मंजिल पर पहुंचकर जो लिखते रास्तों की दुश्वारियां.
मिशन ए टी एस -107 के तहत कोलम्बिया स्पेस शटल को 11जनवरी 2003 को छोड़ा जाना था, पर कुछ तकनीकी खराबी के कारण इस अभियान को रद्द करना पडा़. इसके पहले भी यह अभियान दस बारह बार रद्द करना पड़ा था. इस अभियान से सात सदस्य जुड़े थे-
1.रिक डी.
2. विलीयम सी.
3. माइकल पी. एडरसन.
4. डेविड एम ब्राऊन.
5. लारेल क्लार्क.
6. इलान रेमन .
7. कल्पना चावला (भारत की प्रथम महिला अंतरिक्ष यात्री) .
अंततोगत्वा यह अंतरिक्ष यान 16 जनवरी 2003 को छोड़ा गया. अंतरिक्ष में 16 दिन रहने के बाद 1 फरवरी 2003 को पृथ्वी पर लौटते समय यह यान धरती पर पहुंचने से मात्र 16 मिनट पहले टैक्सास शहर के ऊपर ध्वस्त हो गया. प्रत्यक्ष दर्शियों के अनुसार आसमान में सफेद रंग की चिंगारियों के साथ भयानक विस्फोट हुआ था. पूरे टैक्सास शहर के 15 किलोमीटर के क्षेत्र में यान के टुकड़े बिखर गये. इन टुकड़ों को एकत्र किया गया. जांच चली.
पूरे दस साल बाद जांच की रिपोर्ट आई. रिपोर्ट से पता चला कि यान के छूटने के 81 सेकण्ड के अंदर हीं यान के साथ लगे बाहरी टैंक से एक फाम का टुकड़ा टूट कर गिर गया था. यह टुकड़ा (24 × 15 )सेंटीमीटर का था,जो कि टूटकर 530 मीटर प्रति घंटे के वेग से यान के पिछले विंग से टकराया था. इस बात की खबर तत्काल हो गयी. कोलम्बिया स्पेश शटल के मैनेजर रहे वेन हेल ने यह दावा किया कि इस बात का इल्म मिशन मैनेजमेंट के फ्लाइट डायरेक्टर जान हारपोल्ड को था, पर शटल से इंटरनेशनल स्पेस सेंटर दूर होने के कारण यान की मरम्मत नहीं की जा सकती थी . रोबोटिक आर्म से भी यह सम्भव नहीं था. कुछ लोगों ने यह प्रस्ताव रखा कि यान को तब तक अंतरिक्ष में रखा जाय जब तक कि उसका आक्सीजन न खत्म हो जाय. और इस बीच यान के मरम्मत के विकल्प तलाश किए जाएं. जान हारपोल्ड ने इस प्रस्ताव को सिरे से नकार दिया. उनका कहना था कि इस कदम से अंतरिक्ष यात्रियों को पता चल जाएगा कि यान में खराबी आ गयी है, जिससे उनमें दहशत का माहौल पनपेगा. यदि मरम्मत के विकल्प हीं तलाश करने हैं तो हम अब भी तलाश सकते हैं.
मरम्मत का कोई विकल्प नहीं मिला. अंतरिक्ष यात्रियों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया. कंट्रोल रूम से निर्देश मिलते रहे. अंतरिक्ष यात्री काम करते रहे. उन्हें जरा भी इल्म नहीं था कि मौत उनका वेसब्री से इंतजार कर रही है. 1 फरवरी 2003 को अंतरिक्ष में 16 दिन बिताने के बाद वे पृथ्वी की ओर लौट चले. वे धरती से मात्र 20 मील की दूरी पर थे. महज 16 मिनट में वे पृथ्वी पर पहुंचने वाले थे. तभी आकस्मिक अलार्म बज उठा. अंतरिक्ष यात्रियों ने पृथ्वी पर कंट्रोल रूम को सूचित किया. कन्ट्रोल रूम खाना पूर्ति में लगा रहा. शटल के अंदर निम्न दबाव बना. सारे अंतरिक्ष यात्री बेहोश हो गये . वे इतनी जल्दी बेहोश हुए कि वे अपने हेल्मेट में लगे शीशे भी बन्द नहीं कर पाए. तभी एक धमाका हुआ. सब कुछ मटिया मेट हो गया.
जांच से यह भी पता चला कि बेहोश होने से पहले अंतरिक्ष यात्रियों ने यान को बचाने का हर सम्भव प्रयास किया था.
मंजिल पर पहुंचकर लिखते जो रास्ते की दुश्वारियां,
आगे बढ़ते बढ़ते खत्म हो गयीं उनकी हीं कहानियां.
- ई एस डी ओझा
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