दो पाटन के बीच में फंसी जिंदगी
राकेश की ट्रेन रतलाम की तरफ भागी जा रही थी । ट्रेन की झझकाली के साथ उसके दिमाग में भी झंझावात चल रहे थे ।ऐसा नहीं है कि वह पहली बार अपनी माँ से मिलने जा रहा था ।वह पहले भी उससे दो तीन बार मिलने रतलाम जा चुका है । किंतु इस बार किसी विशेष प्रयोजन से मिलने जा रहा है । अबकी बार उसके पिता ने भेजा है ।
वह जब भी अपनी माँ से मिलने गया है , माँ को असहज हीं पाया है । दोनों बहने प्रायः उससे सहज हीं मिलीं हैं । माँ के दूसरे पति का चेहरा सीधा सपाट व भाव शून्य रहता था । राकेश हीं ऐसा था जो खुले दिल का था और माँ से मिलने चला जाता था । एक दिन अकेले में माँ ने उससे कहा था कि वह उसे माँ नहीं मौसी कहा करे । माँ कहने से आस पड़ोस में गलत संदेश जाएगा ।
माँ ने अड़ोस पड़ोस में कह रखा था कि राकेश उसकी बहन का लड़का है और उससे बहुत हिला रखने के कारण उसे माँ कहता है । तब से उसने माँ से मिलने जाना छोड़ दिया था । ऐसी माँ से मिलने से क्या फायदा जिसे माँ कहलवाने में शर्मिंदगी महसूस हो । आज पिता का कहना वह टाल नहीं पाया । इसमें उसका भी स्वार्थ था । वह माँ से मिलने का लोभ संवरण नहीं कर पाया था ।
उसकी माँ का उसके पिता से लव मैरिज हुआ था । पिता अपनी माँ बाप की इकलौती संतान थे । पिता के पिता बहुत पहले गुजर गये थे । केवल माँ थी । पिता का अपनी माँ से अन्नय प्रेम था । वे सच्चे अर्थों में सरवन पूत थे । वे दादी की किसी बात का उल्लंघन नहीं करते थे । ऐसै में सास बहू का संबंध कहाँ सामान्य रह पायेगा ? सास बहू का बैर कुत्ते बिल्ली का बैर होता है ।
रोज रोज के झगड़े से तंग आकर माँ ने घर छोड़ दिया था । उस समय राकेश दूधमुहां बच्चा था । माँ राकेश को भी अपने साथ ले जाना चाहती थी , पर दादी ने ले जाने से रोक दिया था । शायद दादी की मंशा होगी कि माँ बच्चे के बिना न रह पाएगी और बच्चे के लिए घर लौट आएगी । पर माँ नहीं लौटी । माँ के मायके वाले उधार खाए बैठे थे । लव मैरिज में ऐसा हीं होता है ।
माँ के घर वालों ने उसकी कहीं और शादी तय कर दी । माँ को मनाने पिता गये थे , पर राकेश की नानी ने उन्हें घर के अंदर हीं नहीं आने दिया । उन्हें बाहर से हीं चलता कर दिया था । यह बात उन्होंने माँ को भी नहीं बताई होगी । इसलिए माँ भी अपने अहम् में दूसरे के घर जाकर बैठ गयी । एक रिश्ता तार तार हो गया । पिता दुःखी हो गये । माँ का दिल भी बहुत रोया होगा ।
राकेश को पिता और दादी ने मिल जुलकर पाला था । पिता ने दूसरी शादी नहीं की । उनका विचार था कि औरत मुंहबोली बहन और बेटी तो बन सकती है , पर मुंहबोली माँ कभी नहीं बन सकती । सौत का बेटा सौत की तरह हीं दुश्मन होता है । सौत तो कठौत की भी मान्य नहीं होती । सौतेला बेटा भी कठौता बेटे के बराबर होता है ।
दादी के मरने के बाद पिता ने हीं उसे माँ बाप का भरपूर प्यार दिया था । उसे पढ़ा लिखाकर योग्य बनाया था । आज राकेश एक मल्टी नेशनल क॔पनी में कार्यरत है । पिता का संदेश लेकर माँ के पास जा रहा है । उसके पिता ने उसकी माँ को मिलने के लिए बुलाया है । पिता दिन ब दिन वृद्ध हो रहे हैं । मरने से पहले वे दिल पर कोई बोझ नहीं रखना चाहते हैं ।
राकेश की गाड़ी रतलाम पहुँच गयी है । वह सीधे माँ के घर पहुँचा है । माँ के चेहरे पर शिकन हैं । बहने खुश हैं । सौतेले पिता के चेहरे पर " न काहू से दोस्ती न काहू से बैर " वाला भाव है । ऐसे में राकेश अपने पिता का संदेश देता है । माँ के चेहरे की शिकन और गहरी हो जाती है । वह अपने पति की तरफ देखती है । वह चाहती है कि वह भी साथ चलें ।
पति मना कर देते हैं । वे कहते हैं कि वहाँ मेरा क्या काम ? मेरी उपस्थिति में वहाँ कोई सहज नहीं होगा । तुम्हारे साथ तुम्हारा बेटा है । तुम्हें चिंता करने की क्या जरुरत है ? अपने सीने पर बोझ लेकर जाने से बेहतर है कि उसे कह सुन लिया जाय । कब कौन इस दुनियां से कूच कर जाय, कहा नहीं जा सकता । ऐसे में केवल पछतावा हीं शेष रह जाएगा । राकेश माँ के साथ लखनऊ के लिए चल पड़ा था ।
राकेश दिन के दूसरे पहर घर पर पहुँचा था । उसकी माँ घर को अपलक देख रही थी । घर वैसे का वैसा हीं था , जैसा वह छोड़कर गयी थी । बदला था तो राकेश के पापा का चेहरा । उस पर असमय हीं झुर्रियों का आगमन हो गया था । बाल खिचड़ी हो गये थे । चाय पानी के बाद राकेश के पापा ने उसकी माँ को एक चौकोर पैक यह कहते हुए दिया था कि इसमें तुम्हारे गहने हैं ।
माँ ने गहने लेने से यह कहकर मना कर दिया था कि ये गहने राकेश की बहू के काम आएंगे । पिता नहीं माने । उन्होंने कहा था कि राकेश की बहू के लिए मेरी माँ के गहने काफी हैं । ये तुम्हारे गहने हैं । इन पर तुम्हारा अधिकार है । तुम्हारी दो बेटियाँ हैं । ये उनके काम आएंगे । माँ ने बड़े बेमन से वे गहने रखे थे ।
दूसरे दिन राकेश अपनी माँ को छोड़ने के लिए रेलवे स्टेशन जा रहा था । टैक्सी तक छोड़ने के लिए पिता बाहर आए । माँ ने उनके पाँव छुए । कहा था - " राकेश के पापा ! तुमने अपना धर्म नहीं छोड़ा । हमने छोड़ दिया । हमें नरक में भी जगह नहीं मिलेगी । घटी बढ़ी माफ करना । " पिता की आंखें डबडबा गयीं थीं । माँ फफकर रो पड़ी थी ।
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