोर में मट्ठा पियत है,
जीरा नमक मिलाय.
बल बुद्धि ताके बढ़त है,
सबै रोग जरि जाय.
पंजाब में छाछ या मट्ठा को लस्सी कहा जाता है. लस्सी कई तरह से बनाई जाती है. इसमें स्वाद के लिए गुलाबजल, केसरी, नींबू, आम ,स्ट्राबेरी, चुकंदर डाला जाता है. पाकिस्तान के लाहौर, गुजरावालां, फैसलाबाद और भारत के अमृतसर, जोधपुर, बरेली की लस्सी अत्यधिक प्रसिद्ध है. होली पर पूरे उत्तर भारत में भांग की लस्सी पी जाती है. भांग की लस्सी पीकर लोगों के जुबान से स्वतः स्फूर्त गीत निकलने लगते हैं - रंग बरसे भीगे चुनर वाली, रंग बरसे.
छाछ भगवान कृष्ण को भी प्रिय था. वे छाछ की चोरी ग्वाल बालों के साथ मिलकर करते थे. पकड़े जाने पर बहाना बनाते थे- मैं जानत छाछ में चींटीं, काढ़न को कर नायो. जिस कृष्ण की लीला अपरमपार मानते हुए नारद, शुकदेव व व्यास हार मानकर बैठ गये. फिर भी वे उनका भेद नहीं पाए, उस कृष्ण को गोप बालाएं थोड़ी सी छाछ के लिए नाच नचाती हैं. कवि रसखान ने इस दृष्टांत का बड़ा हीं मनोहारी वर्णन किया है -
नारद से सुक ब्यास रटै,
पवि हारे तऊ पार न पावै.
ताहि अहीर की छोहरियां,
छछिया भरि छाछ पे नाच नचावै
- इं एस डी ओझा
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