फेसबुकिया संस्कृति.
हावर्ड के एक छात्र मार्क जुकरवर्ग ने सन् 2004 में fb की शुरूआत की थी. शुरूआत करने से पहले वे भारत के नैनीताल स्थित कैंची धाम आए थे. वे fb को गूगल को बेचना चाहते थे ,पर यहां उनको नई ऊर्जा मिली. उन्होंने fb को बेचने का विचार त्याग दिया. सबसे पहले उन्होंने इसका नाम The facebook रखा. शीघ्र हीं यह कालेज परिसर में लोकप्रिय हो गया. छात्रों ने इसे हाथों हाथ लिया. आज fb विछुड़ों को मिलाता है. आप किसी संगोष्ठी का हिस्सा बन सकते हैं. बहस में भाग ले सकते हैं. समान विचारधारा के लोगों को मित्र बना सकते हैं. अपना फोटो शेयर कर आप मित्रों की वाह वाही लूट सकते हैं. कहने का तात्पर्य यह कि fb हमारे लिए धूम्रपान हो गया है. हम चाहकर भी fb से अलग नहीं हो सकते हैं.मशहूर गजलकार दुष्यंत कुमार ने लिखा है -
एक आदत सी बन गई है तू,
और आदत कभी नहीं जाती.
राष्ट्रकवि दिनकर ने संस्कृति के चार अध्याय लिखा था. फेसबुकिया संस्कृति के कई अध्याय लिखा जा सकता है. fb की महिमा अपरमपार है. यहां प्रस्तुत है -फेसबुकिया संस्कृति की कुछ बानगी -
फेसबुक पर फोटो अपलोड करने वालों की तादाद अच्छी खासी है. उन्हें लाइक व कमेन्ट भी ज्यादा मिलते हैं. कारण है कि इसमें कुछ नहीं करना पड़ता. फोटो देखा. लाइक ठोका. यदि कोई ज्यादा करीबी है तो कामेन्ट के कालम में nice click लिख दें और चलते बनें. न पढ़ने की झंझट न बड़े बड़े कमेन्ट्स देने जरुरत.
कुछ लोग गुड मार्निंग व गुड एवनिंग संस्कृति के पृष्ठ पोषक हैं . इनको आप जगाने और सुलाने वाला चौकीदार भी कह सकते हैं. इनका वश चले तो जब चाहे आपको जगा दें, जब चाहें सुला दें. हद तो तब होती है जब गुडमार्निंग और गुड एवनिंग भी लोग आपको टैग करने लग जाते हैं.
टैग करने वालों का एक अच्छा नाम एक fb फ्रेंड ने रखा है-टैगासुर. टैगासुर गाहे ब गाहे आपको टैग करते रहते हैं. क्या टैग करते हैं? फोटो. यह भी कोई टैग करने की चीज होती है. कोई गूढ़ विषय हो, जिस पर समान विचारधारा के मित्र एक दुसरे का ध्यान खींचना चाहते हैं, वह टैग किया जा सकता है, पर देवी देवताओं के फोटो, गुड मार्निंग /गुड नाईट स्तर के पोस्ट जब टैग होने लगते हैं तो वे सहनशीलता की परकाष्ठा पर पहुंच जाते हैं. मेरे कई fb मित्र हैं, जिन्हें हमने यह सोचकर टैग किया कि वे निश्चित तौर पर उस पोस्ट को लाईक करेंगें, पर उन दोस्तों ने उसे कोई तव्वजो नहीं दी. हांलाकि वे मेरे नियमित एक्टिव फ्रेंड हैं. मुझे पता चल गया कि टैग वाली बात उनको नागवार गुजरी है.
कुछ fb फ्रेंड चोरी की संस्कृति अपनाते हैं. वे अचानक हीं आपके मित्र बनते हैं. आपकी टाइम लाइन से पोस्ट चुराते हैं . अपने नाम से उसे दुबारा पोस्ट कर देते हैं. मैंने भी एक ऐसे चोर दोस्त को पकड़ा है. उसे तत्काल अमित्र कर दिया. आश्चर्य की बात है कि उस चोरी की पोस्ट पर मूल पोस्ट से ज्यादा लाईक /कमेंट मिले .
मुझे उस वक्त खीझ होती है, जब कोई fb फ्रेन्ड पोस्ट से इतर बातें कर बैठता है. मसलन -नमस्कार कैसे हैं ? चैटिंग करनी हो तो मेसेंजर पर आईए. हर जहीन आदमी अपनी पोस्ट पर पोस्ट से सम्बन्धित टिप्पणी हीं चाहता है. कुछ तो किसी वस्तु का प्रचार प्रसार करने लगते हैं और कुछ बिना पोस्ट पढ़े ऊल जलूल टिप्पणी कर जाते हैं. उनके लिए 'जौक ' का एक शेर -
समझ में हीं नहीं आती, है ' जौक ' बात जिनकी,
कोई जाने तो क्या जाने, कोई समझे तो क्या समझे.
कुछ दोस्त fb पर ऐसे हैं, जो मित्र बनते हीं आपको अपनी पोस्ट पढ़ने व लाइक करने का न्यौता दे देते हैं. आपने अगर सौजन्यता वश लाइक कर दिया तो वे किसी और मित्र का दरवाजा खटखटाने चले जाते हैं. इन्हें किसी और के पोस्ट को लाईक /कमेंट करने की फुर्सत हीं नहीं है. ऐसे लोगों को आत्ममुग्ध कहना ज्यादा उचित होगा.
कुछ लोग गेम खेलने के लिए आमंत्रित करते हैं. कुछ लोग चैंटिंग करना चाहते हैं. कुछ लोग मित्र बनते हीं ताबड़ तोड़ लाईक /कमेंट का अम्बार लगा देते हैं. फिर ऐसे गायब होते हैं जैसे कि गधे के सिर से सिंघ. कुछ फ्रेंड ऐसे हैं, जो आपकी हर पोस्ट पढ़ेंगे, पर लाइक /कमेंट नहीं देंगे. मेरे ऐसे हीं एक मित्र हैं, जिनसे लगभग हर रविवार घर के पास बने पार्क में मुलाकात होती है. मिलते हीं कहेंगे, "मैंने आपकी अमुक पोस्ट देखी थी, बहुत अच्छा लिखा था. " मैं सौजन्यता वश यह नहीं कह पाता कि यदि अच्छा लिखा था तो लाईक क्यों नहीं किया ? एक लाईक करने में आपका क्या बिगड़ जाता ? "
हमने अपने हिसाब से फेसबुकिया संस्कृति पर अपनी बेबाक राय रखी है. अब एक शेर का हक तो बनता है. कुमार विश्वास का एक फेसबुकिया शेर अब आपको झेलना होगा -
फिर मेरी याद आ रही होगी,
फिर वो दीपक बुझा रही होगी.
फिर मेरे फेसबुक पर आकर वो,
खुद को बैनर बना रही होगी.
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