कितने हो गये तबाह जीने की जद्दोजहद में.

मेरे घर के पास एक नगरपालिका का पार्क है, जो कि अनगिनत बूढ़ों की पनाहगाह है. ये बूढ़े समय के हाथों लूटे हुए हैं. कभी परिवार पर इनका एकछत्र राज्य था. अनुशासन की नकेल इनके हाथों में होती थी. जरा सा किसी ने चूं चापड़ की नहीं कि नकेल खींच दी और सब कुछ सामान्य हो गया .अब समय ने पलटा खाया तो सभी नकेल तुड़ाकर भाग रहे हैं. जीवन भर का साथ निभाने वाली बीवी भी बच्चों की हीं तरफदारी करती है. लिहाजा ये बुजुर्ग घर में कम हीं रहते हैं. कुछ तो पर्दादारी रखनी है.  बन्द मुट्ठी लाख की, खुल गई तो खाक की. घर की बात बाहर निकले, इससे तो बेहतर है कि खुद हीं घर से बाहर रहो.
ये बुजुर्ग नाश्ता कर पार्क में आ जाते हैं. पार्क में ताश खेलते हैं. आपस में लड़ते हैं. मेरा एक्का, तेरा बादशाह, उसका गुलाम, किसकी बेगम और फिर होता है हो हल्ला. घर का फर्स्ट्रेशन बुजुर्ग यहां आपस में लड़कर निकालते हैं. कई बार स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है. हाथा पाई की नौबत आ जाती है. अगले दिन सब कुछ सामान्य हो जाता है. फिर वही गुलाम,  बादशाह, एक्का की बात होने लगती है.
कुछ बुजुर्ग ताश खेलना नहीं जानते. वे आपस में मिल बैठ एक दुसरे का दुःख दर्द शेयर करते हैं. मर्द को दर्द नहीं होता कि तर्ज पर मर्द बहुत कम हीं अपना दर्द बयां कर पाते हैं, लेकिन जब पानी सर से ऊपर चढ़ जाय तो दर्द बयां करने में हीं भलाई है, बर्ना आगे चलकर एक बेआवाज विस्फोट होता है और पता चलता है कि कल तक जो शख्स हमारे बीच था, आज चार कन्धों पर इस दुनियाँ से जा रहा है.
तुम्हारी दुनियां से जा रहे हैं, उठो हमारा सलाम ले लो.
कुछ बुजुर्ग परिवार के साथ रह कर भी परिवार से अलग थलग हैं. उन्हें नाश्ता, लंच और डिनर देकर बच्चे अपने कर्तब्य का इति श्री समझ लेते हैं. न उनसे किसी बात पर सलाह ली जाती है और न उनकी मंशा पूछी जाती है. वे बेचारे भी 'यही नियति है ' मान जिन्दगी की बची हुई घड़ियां गुजार देते हैं. कुछ बहुत मुखर होते हैं. मेरे एक मित्र अक्सर मुझसे इस पार्क में मिलते हैं. उन्होंने बताया कि उन्होंने किस तरह अपने बेटों द्वारा उनके खिलाफ किए गये हिंसा का प्रतिकार किया. इस हिंसा में बच्चों की मां भी शामिल थी. उन्होंने अपने सभी रिश्तेदारों को ई - मेल किया. पुलिस को सूचित किया. ताकि सनद रहे. हां, FIR नहीं किया. अभी परिवार के प्रति उनका मोह बाकी था.
रहीम कवि ने लिखा है -
रहिमन अंसुअा नयन ढरि,
जिय दुःख प्रगट करेहि.
जाहि निकारो गेह ते ,
कस न भेद कहि देहि.
जब घर घर नहीं रहेगा तो घर के प्रति आपकी लायल्टी भी कम होगी. घर की केन्द्र बिंदु पत्नी होती है. केन्द्र में जब उलट फेर होता है तो घर में विखराव शुरू होता है .अव्वल तो कोई पति इस केन्द्र बिन्दु की शिकायत नहीं करना चाहता है, कारण- अपनी हार और मेहरिया की मार किसी से नहीं कही जाती; पर जब बात हद से बढ़ जाती है तो इसे जगजाहिर करना हीं श्रेयस्कर होता है, अन्यथा ' कहो तो जग जाने ,ना कहो तो पेट फाटे ' वाली द्विविधा बनी रहती है.
मेरे एक अन्य मित्र पत्नी पीड़ित हैं .वे जब भी पार्क में आते हैं, मुझे फोनकर बुला लेते हैं. मुझे उनसे काफी हमदर्दी है, पर जो उन पर बीत रही है, उसमें अन्य कोई सहभागी नहीं हो सकता . उनसे बात करते हुए रात के नौ बज जाते हैं. 'थोड़ी देर और बैठते हैं ' का बार बार का उनका अनुग्रह मैं टाल नहीं पाता. हमारी बैठक तब खत्म होती है, जब मेरी श्रीमती जी का फोन आ जाता है.
कितने हो गये तबाह, जीने की जद्दोजहद में.
गुजर चुकीं कई बहारें, जीने की जद्दोजहद में.
              - ई एस डी ओझा

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